एमपी की तरह चल रहा ‘ऑपरेशन’… ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह महाराष्ट्र में उद्धव सरकार के लिए काल बनेंगे एकनाथ शिंदे? h3>
भोपाल : महाराष्ट्र में सियासी अस्थिरता के संकेत मिल रहे हैं। शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे 15 से अधिक विधायकों को लेकर उड़ गए हैं। उन्होंने इतना बड़ा खेल कर दिया और महाराष्ट्र की महाअघाड़ी सरकार को भनक तक नहीं लगी। कुछ ऐसा ही मध्यप्रदेश में भी दो साल पहले हुआ था। बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर कमलनाथ की सरकार को गिराने के लिए फूलप्रूफ तैयारी की थी। ऑपरेशन लोट्स को सफल बनाने के लिए एमपी में दो प्लान तैयार किए गए थे। प्लान ए को कांग्रेस ने कुछ घंटे में ही डिकोड कर लिया था और गुरुग्राम के होटलों में ठहरे विधायकों की वापसी शुरू करवा दी थी। प्लान बी के बारे में कांग्रेस को भनक तक नहीं लगी और सिंधिया खेमे के सभी विधायकों को लेकर बीजेपी बेंगलुरु उड़ गई।
एमपी में 15 साल बाद दिसंबर 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी थी। सरकार गठन के साथ ही प्रदेश में कमलनाथ की सरकार गुटबाजी में उलझ गई थी। प्रदेश में कांग्रेस में तीन गुट थे। हर गुट सरकार में दखल चाहती थी। कमलनाथ, दिग्विजय और ज्योतिरादित्य सिंधिया का अलग-अलग खेमा था। सिंधिया की बात जब आती थी तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह एक हो जाते थे। सिंधिया सरकार और संगठन में हिस्सेदारी को लेकर लगातार दबाव बना रहे थे लेकिन आलाकमान लगातार अनदेखी कर रही थी।
बीजेपी ने इसकी का फायदा उठाया। सिंधिया ने भी कई मौकों पर पार्टी लाइन से अलग जाकर इस बात के संकेत देने लगे थे कि वह बीजेपी के करीब जा रहे हैं। तीन मार्च 2020 को एमपी में तख्तापलट की शुरुआत हो गई। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट किया कि बीजेपी विधायकों को गुरुग्राम स्थित आईटीसी ग्रैंड होटल में लेकर जा रही है। उस वक्त कमलनाथ जबलपुर के एक कार्यक्रम में थे। दिग्विजय सिंह के ट्वीट से एमपी के सियासी गलियारों में हड़कंप मच गया।
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गुरुग्राम गए सात विधायकों में सभी निर्दलीय और कुछ पुराने विधायक थे। इसके बाद दिग्विजय सिंह और उनके बेटे जयवर्धन समेत कुछ कांग्रेसी गुरुग्राम पहुंच गए। वहां से विधायकों को दिग्विजय सिंह भोपाल लेकर आए। कांग्रेस ने बीजेपी की प्लानिंग को डिकोड कर उसे फेल कर दिया था। इस ओर बीजेपी भी ध्यान नहीं दे रही थी। बीजेपी प्लान बी को अंजाम देने में जुटी थी। 4 मार्च शाम को खबर आई कि ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के सारे विधायक गायब हैं।
कांग्रेस में मच गया हड़कंप
पांच मार्च को खबर आई कि सिंधिया खेमे के सारे विधायक बेंगलुरु के एक होटल में पहुंच गए हैं। वह सभी लोगों की पहुंच से दूर हैं। कर्नाटक की पुलिस उन्हें सुरक्षा दे रही हैं। इसके बाद कांग्रेस खेमे में दिल्ली से भोपाल तक हड़कंप मच गया। भोपाल से जीतू पटवारी बेंगलुरु पहुंच गए। उन्हें कर्नाटक पुलिस ने होटल के अंदर नहीं जाने दिया। पटवारी ने वहां खूब बवाल किया लेकिन होटल के अंदर ठहरे विधायकों से उनकी बात नहीं हुई।
इसके बाद दिग्विजय सिंह भी वहां पहुंचे। विधायकों से मिलने की कोशिशें असफल हुईं। वहीं, एमपी में बीजेपी लगातार सरकार से मांग कर रही थी कि आप फ्लोर टेस्ट करवाएं। कमलनाथ इस मांग को लगातार टाल रहे थे और कह रहे थे कि हमारे विधायक लौट आएंगे। वहीं, ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी कुछ लोग मनाने में जुटे थे। लेकिन कमलनाथ की एक बात उन्हें चुभ गई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह सड़क पर उतर जाएं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया मानने को तैयार नहीं थे। इधर भोपाल में तत्कालीन सरकार में बेचैनी बढ़ गई थी। कमलनाथ ने ऑपरेशन लोट्स में शामिल लोगों पर कार्रवाई शुरू कर दी। उनके ठिकानों को सरकार की कार्रवाई चल रही थी, उम्मीद थी कि विधायक वापस लौट आएंगे। कमलनाथ की सारी कोशिशें फेल हो रही थीं कि और सरकार पर काले बादल मंडरा रहे थे। 