करौली, अमरोहा, गोरखपुर… 72 घंटे के अंदर सांप्रदायिक नफरत की तीन घटनाएं, कोई साजिश तो नहीं? h3>
नई दिल्ली: राजस्थान के करौली में शनिवार को हिंदू नव वर्ष के मौके पर निकाली गई बाइक रैली पर मुस्लिम इलाके में हमला होता है और दर्जनों लोग घायल हो जाते हैं। दुकानों में तोड़-फोड़ और आगजनी होती है, फिर स्थिति और भी बिगड़ जाती है। दिन बदलकर रविवार हुआ और जगह बदलकर उत्तर प्रदेश का अमरोहा। गूगल मैप के मुताबिक, करौली से करीब 480 किमी दूर उत्तर प्रदेश के अमरोहा में शरारती तत्वों ने दरगाह में आग लगा दी। फिर से दिन बदला, जगह बदली और सांप्रदायिक नफरत का एक और वाकया। अमरोहा से करीब 660 किमी दूर गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मंदिर में मुर्तजा नाम का युवक लोहे का बना टेढ़ा हथियार जिसे बांका कहा जाता है, लेकर अल्लाहू अकबर चिल्लाते हुए घुस जाता है। वहां वो सुरक्षा बलों को निशाना बनाना चाहता था, लेकिन पकड़ा गया। यानी, 72 घंटे के अंदर सांप्रदायिकता की तीन बड़ी घटनाएं।
क्या ये सब स्वतःस्फूर्त हैं या फिर सोची-समझी साजिश? आप पूछ सकते हैं कि सैकड़ों किमी दूर-दूर के इलाकों में अलग-अलग दिन हुई घटनाओं के तार जोड़ने का क्या मतलब? क्या कोई साजिश का सुराग मिला है? दरअसल, यह खंगालना तो सुरक्षा एजेंसियों का है, लेकिन जब तीन दिन में एक ही नेचर की तीन घटनाएं हो जाएं तो संदेह पैदा होता ही है। वैसे भी करौली और गोरखपुर केस में जांच आगे बढ़ चुकी है और कई तथ्य सामने आ चुके हैं। इन तथ्यों को देखें, परखें और खुद ही अंदाजा लगाएं कि ये किस ओर इशारा कर रहे हैं…
जांच में खुल रहीं करौली हिंसा की परतें
सबसे पहले बात राजस्थान के करौली में हिंदुओं की रैली पर हुए हमले की। चैत्र मास का पहले दिन से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। इस बार शनिवार को हिंदू नववर्ष का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर कुछ लोगों ने बाइक रैली निकाली। रैली फूटा कोट मोहल्ला से गुजर ही रही थी कि वहां के घरों की छतों से ताबड़तोड़ पत्थरबाजी होने लगी। तुरंत वहां की दुकानों-मकानों से आग की लपटें भी उठने लगीं। बताया जाता है कि करौली में हर वर्ष हिंदू नववर्ष की रैली निकला करती थी, तब छतों से फूल बरसा करते थे। इस बार फूलों की जगह पत्थरों ने ले ली। साजिश के संदेह की बड़ी वजह यही है। एक बड़ी बात यह भी है कि इस्लामी कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) दावा कर रहा है कि उसने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पुलिस को चिट्ठी लिखी थी कि जुलूस निकला तो हिंसा हो सकती है। बहरहाल, जिले में कर्फ्यू की अवधि 7 अप्रैल मध्य रात्रि तक बढ़ा दी गई है, हालांकि स्थिति अभी नियंत्रण में है। करौली की सांप्रदायिक वारदात के पीछे पार्षद मतलूब अहमद का सबसे बड़ा हाथ बताया जा रहा है। इससे भी साजिश की आशंका गहरी हो जाती है। वहीं, पथराव की अगुवाई करने वाला मुख्य आरोपी अहमद पुलिस पकड़ से अब भी दूर है।
दरगाह की आग से अमरोहा को दहकाने की साजिश?
अमरोहा में देहात थाना स्थित कांकेर सराय में रविवार की रात किसी ने हजरत हातिम शाह की दरगाह में आग लगा दी। अभी रमजान का महीना चल रहा है, इसलिए रोजा रखने वाले सहरी के लिए सुबह 4 बजे ही उठ जाते हैं। एक रोजेदार जब दरगाह में साफ-सफाई करने पहुंचा तो पता चला कि किसी ने रात में ही आग लगा दी थी। दरगाह में रखे गए सामान भी जल चुके थे। ग्रामीणों को घटना की जानकारी मिली तो भीड़ जुटने लगी और मुस्लिम समुदाय में आक्रोश फैल गया। उधर, पुलिस को सूचना मिली तो वह भी बिना देर किए दल-बल के साथ मौके पर पहुंच गई। आगजनी के पीछे कौन है? क्या किसी ने किसी दूसरे के इशारे पर तो इस घटना को अंजाम तो नहीं दिया है? पुलिस इन पहलुओं की जांच कर रही है। अब तक कोई सुराग नहीं मिला है, लेकिन इस बात से इन्कार तो नहीं ही किया जा सकता है कि अगर किसी ने जान-बूझकर आग लगाई तो मकसद सांप्रदायिका भड़काना भी हो सकता है, बशर्ते किसी की निजी खुन्नस नहीं हो।
गोरखनाथ मंदिर में घुसे मुर्तजा के पीछे कौन?
