एन. रघुरामन का कॉलम: निकनेम और पारिवारिक निकटता में क्या कोई संबंध है? h3>
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- N. Raghuraman’s Column Is There Any Connection Between Nickname And Family Closeness?
11 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
मंगलवार की शाम मैंने देखा कि 20-22 साल का एक युवा अपनी फैमिली कार को कॉलोनी की सड़क के बीच में रोककर खड़ा था। तभी उसके पीछे खड़ी गाड़ियों ने हॉर्न बजाना शुरू कर दिया। उनमें से एक व्यक्ति कार से उतरा- जो गाड़ी पार्क करने के इंतजार में खड़ा था- और युवक से बोला, ‘चिंटू, गाड़ी साइड में करना।’
छह फुट दो इंच का वह युवक गाड़ी से उतरकर गुस्से में उस व्यक्ति से बोला, ‘मुझसे ऐसा कहने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? क्या मैं तुम्हें चिंटू लगता हूं? तुम कौन होते हो मुझे इस नाम से बुलाने वाले?’ वह बरसता रहा और दूसरे व्यक्ति की बात सुनने से इंकार कर दिया, जो उसे समझाने की कोशिश कर रहा था कि ‘मैंने तुम्हें इस नाम से इसलिए बुलाया क्योंकि मैंने तुम्हारे माता-पिता को पिछले 20 साल से घर की खिड़की से तुम्हें इसी नाम से बुलाते सुना है।’
वो युवा शायद इस बात से अनजान था कि निकनेम के मामले में अक्सर लोग थोड़ी छूट ले लेते हैं और नाम अक्सर बिना अनुमति के दिए जाते हैं। दिवंगत अभिनेता ऋषि कपूर भी ऐसे ही एक व्यक्ति थे, जिन्हें ‘चिंटू’ कहने पर बेहद गुस्सा आता था।
इस तीखी बहस से मुझे ऋषि कपूर का 2018-19 का एक ट्वीट याद आया, जिसमें उन्होंने टोपी पहने हुए एक तस्वीर शेयर की थी, जिस पर ‘चिंटू’ लिखा था। उस ट्वीट में अभिनेता ने बताया था कि उन्होंने ‘ऋषि कपूर’ कहलाने के लिए कितनी मेहनत की और अपने बच्चों, रणबीर-रिद्धिमा को कोई निकनेम नहीं दिया।
उन्होंने एक अवॉर्ड फंक्शन में भी खुलकर नाराजगी जाहिर की थी, कैसे सागर फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी इस फिल्म की शूटिंग के दौरान उन्हें उनके निकनेम से बुलाते थे, जबकि कमल हासन को उनके नाम से।
जब हम किसी अनजान व्यक्ति को निकनेम से बुलाते हैं, तो ये रिश्ते में अनादर या स्नेह का संकेत भी हो सकता है, जैसे वे परिवार का हिस्सा हों। खासकर लड़कों को उनके टीममेट्स-रूममेट्स निकनेम से बुलाते हैं। मेरे कॉलेज के दिनों में भी मुझे कुछ करीबी लोग ‘एनआर’ नाम से बुलाते थे और मैं लंबे समय तक इसी नाम से साइन करता था।
आज भी कई लोग मानते हैं कि निकनेम अंतरंगता का संकेत होते हैं। 1960 के दशक में मैंने गुल्लू, बाबड़या, कैंची (क्योंकि उसकी जुबान तेज थी) यहां तक कि स्कूटर (क्योंकि बच्चा हमेशा खिलौना स्कूटर चलाने में व्यस्त रहता था और परिवार में उसकी उम्र के की बच्चे थे, इस नाम से उसे आसानी से पहचान सकते थे) जैसे नाम तक सुने थे।
