एमबीबीएस, एमडी, सुपर स्पेशियलिटी डॉक्टर छोड़कर जा रहे प्रदेश | MBBS, MD, super specialty doctor leaving the state | Patrika News

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एमबीबीएस, एमडी, सुपर स्पेशियलिटी डॉक्टर छोड़कर जा रहे प्रदेश | MBBS, MD, super specialty doctor leaving the state | Patrika News

एमबीबीएस, एमडी, सुपर स्पेशियलिटी डॉक्टर छोड़कर जा रहे प्रदेश | MBBS, MD, super specialty doctor leaving the state | Patrika News

मप्र में डॉक्टरों की कमी है और सरकार इसे दूर नहीं कर पा रही है। ङ्क्षचता की बात यह भी है कि प्रदेश से डॉक्टरों का पलायन भी बढ़ रहा है। हर साल करीब एक हजार डॉक्टर या तो नौकरी छोड़ रहे हैं या मप्र मेडिकल काउंसिल से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेकर दूसरे राज्य चले जाते हैं।

भोपाल

Updated: April 21, 2022 11:51:19 am

भोपाल. मप्र में डॉक्टरों की कमी है और सरकार इसे दूर नहीं कर पा रही है। ङ्क्षचता की बात यह भी है कि प्रदेश से डॉक्टरों का पलायन भी बढ़ रहा है। हर साल करीब एक हजार डॉक्टर या तो नौकरी छोड़ रहे हैं या मप्र मेडिकल काउंसिल से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेकर दूसरे राज्य चले जाते हैं। हालात ये हैं कि कागजों में तो 57 हजार डॉक्टर प्रदेश में हैं, लेकिन हकीकत में सिर्फ 17 हजार काम कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग के नियमों में विसंगतियों के कारण ऐसे हालात बन रहे हैं।

ऐसे कम हो रहे डॉक्टर
मप्र मेडिकल काउंसिल के आंकड़ों के मुताबिक 2019 में 704 तो 2020 में 1102 और 2021 में 1188 डॉक्टर प्रदेश छोड़कर जा चुके हैं। इस साल दो महीने के भीतर ही 110 डॉक्टर एनओसी ले चुके हैं। इससे भी बड़ी ङ्क्षचता यह है कि प्रदेश से जाने वाले डॉक्टरों में एमबीबीएस, एमडी, एमएस के साथ सुपर स्पेशियलिटी विधा के चिकित्सक भी हैं।

मालूम हो कि अब प्रदेश में सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों से हर साल 3800 के करीब एमबीबीएस डिग्रीधारी चिकित्सक निकल रहे हैं।

चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में गड़बड़ी
-प्रमोशन पॉलिसी: 35 साल पुराने नियम हैं। असि. प्रोफेसर से प्रोफसर बनने में 20 साल लगते हैं। डेमोस्ट्रेटर को 30 साल।
– मेडिकल रिएंबर्समेंट: सभी विभागों के कर्मचारियों की बीमारी कर पूरा खर्च मिल जाता है लेकिन मेडिकल टीचर्स को सिर्फ 3000 रुपए।
-नेशनल पेंशन स्कीम-केन्द्र सरकार इस स्कीम के तहत सभी विभागों के कर्मचारियों को पेंशन देती हैं, सिर्फ मप्र डीएमई इसमें शामिल नहीं है।
-सेवा शर्तों में अंतर: चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में काम करने वाले चिकित्सकों का ग्रेड पे और अन्य सेवा शर्तें अलग-अलग हैं।
-निजी प्रैक्टिस: स्वास्थ्य विभाग में अन्य राज्यों के मुकाबले निजी प्रैक्टिस पर पाबंदियां हैं। घर में जांच उपकरण रखने की छूट नहीं है।
-असुरक्षा: ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में डॉक्टरों में असुरक्षा की भावना है।
-राजनीतिक दबाव: निजी और सरकारी दोनों क्षेत्र में चिकित्सकों को कई बार मध्य प्रदेश में राजनीतिक दबाव में काम करना पड़ता है।

-दो साल में 150 डॉक्टर अलविदा: बीते दो सालों में जीएमसी से 24 डॉक्टर चले गए। राज्य से 150 से ज्यादा चिकित्सक जा चुके हैं। इस साल भी चिकित्सा शिक्षक सरकारी मेडिकल कॉलेज छोड़ सकते हैं।

-प्रमोशन नीति में भेदभाव: डॉक्टरों की अरुचि की वजह असमान प्रमोशन नीति भी है। मेडिसिन, सर्जरी, पीडियाट्रिक, गायनोकॉलॉजी, एनिस्थिसिया जैसे विषयों में पांच साल में प्रमोशन मिल जाता है। नेत्र रोग, ऑर्थोपेडिक्स, ईएनटी, पैथोलॉजी और रेडियोलॉजी विषयों के डॉक्टरों को पहला प्रमोशन पाने में ३0 साल तक लग जाता है।

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वेतन कम, सम्मानजनक वातावरण भी नहीं

जब तक स्वास्थ्य विभाग में सेवा शर्तों को दुरुस्त नहीं किया जाता सरकारी अस्पतालों की स्थिति नहीं सुधरेगी। इसलिए स्टेट मेडिकल सर्विसेज का गठन करना जरूरी है। सरकारी अस्पतालों में सम्मानजनक वातावरण नहीं है। तहसीलदार स्तर का अधिकारी भी सरकारी अस्पतालों मे जांच करता है, जो सही नहीं है। वेतनमान के मामले में विभाग सबसे पीछे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में न तो सुविधाएं हैं न ही सुरक्षा। जब तक इन बातों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तब तक हमें डॉक्टर नहीं मिलेंगे।
– डॉ. एसके सक्सेना, पूर्व अधीक्षक, जेपी अस्पताल

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