किसानों की समृ़द्धि के लिए जैविक व आधुनिक कृषि प्रणाली को अपनाना जरूरी
h3>
ऐप पर पढ़ें
बेगूसराय/ सिंघौल, निज संवाददाता। धरती पुत्र किसान के लिए खेती-बारी की चुनौती लगातार बढ़ती जा रही है। खासकर मौसम चक्र के बदलाव के कारण अनियमित बारिश से कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि धरती पुत्रों की परेशानी को बढा रहा है। जिले के 18 में से 10-12 प्रखंड गंगा व गंडक नदी में आने वाली बाढ़ से सीधी तरह से प्रभावित होती है। इसके अतिरिक्त बड़े भू-भाग में जलजमाव की स्थिति सालों भर रहने से जिले की हजारों एकड़ भूमि चौर में तब्दील हो गयी है। चौर क्षेत्र से पानी के निकासी की व्यवस्था राजनीतिक बयानबाजी तक ही सीमित रह गयी है। वही बाढ़ प्रभावित प्रखंड के बड़े भूभाग में किसान महज रबी फसल का ही लाभ उठा पाते हैं। खरीफ फसल ज्यादातर समय बाढ़ के पानी में डूब जाती है। किसानों की आय को दोगुना करने के वादे के तहत केंद्र व राज्य सरकार किसानों को रासायनिक खाद, बीज, कृषि यंत्र आदि पर अनुदान दे रही है। इसके बावजूद किसानों को पहले की तुलना में कम आमदनी हो रही है।
वजह यह है कि अब खेती की लागत मूल्य कई गुना बढ़ गयी है। सिर्फ खेती कर अपने परिवार का भरण-पोषण करना किसानों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। इसके अतिरिक्त विभाग की ओर से पारंपरिक खेती से हटकर आधुनिक खेती प्रणाली अपनाने के लिए सालों भर कोई ना कोई प्रशिक्षण चलता ही रहता है। जिले में अब किसान जैविक खेती की ओर भी उन्मुख हो रहे हैं। सरकार द्वारा मिल रहे अनुदान के बाद जैविक खेती का रकबा लगातार बढ़ रहा है। लेकिन जैविक उत्पाद का उचित मूल्य दिलाने की व्यवस्था अभी भी संतोषप्रद नहीं है। इस वजह से किसानों की आर्थिक सेहत में कोई खास बदलाव नहीं आ रहा है। जिला कृषि अधिकारी राजेंद्र कुमार वर्मा ने बताया कि कृषि विभाग से जुड़े सभी अधिकारी व कर्मी किसानों को पारंपरिक खेती के साथ वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर बल दे रहे हैं। ताकि किसानों की उपज का उचित मूल्य मिल सके। डीएओ ने बताया कि जिले में दर्जनों किसान काफी उच्च शिक्षा ग्रहण कर वैज्ञानिक विधि से खेती-किसानी कर पूरे देश में अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
खेती करना होता जा रहा मुश्किल
खोदावन्दपुर, निज प्रतिनिधि। मौसम के बदलते मिजाज के कारण आने वाले समय में कृषि कार्य के दौरान चुनौती गंभीर हो सकती है। यह बात कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के वरीय वैज्ञानिक सह प्रधान डा. रामपाल ने कही। उन्होंने बताया कि परंपरागत खेती को छोड़कर मौसम अनुकूल खेती करने का समय आ गया है। कृषि भूभाग के भौगोलिक संरचना की बात करें तो नदी के किनारे वाले क्षेत्र में नदी में बाढ़ आ जाने से उसके किनारे वाला क्षेत्र पानी से भर जाता है। यह जलजमाव कई महीनों तक रहता है। बाद में धीरे-धीरे खेत खाली होता है। इस कारण से जलजमा वाले क्षेत्र में खेती देरी से हो पाती है और उपज को प्रभावित करती है। इसके साथ ही समय पर वर्षा न होने के कारण ऊपरी भूभाग वाले क्षेत्र में खेती के लिए सिंचाई की अतिरिक्त आवश्यकता होती है। जो लागत मूल्य को बढ़ा देती है। खेती को मुनाफे का सौदा बनाने के लिए परंपरागत खेती को छोड़कर जलवायु अनुकूल खेती पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके लिए मौसम के अनुकूल बीजों का चयन करना होगा। एक समय में एक ही खेत पर से एक से अधिक फसल का लाभ लेना होगा। वैसे फसलों का चयन करना होगा जो कम पानी में भी अच्छी उपज दे देता हो, साथ ही मौसम के प्रतिकूल स्थिति को भी सहन कर लेता हो। इसके साथ ही कृषि वानिकी पर विशेष ध्यान देना होगा।
मृदा में जैविक कार्बन की मात्रा में आ रही कमी चिंता का विषय