अब बात गोरखनाथ मंदिर में सोमवार को हुए चौंकाने वाले वाकये की। यह घटना इसलिए भी बड़ी है क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मंदिर के महंत हैं। वहां मुर्तजा अली अब्बासी नाम का एक सख्श धारदार हथियार लेकर अल्लाहू अकबर के नारे लगाता हुआ घुस जाता है। वह चिल्लाता है कि कोई उसे मार दे। वह सुरक्षा बलों पर हमला करके दो सिपाहियों को जख्मी कर देता है। हालांकि, वो और ज्यादा कोहराम मचा सके, उससे पहले पकड़ा जाता है। अब तक हुई जांच से ऐसा लग रहा है कि मुर्तजा के पीछे आतंकी नेटवर्क भी हो सकता है। मुर्तजा केमिकल इंजीनियर है। घरवालों का कहना है कि मुर्तजा गुमशुम रहा करता था। किसी से ज्यादा बातचीत नहीं, कमरे में बंद रहना, कट्टरपंथी इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक की सीडी मिलना… ऐसे कई सूत्र हैं जो कुछ इशारा कर रहे हैं। घटना के सिलसिले में जिन आरोपियों को पकड़ा गया है, उनमें एक का कनेक्शन तो गजवात-उल-हिंद से मिला है। अब संदेह पैदा हो रहा है कि क्या आतंकी नेटवर्क ने मुर्तजा को भेजकर किसी बड़ी घटना को अंजाम देने से पहले ट्रायल किया है।
साजिश का संदेह लाजिमी
ध्यान रहे कि 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से देश में कोई बड़ी आतंकी घटना को अंजाम नहीं दिया जा सका है। सरकार, खुफिया एजेंसियां और सुरक्षा बलों की सतर्कता और आपसी तालमेल के कारण आतंकी वारदातों को कश्मीर तक ही सीमित रखने में कामयाबी मिलती रही है। वक्त बीतने के साथ ही आतंकी सरगना दबाव में आ रहे हैं और देश में कोई बड़ी घटना को अंजाम देने को बेताब हैं। दिल्ली समेत देश के अलग-अलग इलाकों से आतंकियों की गिरफ्तारी भी हो रही है। ऐसे में अगर 72 घंटे के अंदर एक ही मिजाज की तीन घटनाएं घट जाएं तो साजिश का संदेश होना लाजिमी है।
क्या ये सब स्वतःस्फूर्त हैं या फिर सोची-समझी साजिश? आप पूछ सकते हैं कि सैकड़ों किमी दूर-दूर के इलाकों में अलग-अलग दिन हुई घटनाओं के तार जोड़ने का क्या मतलब? क्या कोई साजिश का सुराग मिला है? दरअसल, यह खंगालना तो सुरक्षा एजेंसियों का है, लेकिन जब तीन दिन में एक ही नेचर की तीन घटनाएं हो जाएं तो संदेह पैदा होता ही है। वैसे भी करौली और गोरखपुर केस में जांच आगे बढ़ चुकी है और कई तथ्य सामने आ चुके हैं। इन तथ्यों को देखें, परखें और खुद ही अंदाजा लगाएं कि ये किस ओर इशारा कर रहे हैं…
जांच में खुल रहीं करौली हिंसा की परतें
सबसे पहले बात राजस्थान के करौली में हिंदुओं की रैली पर हुए हमले की। चैत्र मास का पहले दिन से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। इस बार शनिवार को हिंदू नववर्ष का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर कुछ लोगों ने बाइक रैली निकाली। रैली फूटा कोट मोहल्ला से गुजर ही रही थी कि वहां के घरों की छतों से ताबड़तोड़ पत्थरबाजी होने लगी। तुरंत वहां की दुकानों-मकानों से आग की लपटें भी उठने लगीं। बताया जाता है कि करौली में हर वर्ष हिंदू नववर्ष की रैली निकला करती थी, तब छतों से फूल बरसा करते थे। इस बार फूलों की जगह पत्थरों ने ले ली। साजिश के संदेह की बड़ी वजह यही है। एक बड़ी बात यह भी है कि इस्लामी कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) दावा कर रहा है कि उसने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पुलिस को चिट्ठी लिखी थी कि जुलूस निकला तो हिंसा हो सकती है। बहरहाल, जिले में कर्फ्यू की अवधि 7 अप्रैल मध्य रात्रि तक बढ़ा दी गई है, हालांकि स्थिति अभी नियंत्रण में है। करौली की सांप्रदायिक वारदात के पीछे पार्षद मतलूब अहमद का सबसे बड़ा हाथ बताया जा रहा है। इससे भी साजिश की आशंका गहरी हो जाती है। वहीं, पथराव की अगुवाई करने वाला मुख्य आरोपी अहमद पुलिस पकड़ से अब भी दूर है।
दरगाह की आग से अमरोहा को दहकाने की साजिश?
