कांग्रेस नेता सरला मिश्रा की मौत की जांच कैसे होगी: 28 साल बाद बोतल पर फिंगर प्रिंट मिलना मुश्किल, हैंडराइटिंग हो सकती है मैच – Madhya Pradesh News

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कांग्रेस नेता सरला मिश्रा की मौत की जांच कैसे होगी:  28 साल बाद बोतल पर फिंगर प्रिंट मिलना मुश्किल, हैंडराइटिंग हो सकती है मैच – Madhya Pradesh News

कांग्रेस नेता सरला मिश्रा की मौत की जांच कैसे होगी: 28 साल बाद बोतल पर फिंगर प्रिंट मिलना मुश्किल, हैंडराइटिंग हो सकती है मैच – Madhya Pradesh News

कांग्रेस नेत्री सरला मिश्रा की मौत के मामले की फिर से जांच होगी। भोपाल जिला अदालत ने पुलिस की खात्मा रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पुलिस की जांच में कई गंभीर खामियां हैं। बता दें कि सरला मिश्रा की मौत 14 फरवरी 1997 को भोपाल के टीट

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प्रारंभिक जांच में पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया था और मामले को बंद करने के लिए कोर्ट में आवेदन किया था। जबकि, सरला मिश्रा के भाई ने कोर्ट में हत्या की साजिश बताते हुए तत्कालीन दिग्विजय सरकार पर मामले को दबाने का आरोप लगाया था। परिजन के आपत्ति दर्ज करने के बाद 16 अप्रैल को कोर्ट ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं।

अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि कोर्ट ने जिन बिंदुओं को लेकर जांच के आदेश दिए हैं, क्या उन बिंदुओं की नए सिरे से जांच की जा सकती है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए दैनिक NEWS4SOCIALने फॉरेंसिक साइंस और हैंडराइटिंग एक्सपर्ट्स के अलावा कानून के जानकारों से बात की।

संडे स्टोरी में पढ़िए क्या था 28 साल पुराना सरला मिश्रा की मौत का मामला और कोर्ट ने किन बिंदुओं पर पुलिस को नए सिरे से जांच के लिए कहा है? इसे लेकर क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

पुलिस को मिले जले कपड़े, फटे कागज के टुकड़े सरला मिश्रा भोपाल के साउथ टीटी नगर स्थित सरकारी आवास में संदिग्ध परिस्थितियों में जल गई थीं। घटना के ढाई घंटे बाद देर रात 1.30 बजे उन्हें हमीदिया अस्पताल में भर्ती कराया गया था। फॉरेंसिक टीम घटना के 12 घंटे बाद साउथ टीटी नगर स्थित सरला मिश्रा के क्वार्टर में पहुंची थी।

पुलिस के रिकॉर्ड के अनुसार घटनास्थल पर जले हुए कपड़े, बाल, कैरोसिन का कंटेनर, माचिस का खोखा, फटे हुए कागज के टुकड़े और शराब की एक खाली बोतल मिली थी। तत्कालीन गृहमंत्री चरणदास महंत ने 27 फरवरी 1997 को विधानसभा में सीबीआई जांच का ऐलान किया था, लेकिन इसका नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ।

तीन साल की जांच के बाद 27 मार्च 2000 को टीटी नगर थाना पुलिस ने केस की फाइल बंद कर दी। पुलिस ने घटनास्थल से मिले सबूतों और सरला मिश्रा के मरने से पहले के बयान के आधार पर इसे खुदकुशी करार दिया था।

19 साल बाद कोर्ट में खात्मा रिपोर्ट पेश पुलिस ने जिस समय खात्मा लगाया था उस समय दिग्विजय सिंह की सरकार थी। 19 साल बाद कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार सत्ता में लौटी तो कोर्ट में इस मामले की खात्मा रिपोर्ट पेश की गई। सरला मिश्रा के भाई अनुराग मिश्रा ने इस खात्मा रिपोर्ट पर अपनी आपत्ति पेश की थी। इसके साथ ही उन्होंने इस संबंध में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी।

उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई के बाद भोपाल जिला कोर्ट को आदेश दिए थे। उसके बाद से यह मामला यहां चल रहा था। भोपाल कोर्ट की न्यायाधीश पलक राय ने अपने आदेश में खात्मा रिपोर्ट को अधूरा बताया। सरला मिश्रा के भाई अनुराग मिश्रा का आरोप है कि उनकी बहन की मौत आत्महत्या नहीं, बल्कि पूर्व नियोजित हत्या थी।

अब सिलसिलेवार जानिए इन सवालों का जवाब

1.सरला के मृत्यु पूर्व बयान पर किसके साइन?