11 मार्च 2020 को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद कमलनाथ की सरकार पर खतरा और बढ़ गया। साथ ही लोगों को नजरें ज्योतिरादित्य सिंधिया पर टिकी थी कि वह आगे क्या करेंगे। कुछ दिन में ही खबर आई कि सिंधिया बीजेपी ज्वाइन करेंगे। वहीं, बेंगलुरु में कैंप कर रहे विधायक और कुछ मंत्रियों ने विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा दे दिया। सरकार की सांसें खींचने के लिए कमलनाथ और उनकी टीम हर दिन पैंतराबाजी कर रही थी। वहीं, विधायकों ने यह तय कर लिया था कि उन्हें लौटना नहीं है।
कुछ दिन बाद कांग्रेस के कद्दावर नेता बिसाहूलाल सिंह लौटे। कांग्रेस ने दावा किया कि अब सभी लौट आएंगे। कमलनाथ से मुलाकात के बाद बिसाहूलाल सिंह शिवराज सिंह चौहान के पास चले गए और उन्होंने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली। इसके साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी दिल्ली में बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। इससे साफ हो गया था कि कांग्रेस की सरकार एमपी में बचने वाली नहीं है।
बीजेपी फ्लोर टेस्ट की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रूख किया। सुप्रीम कोर्ट से भी कांग्रेस को राहत नहीं मिली और कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट के निर्देश दिए। कमलनाथ पूरी तरह से स्थिति को भांप चुके थे। राज्यपाल ने भी उन्हें तलब किया था। इसके बाद राज्यपाल और कमलनाथ में खूब आरोप प्रत्यारोप का दौर चला। हर तरफ से उम्मीदें टूट रही थीं। कमलनाथ के पास सरकार बचाने का कोई चारा नहीं बचा था। उन्होंने 20 मार्च को फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे दिया।
महाराष्ट्र में भी कुछ ऐसे ही सीन बन रहे हैं। वहां भी नाराज एकनाथ शिंदे विधायकों को लेकर सूरत में कैंप किए हुए हैं। अब बताया जा रहा है कि लापता नेताओं के फोन नहीं लग रहे हैं। साथ ही पार्टी का उनसे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है। ऐसे में सवाल है कि क्या एमपी की तरह महाराष्ट्र में भी बीजेपी ने स्क्रिप्ट तैयार कर ली है।
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एमपी में 15 साल बाद दिसंबर 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी थी। सरकार गठन के साथ ही प्रदेश में कमलनाथ की सरकार गुटबाजी में उलझ गई थी। प्रदेश में कांग्रेस में तीन गुट थे। हर गुट सरकार में दखल चाहती थी। कमलनाथ, दिग्विजय और ज्योतिरादित्य सिंधिया का अलग-अलग खेमा था। सिंधिया की बात जब आती थी तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह एक हो जाते थे। सिंधिया सरकार और संगठन में हिस्सेदारी को लेकर लगातार दबाव बना रहे थे लेकिन आलाकमान लगातार अनदेखी कर रही थी।
बीजेपी ने इसकी का फायदा उठाया। सिंधिया ने भी कई मौकों पर पार्टी लाइन से अलग जाकर इस बात के संकेत देने लगे थे कि वह बीजेपी के करीब जा रहे हैं। तीन मार्च 2020 को एमपी में तख्तापलट की शुरुआत हो गई। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट किया कि बीजेपी विधायकों को गुरुग्राम स्थित आईटीसी ग्रैंड होटल में लेकर जा रही है। उस वक्त कमलनाथ जबलपुर के एक कार्यक्रम में थे। दिग्विजय सिंह के ट्वीट से एमपी के सियासी गलियारों में हड़कंप मच गया।