तथाकथित रूप से वो बचकाने नाम, जिन नामों से माता-पिता बच्चों को बुलाते हैं, वे नाम आपस में बंधन मजबूत करते हैं और ज्यों-ज्यों बच्चे बड़े होते जाते हैं, माता-पिता उन्हीं नामों से बुलाकर रिश्तों में वही गर्मजोशी रखते हैं। पर कुछ बच्चों के लिए, जैसा कि ऊपर बताया गया है, निकनेम ‘अपमानजनक’ और ‘स्नेही’ के बीच में कहीं होते हैं और आजकल के बच्चे अपनी-अपनी परिस्थिति के अनुसार इनमें से कोई एक चुन लेते हैं।
मैंने नामकरण का अध्ययन करने वाले एक ओनोमैसटिशियन (Onomasticians) से भी संपर्क किया और पूछा कि क्या वे किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो निकनेम का अध्ययन करता हो। लेकिन उन्हें कोई ऐसा विशेषज्ञ नहीं मिला। पर मैंने देखा है कि नए प्रशिक्षु या इंटर्न अपने निकनेम से बुलाए जाने से नफरत करते हैं।
उनकी लिंक्डइन प्रोफाइल होती हैं और वे बहुत कम उम्र में स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं। मैंने देखा है कि निकनेम वाले लोगों पर अपने असली नाम को साबित करने का दबाव होता है- यह आधुनिक समय की बढ़ती हुई समस्या है।
उनके लिए निकनेम के साथ गंभीर रहना कठिन होता है, इसलिए वे अपने नाम से बुलाए जाने पर जोर देते हैं। माता-पिता अगर बच्चों से एक बॉन्डिंग पैदा करने के लिए उनका कोई निकनेम रख रहे हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि यह बच्चों की नजर से अपमानजनक न हो।
फंडा यह है कि मैं एकदम सटीक तरीके से यह नहीं कह सकता कि निकनेम की कमी ही परिवार के सदस्यों में निकटता में कमी आने का एकमात्र कारण है। न्यूक्लियर फैमिली और फैंसी नाम भी आधुनिक घरों में निकनेम नहीं रखने के अन्य कारण हैं। आप क्या कहते हैं? मुझे लिखें।
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मंगलवार की शाम मैंने देखा कि 20-22 साल का एक युवा अपनी फैमिली कार को कॉलोनी की सड़क के बीच में रोककर खड़ा था। तभी उसके पीछे खड़ी गाड़ियों ने हॉर्न बजाना शुरू कर दिया। उनमें से एक व्यक्ति कार से उतरा- जो गाड़ी पार्क करने के इंतजार में खड़ा था- और युवक से बोला, ‘चिंटू, गाड़ी साइड में करना।’
छह फुट दो इंच का वह युवक गाड़ी से उतरकर गुस्से में उस व्यक्ति से बोला, ‘मुझसे ऐसा कहने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? क्या मैं तुम्हें चिंटू लगता हूं? तुम कौन होते हो मुझे इस नाम से बुलाने वाले?’ वह बरसता रहा और दूसरे व्यक्ति की बात सुनने से इंकार कर दिया, जो उसे समझाने की कोशिश कर रहा था कि ‘मैंने तुम्हें इस नाम से इसलिए बुलाया क्योंकि मैंने तुम्हारे माता-पिता को पिछले 20 साल से घर की खिड़की से तुम्हें इसी नाम से बुलाते सुना है।’
वो युवा शायद इस बात से अनजान था कि निकनेम के मामले में अक्सर लोग थोड़ी छूट ले लेते हैं और नाम अक्सर बिना अनुमति के दिए जाते हैं। दिवंगत अभिनेता ऋषि कपूर भी ऐसे ही एक व्यक्ति थे, जिन्हें ‘चिंटू’ कहने पर बेहद गुस्सा आता था।