सवाल उठे: भाई अनुराग मिश्रा ने कोर्ट में आरोप लगाया कि मृत्युपूर्व बयानों पर उनकी बहन के साइन ही नहीं है, क्योंकि वह 90 प्रतिशत से ज्यादा झुलस चुकी थीं और साइन कर ही नहीं सकतीं थीं। पुलिस ने उनके साइन की जांच तक नहीं कराई।

अब क्या हो सकता है: NEWS4SOCIALने इस मामले में हैंडराइटिंग एक्सपर्ट और रिटायर्ड डीएसपी अवधेश नामदेव से बात की। नामदेव ने बताया- पुलिस को दिए बयान में मरने वाले के ही हस्ताक्षर थे या नहीं, इसकी जांच आज भी संभव है। इसके लिए सरला मिश्रा के लिखे दस्तावेज या उनके हस्ताक्षर के नमूने चाहिए होंगे।

इनका मिलान मृत्यु पूर्व दिए गए बयान में किए गए हस्ताक्षर से किया जा सकता है। वे कहते हैं कि ऐसे मामलों में सरकारी दस्तावेजों को ज्यादा प्रमाणिक माना जाता है। सरला मिश्रा ने महापौर का चुनाव लड़ा था। उस वक्त उन्होंने जो नामांकन पत्र दाखिल किया था। उसके दस्तावेजों से भी हस्ताक्षर के नमूने लिए जा सकते हैं।

2. बिस्तर पर मिले कागज के टुकड़ों पर किसकी राइटिंग? सवाल उठे: कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है कि फरियादी अनुराग मिश्रा ने बयान दिया कि पुलिस ने सरला मिश्रा के जलने के बाद क्वार्टर में बेड पर मिले कागज के टुकड़ों की जांच तक नहीं की। पेन से लिखे कागज के टुकड़ों पर किसकी हैंडराइटिंग थी, पुलिस ने ये पता लगाने की कोशिश नहीं की।

अब क्या हो सकता है: हैंडराइटिंग एक्सपर्ट नामदेव कहते है कि हैंडराइटिंग की जांच आज भी हो सकती है। कागज के फटे हुए टुकड़ों को अरेंज कर इनकी जांच की जा सकती है। इतना ही नहीं जले हुए कागज में क्या लिखा है? ये पढ़ना भी संभव है। इस तरह से ये देखा जा सकता है कि उस समय कमरे में जो कागज मिले थे, उनपर सरला मिश्रा की ही राइटिंग थी या नहीं।

सरला का दिल्ली में दस जनपथ पर सोनिया गांधी के घर पर भी आना-जाना था।

3.शराब की बोतल पर किसके फिंगर प्रिंट थे? सवाल उठे: पुलिस को उस समय सरला मिश्रा के कमरे से शराब की एक खाली बोतल मिली थी। पुलिस ने ये साबित करने की कोशिश की थी कि सरला ने नशे की हालत में खुद को आग लगाई। जबकि, भाई अनुराग का कहना है कि तत्कालीन सरकार दीदी को बदनाम करना चाहती थी, इसलिए शराब की बोतल प्लांट की गई। बोतल से फिंगरप्रिंट तक नहीं लिए गए, यही साजिश का सबूत है।

अब क्या हो सकता है: फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट एसआर तिवारी कहते हैं कि किसी भी घटना के कुछ घंटों में एफएसएल टीम मौके पर पहुंचकर फिंगरप्रिंट प्रिजर्व करती है। या तो खुद फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट मौके पर जाते हैं या उनके दूर होने की स्थिति में सबूतों को प्रिजर्व कर लैब भेजा जाता है।

इस मामले में शराब की बोतल को सबूत बताया जा रहा है, तो यह देखना होगा कि उस समय फॉरेंसिक एक्सपर्ट ने उस पर से फिंगरप्रिंट के सैंपल लिए थे या नहीं? यदि सैंपल लिए थे, तो आज भी वो सबूत के तौर पर इस्तेमाल हो सकते हैं। यदि बोतल से फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए, तो 28 साल बाद बोतल पर फिंगरप्रिंट होना बड़ा मुश्किल दिखाई देता है।

4.लैंडलाइन फोन जब्त नहीं, कॉल रिकॉर्ड मिलेगा क्या ?

