एन.रघुरामन का कॉलम: हम किस तरह का ग्रामीण और शहरी अनुभव दे सकते हैं?

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एन.रघुरामन का कॉलम:  हम किस तरह का ग्रामीण और शहरी अनुभव दे सकते हैं?

एन.रघुरामन का कॉलम: हम किस तरह का ग्रामीण और शहरी अनुभव दे सकते हैं?

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2 घंटे पहले

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एन.रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

दशकों पहले एमबीए के दौरान मेरा क्लासरूम प्रोजेक्ट था, ‘भारत में चॉकलेट की खपत कैसे बढ़ाएं, जो तब प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 40 ग्राम थी।’ मैं चॉकलेट बनाने वाली कंपनियों के कई पेशेवरों से मिला और बाद में उनके विज्ञापनों तक पर नजर रखी, जिनकी पंचलाइन हुआ करती थी, ‘कुछ मीठा हो जाए।’

साल 2025 तक चॉकलेट कन्फेक्शनरी के बाजार में प्रति व्यक्ति औसत मात्रा केवल 100 ग्राम प्रति वर्ष होने की उम्मीद है और एक सर्वे का दावा है कि 2030 में ये प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 217 ग्राम तक हो जाएगी। यह आंकड़ा जापान से भिन्न है, जो एशिया का सबसे बड़ा चॉकलेट उपभोक्ता है, जहां प्रति व्यक्ति 2 किलो खपत है, जबकि यूरोप के कुछेक जगहों पर तो प्रति व्यक्ति 5 किलो और 9 किलो तक है।

ये आंकड़े मुझे तब याद आए, जब हालिया हैदराबाद यात्रा में मैं एक चॉकलेट फैक्ट्री गया, जिसे टाइम मैग्जीन ने 2024 के ‘वल्र्ड्स ग्रेटेस्ट प्लेस’ की सालाना सूची में रखा। चैतन्य मुप्पाला ने एक ऐसी इमर्सिव चॉकलेट फैक्ट्री की कल्पना की, जो आमतौर पर स्विट्जरलैंड जैसे देशों में होती है और साल 2023 में सपना साकार करते हुए मनम चॉकलेट कारखाना लगाया।

इस फैक्टरी या कारखाने में लोग, लाइव चॉकलेट बनाने वाले सेक्शन में जाकर चॉकलेट उत्पादन की पूरी प्रक्रिया देख सकते हैं। चॉकलेट निर्माता विशिष्ट कोवेचुअर की पूरी रेंज बनाते हैं, जहां कच्चे कोको बीन्स रोस्ट करने से लेकर, उन्हें छानने, पीसने, परिष्कृत करने, फिर कॉन्चिंग, टेम्परिंग और ढालते हुए स्मूथ व स्वादिष्ट चॉकलेट में बदलते हैं।

कलात्मक तरीके से बिल्कुल अनोखी चॉकलेट की दुनिया बनाने वाले मनम के चॉकलेट निर्माताओं को विजिटर्स देख भी सकते हैं, जो लजीज बौंबोन्स, ट्रफल्स से लेकर स्नेकेबल बार्क्स और क्लस्टर और मनम के विभिन्न केक भी बनाते हैं। इस कारखाने में चॉकलेट लैब मजेदार जगह है जहां लोग रचनात्मकता से खुद फ्लेवर बनाकर अपनी चॉकलेट टैबलेट बना सकते हैं। लैब में लोग टैप से बह रही चॉकलेट लेकर, उस पर पसंदीदा टॉपिंग डाल सकते हैं। अपनी बनाई चॉकलेट घर ले जा सकते हैं। मनम फैक्ट्री के क्लासरूम में उच्च गुणवत्ता वाले भारतीय कोको व क्राफ्ट चॉकलेट से जुड़ा नॉलेज प्रोग्राम व वर्कशॉप भी होती है। चॉकलेट प्रेमी अन्य उत्साही लोगों के साथ जुड़ सकते हैं, चखने का अनुभव ले सकते हैं।

फिर जब मैं मुंबई लौटा तो मैंने देखा कि महाराष्ट्र के दूरदराज जिलों से आए कई शिक्षक- जिनके लिए संग्रहालय कभी जीवन का हिस्सा नहीं रहे- मुंबई के संग्रहालयों में प्रदर्शित हर वस्तु ऐसे कौतूहल से देख रहे थे, जैसे स्कूल ट्रिप पर आए बच्चे हों। संग्रहालयों की तीन दिवसीय यात्रा में इन ‘बड़े बच्चों’ ने महसूस किया कि प्राचीन चीजें, विज्ञान प्रदर्शनी, हेरिटेज साइट पर जाकर कैसे इतिहास, भूगोल, विज्ञान के सबक महसूस हो सकते हैं। कई की ये मुंबई की पहली यात्रा थी और पहली बार संग्रहालय आए थे।

यह छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय के ग्रामीण शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा था, ये तीन दिवसीय क्रैश कोर्स शिक्षकों को यह दिखाने के लिए डिजाइन किया गया है कि कैसे संग्रहालय, क्लासरूम के आगे की बात हो सकते हैं और ये पहला प्रयोग है। ये शिक्षक इतिहास को पारंपरिक तरीके से पढ़ने और पढ़ाने के अभ्यस्त थे, लेकिन म्यूजियम आने के बाद उनका दृष्टिकोण बदला और वे विषय को जीवंत बनाने के लिए वस्तुओं की प्रतिकृतियों का उपयोग करने पर विचार कर रहे थे।

इस अनुभव से शिक्षकों का दायरा भी विस्तृत हुआ है और वे छात्रों को सामान्य डॉक्टर-इंजीनियर के अलावा अन्य विकल्प बता सकते हैं। जैसे क्यूरेटर, शिक्षक, मानवविज्ञानी और पुरातत्वविद और वे क्या-क्या करते हैं। उन्हें न केवल दशकों पुराने संग्रहालयों में बल्कि वर्ली में विज्ञान केंद्र और एलीफेंटा की गुफाओं में भी ले जाया गया जहां इतिहास पूरे गर्व के साथ मौजूद है।

फंडा यह है कि यदि गांव के स्कूलों में साइंस लैब के साथ हिस्ट्री लैब भी हों और शहर के स्कूलों में चॉकलेट फैक्ट्रियों जैसी कुछ फ्यूचर लेब्स हो, तो यह छात्रों के साथ-साथ स्थानीय लोगों और आगंतुकों को भी अलग अनुभव दे सकते हैं।

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