कैसे बनी जयपुर राजधानी ? पहले स्थापना दिवस हो गया विवाद, जानें Rajasthan Diwas के बारे में रोचक बातें
पहले प्रधानमंत्री हीरालाल शास्त्री से भी नाराजगी
कांग्रेस के कई तत्कालीन नेता हीरालाल शास्त्री को राजस्थान का पहला प्रधानमंत्री बनाए जाने से नाराज थे। हालांकि हीरालाल शास्त्री पं. नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल के नजदीकी थे। ऐसे में उन्हें राजस्थान का पहला प्रधानमंत्री यानी उस वक्त का सीएम बनाया गया था। 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू हुआ था। संविधान लागू होने के साथ ही राज्यों में प्रधानमंत्री का पदनाम बदलकर मुख्यमंत्री कर दिया गया था। कांग्रेस में आपसी विवाद की शुरुआत राजस्थान की स्थापना के दौरान ही हो गई थी क्योंकि कांग्रेस के अधिकतर नेता हीरालाल शास्त्री के बजाय जयनारायण व्यास और माणिक्य लाल वर्मा के समर्थन में थे।
जयपुर के महाराजा बने पहले राजप्रमुख
राजस्थान की स्थापना के बाद जयपुर के तत्कालीन महाराजा सवाई मानसिंह को राजस्थान का राजप्रमुख बनाया गया । कोटा के महाराव भीमसिंह को उप राजप्रमुख की शपथ दिलाई गई थी। राजप्रमुख सवाई मानसिंह ने ही राजस्थान के पहले प्रधानमंत्री हीरालाल शास्त्री को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई थी। अक्टूबर 1956 तक पूर्व महाराजा सवाई मानसिंह राजस्थान के राजप्रमुख थे। बाद में इस व्यवस्था को खत्म कर दिया गया था और राज्यपाल का पद सृजित किया गया था।
सवाई मानसिंह की शर्त पर जयपुर बना राजधानी
राजस्थान के गठन के बाद जब राजधानी बनाने की बारी आई तो अलग अलग शहरों के नाम सामने आए। कई राजाओं ने अपने- अपने राज्य को राजधानी बनाने की मांग रखी थी। चूंकि जयपुर रियासत काफी बड़ी थी। ऐसे में रियासतों के विलय के दौरान जयपुर के तत्कालीन महाराजा सवाई मानसिंह इस शर्त पर विलय को तैयार हुए कि राजस्थान की राजधानी जयपुर को बनाया जाए। बाद में केन्द्रीय गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने एक कमेटी का गठन किया। कमेटी ने जयपुर को राजधानी बनाने की सिफारिश की जिसके बाद जयपुर को राजस्थान की राजधानी बनाया गया।
केन्द्र सरकार ने शर्तों को मानने से किया इनकार
रियासतों के विलय के दौरान जयपुर के तत्कालीन महाराजा सवाई मानसिंह की ओर से यह शर्त रखी गई कि वे आजीवन राजप्रमुख रहेंगे। 1949 में सवाई मानसिंह की इस शर्त को मान लिया गया था। इसी कारण सवाई मानसिंह राजस्थान के पहले राजप्रमुख बने। अक्टूबर 1956 तक वे राजस्थान के राजप्रमुख रहे लेकिन बाद में केन्द्र सरकार ने शर्त को मानने से इनकार करते हुए नए प्रावधान बना दिए। नए प्रावधानों के मुताबिक राजप्रमुख का पद खत्म करके राज्यपाल की नियुक्ति शुरू की गई थी। ऐसे में पूर्व महाराजा सवाई मानसिंह को राजप्रमुख का पद छोड़ना पड़ा। (रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़, जयपुर)
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