गढ़पुरा, निज संवाददाता। प्रखंड क्षेत्र के किसानों के लिए खेती-बारी चुनौतीपूर्ण होती जा रही है। कृषि वैज्ञानिक इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मौसम में बदलाव को मान रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण मिट्टी के स्वास्थ्य और नमी में कमी आई है, तापमान और वर्षा के पैटर्न में बदलाव हुआ है और फसलों पर कीट और रोग की घटनाओं में वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन के कारण खेती में लागत और उत्पादन के कई चुनौतियां पैदा हो रही हैं। इससे फसल की उपज कम हो जाती है। जहां तक भौगोलिक संरचना का सवाल है तो यह बात भी दिगर है कि कहीं पर बाढ़ तो कहीं पर सुखाड़ किसानों के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है।
चौर में जलजमाव की समस्या भी खेतीबारी को प्रभावित कर रही है। प्रखंड क्षेत्र में ऐसे एक दर्जन चौर हैं जहां हजारों हेक्टेयर भूमि में खेती नहीं हो पा रही है। जहां तक खेती के तौर तरीके का सवाल है तो उसमें बदलाव आवश्यक है। अब समय आ गया है कि कृषि को पर्यावरण अनुकूल बनाने के साथ-साथ किसानों की आय में निरंतर वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए खेती के तौर-तरीकों में बदलाव करे। हरित क्रांति से देश को नि:संदेह खाद्य सुरक्षा प्राप्त हुई है, लेकिन इससे रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों के अत्यधिक उपयोग पर निर्भरता बढ़ी है। परिणामस्वरूप पिछले कुछ वर्षो में मृदा जैविक कार्बन (एसओसी) की मात्रा में भारी कमी दर्ज की गई है। कुम्हारसों पंचायत के प्रगतिशील किसान राजीव कुमार बताते हैं कि फिलहाल किसान परंपरागत कृषि का सहारा लेकर खेती कर रहे हैं लेकिन उसमें आमदनी का जरिया बेहतर नहीं हो पा रहा है। ऐसी स्थिति में किसान अब आधुनिक कृषि की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। इसमें किसानों को लागत कम और मुनाफा अधिक होने की संभावना रहती है। परंपरागत कृषि में वैसी आमदनी नहीं हो पाती है।
यह हिन्दुस्तान अखबार की ऑटेमेटेड न्यूज फीड है, इसे लाइव हिन्दुस्तान की टीम ने संपादित नहीं किया है।
बिहार की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Delhi News
ऐप पर पढ़ें
बेगूसराय/ सिंघौल, निज संवाददाता। धरती पुत्र किसान के लिए खेती-बारी की चुनौती लगातार बढ़ती जा रही है। खासकर मौसम चक्र के बदलाव के कारण अनियमित बारिश से कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि धरती पुत्रों की परेशानी को बढा रहा है। जिले के 18 में से 10-12 प्रखंड गंगा व गंडक नदी में आने वाली बाढ़ से सीधी तरह से प्रभावित होती है। इसके अतिरिक्त बड़े भू-भाग में जलजमाव की स्थिति सालों भर रहने से जिले की हजारों एकड़ भूमि चौर में तब्दील हो गयी है। चौर क्षेत्र से पानी के निकासी की व्यवस्था राजनीतिक बयानबाजी तक ही सीमित रह गयी है। वही बाढ़ प्रभावित प्रखंड के बड़े भूभाग में किसान महज रबी फसल का ही लाभ उठा पाते हैं। खरीफ फसल ज्यादातर समय बाढ़ के पानी में डूब जाती है। किसानों की आय को दोगुना करने के वादे के तहत केंद्र व राज्य सरकार किसानों को रासायनिक खाद, बीज, कृषि यंत्र आदि पर अनुदान दे रही है। इसके बावजूद किसानों को पहले की तुलना में कम आमदनी हो रही है।
वजह यह है कि अब खेती की लागत मूल्य कई गुना बढ़ गयी है। सिर्फ खेती कर अपने परिवार का भरण-पोषण करना किसानों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। इसके अतिरिक्त विभाग की ओर से पारंपरिक खेती से हटकर आधुनिक खेती प्रणाली अपनाने के लिए सालों भर कोई ना कोई प्रशिक्षण चलता ही रहता है। जिले में अब किसान जैविक खेती की ओर भी उन्मुख हो रहे हैं। सरकार द्वारा मिल रहे अनुदान के बाद जैविक खेती का रकबा लगातार बढ़ रहा है। लेकिन जैविक उत्पाद का उचित मूल्य दिलाने की व्यवस्था अभी भी संतोषप्रद नहीं है। इस वजह से किसानों की आर्थिक सेहत में कोई खास बदलाव नहीं आ रहा है। जिला कृषि अधिकारी राजेंद्र कुमार वर्मा ने बताया कि कृषि विभाग से जुड़े सभी अधिकारी व कर्मी किसानों को पारंपरिक खेती के साथ वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर बल दे रहे हैं। ताकि किसानों की उपज का उचित मूल्य मिल सके। डीएओ ने बताया कि जिले में दर्जनों किसान काफी उच्च शिक्षा ग्रहण कर वैज्ञानिक विधि से खेती-किसानी कर पूरे देश में अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