इस तीखी बहस से मुझे ऋषि कपूर का 2018-19 का एक ट्वीट याद आया, जिसमें उन्होंने टोपी पहने हुए एक तस्वीर शेयर की थी, जिस पर ‘चिंटू’ लिखा था। उस ट्वीट में अभिनेता ने बताया था कि उन्होंने ‘ऋषि कपूर’ कहलाने के लिए कितनी मेहनत की और अपने बच्चों, रणबीर-रिद्धिमा को कोई निकनेम नहीं दिया।
उन्होंने एक अवॉर्ड फंक्शन में भी खुलकर नाराजगी जाहिर की थी, कैसे सागर फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी इस फिल्म की शूटिंग के दौरान उन्हें उनके निकनेम से बुलाते थे, जबकि कमल हासन को उनके नाम से।
जब हम किसी अनजान व्यक्ति को निकनेम से बुलाते हैं, तो ये रिश्ते में अनादर या स्नेह का संकेत भी हो सकता है, जैसे वे परिवार का हिस्सा हों। खासकर लड़कों को उनके टीममेट्स-रूममेट्स निकनेम से बुलाते हैं। मेरे कॉलेज के दिनों में भी मुझे कुछ करीबी लोग ‘एनआर’ नाम से बुलाते थे और मैं लंबे समय तक इसी नाम से साइन करता था।
आज भी कई लोग मानते हैं कि निकनेम अंतरंगता का संकेत होते हैं। 1960 के दशक में मैंने गुल्लू, बाबड़या, कैंची (क्योंकि उसकी जुबान तेज थी) यहां तक कि स्कूटर (क्योंकि बच्चा हमेशा खिलौना स्कूटर चलाने में व्यस्त रहता था और परिवार में उसकी उम्र के की बच्चे थे, इस नाम से उसे आसानी से पहचान सकते थे) जैसे नाम तक सुने थे।
तथाकथित रूप से वो बचकाने नाम, जिन नामों से माता-पिता बच्चों को बुलाते हैं, वे नाम आपस में बंधन मजबूत करते हैं और ज्यों-ज्यों बच्चे बड़े होते जाते हैं, माता-पिता उन्हीं नामों से बुलाकर रिश्तों में वही गर्मजोशी रखते हैं। पर कुछ बच्चों के लिए, जैसा कि ऊपर बताया गया है, निकनेम ‘अपमानजनक’ और ‘स्नेही’ के बीच में कहीं होते हैं और आजकल के बच्चे अपनी-अपनी परिस्थिति के अनुसार इनमें से कोई एक चुन लेते हैं।
मैंने नामकरण का अध्ययन करने वाले एक ओनोमैसटिशियन (Onomasticians) से भी संपर्क किया और पूछा कि क्या वे किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो निकनेम का अध्ययन करता हो। लेकिन उन्हें कोई ऐसा विशेषज्ञ नहीं मिला। पर मैंने देखा है कि नए प्रशिक्षु या इंटर्न अपने निकनेम से बुलाए जाने से नफरत करते हैं।
उनकी लिंक्डइन प्रोफाइल होती हैं और वे बहुत कम उम्र में स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं। मैंने देखा है कि निकनेम वाले लोगों पर अपने असली नाम को साबित करने का दबाव होता है- यह आधुनिक समय की बढ़ती हुई समस्या है।
उनके लिए निकनेम के साथ गंभीर रहना कठिन होता है, इसलिए वे अपने नाम से बुलाए जाने पर जोर देते हैं। माता-पिता अगर बच्चों से एक बॉन्डिंग पैदा करने के लिए उनका कोई निकनेम रख रहे हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि यह बच्चों की नजर से अपमानजनक न हो।
फंडा यह है कि मैं एकदम सटीक तरीके से यह नहीं कह सकता कि निकनेम की कमी ही परिवार के सदस्यों में निकटता में कमी आने का एकमात्र कारण है। न्यूक्लियर फैमिली और फैंसी नाम भी आधुनिक घरों में निकनेम नहीं रखने के अन्य कारण हैं। आप क्या कहते हैं? मुझे लिखें।
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