कौन हैं कुवारों के देवता इलोजी, होली पर परमाणु नगरी पोकरण में होती है इनकी खास पूजा, जानें वजह
की भी यहां खास रौनक रहती है। होली के त्योहार पर जैसलमेर जिले के परमाणु नगरी पोकरण में एक अनूठी रीति देखने को मिल रही है, जो कई शताब्दियों से चली आ रही है।
पोकरण के लाल किले पर होती है पूजा
दरअसल, पोकरण स्थित लाल किले (रेड फोर्ट) के आगे होली से 1 दिन पूर्व इलोजी देवता की पूजा-अर्चना कुंवारे लड़कों की ओर से की जाती है। इन लड़कों की ओर से इलोजी की पूजा कर शादी की मन्नत मांगी जाती है। वही इलोजी की प्रतिमा के चारों ओर कुंवारे युवा परिक्रमा भी लगाते हैं। इस दौरान यहां पूजा में गुलाल और प्रसाद में मदिरा का भोग लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि होली के अवसर पर इलोजी की 5 बार परिक्रमा देने वाले युवक की 1 वर्ष में ही शादी हो जाती है। इसके चलते यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
दुल्हनिया देने वाले देवता है इलोजी
शिक्षाविद मनसुख जीनगर बताते हैं कि इलोजी देवता जैसलमेर-बाड़मेर में बड़ी ही श्रद्धा से पूजे जाते है कुंवारे लड़कों के लिए इलोजी आराध्य देव के समान है। जिन लड़कों की उम्र शादी की हो गई है और उनकी शादी नहीं हो रही है। वे कुंवारे लड़के होली से 1 दिन पहले गांव, शहर के चौराहे पर इलोजी की प्रतिमा के आगे पूजा पाठ करते हैं। परिक्रमा देते हैं । ऐसे लोगों की 1 साल के भीतर ही शादी हो जाती है।
कई शताब्दियों से चली आ रही परंपरा
ऐसा माना जाता है कि इलोजी की पूजा अर्चना करने से वे प्रसन्न हो जाते हैं। कुंवारे लड़कों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। उन्हें अपने सपनों की रानी मिल जाती है। यह परंपरा बीते कई शताब्दियों से चली आ रही है। इसके तहत पोकरण के लाल किले के आगे भी शहर के कुंवारे लड़के आते हैं। इलोजी देवता से शादी की मन्नत मांगते हैं । इलोजी मन्नत पूर्ण भी करते हैं ऐसा यहां के लोगों का विश्वास है।
होलिका के मंगेतर थे इलोजी
किवदन्ती के अनुसार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका थी, जिसकी सगाई इलोजी से हो रखी थी, लेकिन भक्त प्रहलाद से हिरण्यकश्यप बहुत ही परेशान थे। प्रहलाद को मारने के लिए उन्होंने विभिन्न प्रकार के यत्न किए, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी। इसके चलते एक बार होलिका हरण्यकश्यप के पास पहुंचती है। अपने भाई को उसके दुख का कारण पूछती है तो हरण्यकश्यप प्रह्लाद को मारने की बात रखते हैं। इस पर होलिका को आग में नहीं जलने का वरदान था। इसके कारण होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ जाती है और इससे होलिका की मौत हो जाती है और प्रह्लाद बाहर निकल आते हैं।
इस वजह से इलोजी ने लिया कुंवारे रहने का फैसला
वहीं इलोजी अपनी दुल्हनिया होलिका को लेने जब हिरण्यकश्यप की नगरी पहुंचते हैं तो वहां उन्हें होलिका की मृत्यु के समाचार मिलते हैं। इससे इलोजी आहत हो जाते हैं और वे ताउम्र कुंवारे ही जीवन यापन करने का फैसला लेते हैं। तब से ही जिस व्यक्ति की शादी की उम्र गुजर जाने पर भी विवाह नहीं होता है तो वह इलोजी की पूजा-अर्चना करते हैं। दुल्हनिया का आशीर्वाद लेते हैं। जिले में होली के पर्व को जहां धूमधाम से मनाया जाता है वहीं इलोजी की भी पूजा अर्चना विधि विधान से की जाती है।
रिपोर्ट- जगदीश गोस्वामी, जैसलमेर