कटारिया के बाद नेता प्रतिपक्ष कौन? 7 दिन बाद भी BJP नहीं तय कर सकी एक नाम, जानिए वजह?

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कटारिया के बाद नेता प्रतिपक्ष कौन? 7 दिन बाद भी BJP नहीं तय कर सकी एक नाम, जानिए वजह?

कटारिया के बाद नेता प्रतिपक्ष कौन? 7 दिन बाद भी BJP नहीं तय कर सकी एक नाम, जानिए वजह?


जयपुर: राजस्थान विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष रहे गुलाबचंद कटारिया को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने असम का राज्यपाल नियुक्त किया है। इसके बाद सूबे में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली हो गया है। 7 दिन बाद भी बीजेपी सदन के नेता का नाम तय नहीं कर पाई है। वर्तमान में राजस्थान विधानसभा में बजट सत्र चल रहा। सरकार को घेरने के लिए नेता प्रतिपक्ष की भूमिका अहम होती है। नेता प्रतिपक्ष ही सदन के किसी भी नेता की ओर से लगाए गए सवाल पर बोलते हैं। वही सरकार को घेरने का काम करते हैं लेकिन अब नेता प्रतिपक्ष नहीं होने से विपक्ष की ओर से सरकार को घेरने वाला कोई नहीं है। हालांकि, सदन की कार्रवाई 27 फरवरी तक स्थगित है। अब 28 फरवरी को सुबह 11 बजे फिर से सदन की कार्रवाई शुरू होगी।

नाम तय नहीं कर पाने के पीछे यह है वजह

नेता प्रतिपक्ष का नाम तय नहीं कर पाने के पीछे बीजेपी की गुटबाजी एक बड़ा कारण है। दूसरी वजह है कि जिस नेता का नाम तय होगा, वह भावी मुख्यमंत्री की दौड़ में दावेदार बन जाएगा। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष के नाम पर मुहर तभी लगेगी जब केंद्रीय नेतृत्व इस पर फैसला लेगा। प्रदेश के नेताओं की निगाहें अब केंद्रीय नेतृत्व पर टिकी है। किसी भी तरह के विवाद से बचने को लेकर प्रदेश स्तर पर इस बारे में कोई भी फैसला नहीं लिया जा रहा। इतना तो तय है कि जो भी विधायक नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर बैठेगा, उनका कद और पद पार्टी में स्वतः ही बढ़ जाएगा। हालांकि जब तक नेता प्रतिपक्ष का नाम तय नहीं हो जाता तब तक उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाएंगे।

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नेता प्रतिपक्ष की रेस में ये नेता

नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में राजस्थान के चार नेताओं के नाम प्रमुख माने जा रहे हैं। पहला राजेन्द्र राठौड़ का जो वर्तमान में उपनेता प्रतिपक्ष हैं। दूसरा सतीश पूनिया जो वर्तमान में पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष की भूमिका में हैं। पूनिया का कार्यकाल खत्म हो चुका है लेकिन नया अध्यक्ष तय होने तक प्रदेशाध्यक्ष की भूमिका वही निभा रहे हैं। तीसरा मालवीय नगर से विधायक कालीचरण सराफ का जो कि पूर्व मंत्री और 6 बार विधायक रहे हैं। चौथा नाम वासुदेव देवनानी का है जो पूर्व में मंत्री रहे हैं। वो संघ में भी लम्बे समय से काम किए हैं।

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जातिगत समीकरण बैठाने की कोशिश

राजस्थान में जाट और राजपूत दो जातियां चुनावों में विशेष महत्व रखती है। ऐसे में जातिगत समीकरण साधते हुए राजेन्द्र राठौड़ और सतीश पूनिया में से किसी एक नेता तो नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दिए जाने की प्रबल संभावना है। चुनावी साल में जातिगत समीकरण साधना पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। वैसे बीजेपी में केंद्रीय नेतृत्व हमेशा चौंकाने वाला नाम ही तय करता आया है। पहली बार विधायक बने सतीश पूनिया के बारे में किसी ने सोचा ही नहीं था कि वे पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष बनेंगे। हालांकि, तीन साल पहले पार्टी ने उन्हें प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी सतीश पूनिया को दी। नेता प्रतिपक्ष के बारे में भी केन्द्रीय नेतृत्व ऐसा ही चौंकाने वाला नाम भी तय कर सकते हैं।

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रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़, जयपुर

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