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गुरुग्राम गए सात विधायकों में सभी निर्दलीय और कुछ पुराने विधायक थे। इसके बाद दिग्विजय सिंह और उनके बेटे जयवर्धन समेत कुछ कांग्रेसी गुरुग्राम पहुंच गए। वहां से विधायकों को दिग्विजय सिंह भोपाल लेकर आए। कांग्रेस ने बीजेपी की प्लानिंग को डिकोड कर उसे फेल कर दिया था। इस ओर बीजेपी भी ध्यान नहीं दे रही थी। बीजेपी प्लान बी को अंजाम देने में जुटी थी। 4 मार्च शाम को खबर आई कि ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के सारे विधायक गायब हैं।
कांग्रेस में मच गया हड़कंप
पांच मार्च को खबर आई कि सिंधिया खेमे के सारे विधायक बेंगलुरु के एक होटल में पहुंच गए हैं। वह सभी लोगों की पहुंच से दूर हैं। कर्नाटक की पुलिस उन्हें सुरक्षा दे रही हैं। इसके बाद कांग्रेस खेमे में दिल्ली से भोपाल तक हड़कंप मच गया। भोपाल से जीतू पटवारी बेंगलुरु पहुंच गए। उन्हें कर्नाटक पुलिस ने होटल के अंदर नहीं जाने दिया। पटवारी ने वहां खूब बवाल किया लेकिन होटल के अंदर ठहरे विधायकों से उनकी बात नहीं हुई।
इसके बाद दिग्विजय सिंह भी वहां पहुंचे। विधायकों से मिलने की कोशिशें असफल हुईं। वहीं, एमपी में बीजेपी लगातार सरकार से मांग कर रही थी कि आप फ्लोर टेस्ट करवाएं। कमलनाथ इस मांग को लगातार टाल रहे थे और कह रहे थे कि हमारे विधायक लौट आएंगे। वहीं, ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी कुछ लोग मनाने में जुटे थे। लेकिन कमलनाथ की एक बात उन्हें चुभ गई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह सड़क पर उतर जाएं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया मानने को तैयार नहीं थे। इधर भोपाल में तत्कालीन सरकार में बेचैनी बढ़ गई थी। कमलनाथ ने ऑपरेशन लोट्स में शामिल लोगों पर कार्रवाई शुरू कर दी। उनके ठिकानों को सरकार की कार्रवाई चल रही थी, उम्मीद थी कि विधायक वापस लौट आएंगे। कमलनाथ की सारी कोशिशें फेल हो रही थीं कि और सरकार पर काले बादल मंडरा रहे थे। 11 मार्च 2020 को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद कमलनाथ की सरकार पर खतरा और बढ़ गया। साथ ही लोगों को नजरें ज्योतिरादित्य सिंधिया पर टिकी थी कि वह आगे क्या करेंगे। कुछ दिन में ही खबर आई कि सिंधिया बीजेपी ज्वाइन करेंगे। वहीं, बेंगलुरु में कैंप कर रहे विधायक और कुछ मंत्रियों ने विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा दे दिया। सरकार की सांसें खींचने के लिए कमलनाथ और उनकी टीम हर दिन पैंतराबाजी कर रही थी। वहीं, विधायकों ने यह तय कर लिया था कि उन्हें लौटना नहीं है।
कुछ दिन बाद कांग्रेस के कद्दावर नेता बिसाहूलाल सिंह लौटे। कांग्रेस ने दावा किया कि अब सभी लौट आएंगे। कमलनाथ से मुलाकात के बाद बिसाहूलाल सिंह शिवराज सिंह चौहान के पास चले गए और उन्होंने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली। इसके साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी दिल्ली में बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। इससे साफ हो गया था कि कांग्रेस की सरकार एमपी में बचने वाली नहीं है।
बीजेपी फ्लोर टेस्ट की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रूख किया। सुप्रीम कोर्ट से भी कांग्रेस को राहत नहीं मिली और कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट के निर्देश दिए। कमलनाथ पूरी तरह से स्थिति को भांप चुके थे। राज्यपाल ने भी उन्हें तलब किया था। इसके बाद राज्यपाल और कमलनाथ में खूब आरोप प्रत्यारोप का दौर चला। हर तरफ से उम्मीदें टूट रही थीं। कमलनाथ के पास सरकार बचाने का कोई चारा नहीं बचा था। उन्होंने 20 मार्च को फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे दिया।
महाराष्ट्र में भी कुछ ऐसे ही सीन बन रहे हैं। वहां भी नाराज एकनाथ शिंदे विधायकों को लेकर सूरत में कैंप किए हुए हैं। अब बताया जा रहा है कि लापता नेताओं के फोन नहीं लग रहे हैं। साथ ही पार्टी का उनसे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है। ऐसे में सवाल है कि क्या एमपी की तरह महाराष्ट्र में भी बीजेपी ने स्क्रिप्ट तैयार कर ली है।