खेती करना होता जा रहा मुश्किल
खोदावन्दपुर, निज प्रतिनिधि। मौसम के बदलते मिजाज के कारण आने वाले समय में कृषि कार्य के दौरान चुनौती गंभीर हो सकती है। यह बात कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के वरीय वैज्ञानिक सह प्रधान डा. रामपाल ने कही। उन्होंने बताया कि परंपरागत खेती को छोड़कर मौसम अनुकूल खेती करने का समय आ गया है। कृषि भूभाग के भौगोलिक संरचना की बात करें तो नदी के किनारे वाले क्षेत्र में नदी में बाढ़ आ जाने से उसके किनारे वाला क्षेत्र पानी से भर जाता है। यह जलजमाव कई महीनों तक रहता है। बाद में धीरे-धीरे खेत खाली होता है। इस कारण से जलजमा वाले क्षेत्र में खेती देरी से हो पाती है और उपज को प्रभावित करती है। इसके साथ ही समय पर वर्षा न होने के कारण ऊपरी भूभाग वाले क्षेत्र में खेती के लिए सिंचाई की अतिरिक्त आवश्यकता होती है। जो लागत मूल्य को बढ़ा देती है। खेती को मुनाफे का सौदा बनाने के लिए परंपरागत खेती को छोड़कर जलवायु अनुकूल खेती पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके लिए मौसम के अनुकूल बीजों का चयन करना होगा। एक समय में एक ही खेत पर से एक से अधिक फसल का लाभ लेना होगा। वैसे फसलों का चयन करना होगा जो कम पानी में भी अच्छी उपज दे देता हो, साथ ही मौसम के प्रतिकूल स्थिति को भी सहन कर लेता हो। इसके साथ ही कृषि वानिकी पर विशेष ध्यान देना होगा।
मृदा में जैविक कार्बन की मात्रा में आ रही कमी चिंता का विषय
गढ़पुरा, निज संवाददाता। प्रखंड क्षेत्र के किसानों के लिए खेती-बारी चुनौतीपूर्ण होती जा रही है। कृषि वैज्ञानिक इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मौसम में बदलाव को मान रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण मिट्टी के स्वास्थ्य और नमी में कमी आई है, तापमान और वर्षा के पैटर्न में बदलाव हुआ है और फसलों पर कीट और रोग की घटनाओं में वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन के कारण खेती में लागत और उत्पादन के कई चुनौतियां पैदा हो रही हैं। इससे फसल की उपज कम हो जाती है। जहां तक भौगोलिक संरचना का सवाल है तो यह बात भी दिगर है कि कहीं पर बाढ़ तो कहीं पर सुखाड़ किसानों के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है।
चौर में जलजमाव की समस्या भी खेतीबारी को प्रभावित कर रही है। प्रखंड क्षेत्र में ऐसे एक दर्जन चौर हैं जहां हजारों हेक्टेयर भूमि में खेती नहीं हो पा रही है। जहां तक खेती के तौर तरीके का सवाल है तो उसमें बदलाव आवश्यक है। अब समय आ गया है कि कृषि को पर्यावरण अनुकूल बनाने के साथ-साथ किसानों की आय में निरंतर वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए खेती के तौर-तरीकों में बदलाव करे। हरित क्रांति से देश को नि:संदेह खाद्य सुरक्षा प्राप्त हुई है, लेकिन इससे रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों के अत्यधिक उपयोग पर निर्भरता बढ़ी है। परिणामस्वरूप पिछले कुछ वर्षो में मृदा जैविक कार्बन (एसओसी) की मात्रा में भारी कमी दर्ज की गई है। कुम्हारसों पंचायत के प्रगतिशील किसान राजीव कुमार बताते हैं कि फिलहाल किसान परंपरागत कृषि का सहारा लेकर खेती कर रहे हैं लेकिन उसमें आमदनी का जरिया बेहतर नहीं हो पा रहा है। ऐसी स्थिति में किसान अब आधुनिक कृषि की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। इसमें किसानों को लागत कम और मुनाफा अधिक होने की संभावना रहती है। परंपरागत कृषि में वैसी आमदनी नहीं हो पाती है।
यह हिन्दुस्तान अखबार की ऑटेमेटेड न्यूज फीड है, इसे लाइव हिन्दुस्तान की टीम ने संपादित नहीं किया है।