अमरोहा में देहात थाना स्थित कांकेर सराय में रविवार की रात किसी ने हजरत हातिम शाह की दरगाह में आग लगा दी। अभी रमजान का महीना चल रहा है, इसलिए रोजा रखने वाले सहरी के लिए सुबह 4 बजे ही उठ जाते हैं। एक रोजेदार जब दरगाह में साफ-सफाई करने पहुंचा तो पता चला कि किसी ने रात में ही आग लगा दी थी। दरगाह में रखे गए सामान भी जल चुके थे। ग्रामीणों को घटना की जानकारी मिली तो भीड़ जुटने लगी और मुस्लिम समुदाय में आक्रोश फैल गया। उधर, पुलिस को सूचना मिली तो वह भी बिना देर किए दल-बल के साथ मौके पर पहुंच गई। आगजनी के पीछे कौन है? क्या किसी ने किसी दूसरे के इशारे पर तो इस घटना को अंजाम तो नहीं दिया है? पुलिस इन पहलुओं की जांच कर रही है। अब तक कोई सुराग नहीं मिला है, लेकिन इस बात से इन्कार तो नहीं ही किया जा सकता है कि अगर किसी ने जान-बूझकर आग लगाई तो मकसद सांप्रदायिका भड़काना भी हो सकता है, बशर्ते किसी की निजी खुन्नस नहीं हो।
गोरखनाथ मंदिर में घुसे मुर्तजा के पीछे कौन?
अब बात गोरखनाथ मंदिर में सोमवार को हुए चौंकाने वाले वाकये की। यह घटना इसलिए भी बड़ी है क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मंदिर के महंत हैं। वहां मुर्तजा अली अब्बासी नाम का एक सख्श धारदार हथियार लेकर अल्लाहू अकबर के नारे लगाता हुआ घुस जाता है। वह चिल्लाता है कि कोई उसे मार दे। वह सुरक्षा बलों पर हमला करके दो सिपाहियों को जख्मी कर देता है। हालांकि, वो और ज्यादा कोहराम मचा सके, उससे पहले पकड़ा जाता है। अब तक हुई जांच से ऐसा लग रहा है कि मुर्तजा के पीछे आतंकी नेटवर्क भी हो सकता है। मुर्तजा केमिकल इंजीनियर है। घरवालों का कहना है कि मुर्तजा गुमशुम रहा करता था। किसी से ज्यादा बातचीत नहीं, कमरे में बंद रहना, कट्टरपंथी इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक की सीडी मिलना… ऐसे कई सूत्र हैं जो कुछ इशारा कर रहे हैं। घटना के सिलसिले में जिन आरोपियों को पकड़ा गया है, उनमें एक का कनेक्शन तो गजवात-उल-हिंद से मिला है। अब संदेह पैदा हो रहा है कि क्या आतंकी नेटवर्क ने मुर्तजा को भेजकर किसी बड़ी घटना को अंजाम देने से पहले ट्रायल किया है।
साजिश का संदेह लाजिमी
ध्यान रहे कि 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से देश में कोई बड़ी आतंकी घटना को अंजाम नहीं दिया जा सका है। सरकार, खुफिया एजेंसियां और सुरक्षा बलों की सतर्कता और आपसी तालमेल के कारण आतंकी वारदातों को कश्मीर तक ही सीमित रखने में कामयाबी मिलती रही है। वक्त बीतने के साथ ही आतंकी सरगना दबाव में आ रहे हैं और देश में कोई बड़ी घटना को अंजाम देने को बेताब हैं। दिल्ली समेत देश के अलग-अलग इलाकों से आतंकियों की गिरफ्तारी भी हो रही है। ऐसे में अगर 72 घंटे के अंदर एक ही मिजाज की तीन घटनाएं घट जाएं तो साजिश का संदेश होना लाजिमी है।