सवाल उठे: पुलिस ने अपनी थ्योरी में कहा कि सरला मिश्रा जब जल रही थी, तब उन्होंने पड़ोसी को कॉल किया था। भाई अनुराग मिश्रा ने कोर्ट में आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि कोई व्यक्ति जलते हुए कैसे कॉल कर सकता है, वो भी डॉयल करने वाले फोन से? साथ ही फोन के कॉल रिकॉर्ड भी नहीं लिए गए थे।

अब क्या हो सकता है: फॉरेंसिक एक्सपर्ट कहते हैं कि जब लैंडलाइन फोन जब्त ही नहीं किया गया, तो ये कहना मुश्किल है कि सरला मिश्रा ने जलते हुए फोन के रिसीवर को उठाया था। यदि फोन जब्त किया जाता और उसके रिसीवर से फिंगरप्रिंट लिए जाते, तभी ये कहा जा सकता था।

जहां तक कॉल रिकॉर्ड की डिटेल निकालने की बात है तो बीएसएनएल में रहे सीनियर इंजीनियर नरेश तंवर कहते हैं- 1997 में टेलिफोन एक्सचेंज सी डॉट सिस्टम पर काम करते थे, आपने देखा होगा तब एक्सचेंज में कई प्लेट्स लगी होती थीं। इसके बाद एक्सचेंज अपडेट हो गए, सब कुछ कम्प्यूटराइज्ड हो गया, प्लेट्स हटा दी गईं।

5.बिसरा और मौके की जांच से क्या मिलेगा? रिटायर्ड फारेंसिक एक्सपर्ट बताते हैं, 28 साल लंबा वक्त होता है, यदि इस मामले में बॉयोलॉजिकल एविडेंस सहेजे भी गए हों, तब भी सब खराब हो गए होंगे। इधर स्मार्ट सिटी बनाने के दौरान एफ टाइप के सभी क्वाटर्स तोड़ दिए गए हैं, ऐसे में कोई सबूत मिलना संभव नहीं है।

वैसे भी यदि मकान बचा भी रहता तो जिस मकान में घटना हुई उसमें इतने साल बाद उसमें सबूतों के बचे होने की संभावना बेहद कम ही होती। इस तरह मौके की फॉरेसिंक जांच की संभावना नहीं है।

सरला मिश्रा इसी तरह के के क्वार्टर में रहती थीं। अब ऐसे इक्का दुक्का क्वार्टर ही बचे हैं।

पिता ने बेटी की हत्या का आरोप लगाया था सरला मिश्रा के परिजन शुरुआत से ही इसे हत्या की साजिश बता रहे हैं। उस वक्त इस घटना को नजदीक से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार पंकज पटैरिया बताते हैं कि जब सरला मिश्रा का शव होशंगाबाद( अब नर्मदापुरम) लाया गया था, तब लोग बेहद हैरान थे।

भारी पुलिस बल के साथ शव को कुछ समय के लिए उनके निवास प्रेम कुटी के सामने रोका गया था। तब पिता अश्विनी मिश्रा बाहर आए थे और बेहद गुस्से में थे। उन्होंने आरोप लगाया था कि मेरी बेटी को मार डाला गया। भारी सुरक्षा के बीच उनका अंतिम संस्कार किया गया था।

तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह पर परिवार के आरोप

सरला के भाई अनुराग मिश्रा कहते हैं कि मेरी बड़ी बहन कांग्रेस की सक्रिय नेता थीं। उनका दस जनपथ पर सोनिया गांधी के घर पर आना-जाना था। उनकी मौत जिन परिस्थितियों में हुई उसमें कई ऐसे तथ्य हैं जो यह बताते हैं कि उनकी हत्या हुई थी, लेकिन पुलिस ने उस वक्त नेताओं को बचाने के लिए 2000 में खात्मा लगा दिया था।

अनुराग का कहना है कि मेरी बहन की हत्या हुई है। उनका तत्कालीन सीएम से झगड़ा हुआ था। जिस समय खात्मा लगाया गया था उस समय दिग्विजय सिंह की सरकार थी। 19 साल बाद कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार आई तो रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई।

परिस्थितिजन्य सबूतों और बयानों पर हो सकती है जांच

वहीं पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का कहना है कि ये पहली बार नहीं है। इसे कम से कम 20 साल हो गए है। जितनी जांच करानी है, करा लें। स्वागत है। पहले भी बीजेपी की सरकार जांच करा चुकी है। दूसरी तरफ वरिष्ठ एडवोकेट मोना लक्ष्मी कहती हैं कि ऐसे मामले रेयर होते हैं।

अब जब अधिकतर सबूत मौजूद नहीं है, तब पुलिस की जांच परिस्थितिजन्य सबूतों पर होगी। इस मामले से जुड़े जो भी गवाह जीवित होंगे, उनके बयान लिए जा सकते हैं।

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