एन. रघुरामन का कॉलम: जब समस्याएं सामने आकर डराएं, तो उनके परे देखने की कोशिश करें

26
एन. रघुरामन का कॉलम:  जब समस्याएं सामने आकर डराएं, तो उनके परे देखने की कोशिश करें

एन. रघुरामन का कॉलम: जब समस्याएं सामने आकर डराएं, तो उनके परे देखने की कोशिश करें

  • Hindi News
  • Opinion
  • N. Raghuraman’s Column When Problems Appear And Scare You, Try To Look Beyond Them

23 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

पिछले हफ्ते चीन के शेनझेन में ग्लोबल क्रॉस-बॉर्डर ई-कॉमर्स चयन प्रदर्शनी आयोजित हुई। चीन में मेरे एक जानकार इसे देखने गए। शेनझेन मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में जाना जाता है। इस चीनी निर्यातकों की प्रदर्शनी में दुनियाभर से लोग आते हैं। इसमें 800 से अधिक स्टॉल होते हैं। इसका उद्देश्य चीनी फैक्ट्रियों को खरीदारों, व्यापारियों और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स से जोड़ना है।

इन 800 काउंटर्स में से एक पर लोगों की लंबी कतार लगी थी। यह एक रूसी ई-कॉमर्स कंपनी का आउटलेट था। अंदर जाने में सफल लोगों ने वहां चल रही प्रस्तुति की तस्वीरें लीं, वहीं बाहर खड़े लोग क्यूआर कोड स्कैन कर चैट ग्रुप्स में शामिल हो रहे थे, जहां उन्हें परेशान करने वाले सवालों के जवाब मिल रहे थे जैसे ‘अगर हम अमेरिका में लाभदायक बिक्री नहीं कर सकते तो कहां कर सकते हैं?’ उस बूथ के प्रतिनिधियों ने इस सवाल का सरलता से जवाब दिया- ‘रूस!’

वे जानते हैं कि अमेरिकी उपभोक्ता बाजार को अपरिहार्य माना जाता है। लेकिन जब से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल से व्यापार युद्ध की घोषणा की है, एेसे ज्ञान का हमेशा स्वागत किया जा रहा है। यहां आए विजिटर्स जानते हैं कि रूस की जनसंख्या लगभग 147 मिलियन है, जो अमेरिका की तुलना में आधी से भी कम है।

वहीं रूस की प्रति व्यक्ति आय भी कम है और उसकी अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीति और यूक्रेन के साथ युद्ध जैसी समस्याओं से जूझ रही है। कुल मिलाकर कहें तो विजिटर्स, जिनमें ज्यादातर फैक्ट्री मालिक थे, वे अपने व्यवसाय को चलाने और लाभ कमाने के लिए कुछ भी करने को तैयार दिखे। मेरे मित्र ने बताया कि इस द्विवार्षिक कार्यक्रम ने निर्माताओं के कई सवालों का जवाब दिया है, जिससे उनकी चिंता कुछ हद तक कम हुई है।

इस सप्ताह की शुरुआत से मैंने कुछ भारतीय निर्यातकों के साथ कई अन्य जानकारियां साझा की। उन्हें डर है कि टैरिफ उपायों से अमेरिकी बाजार में कीमतें बढ़ने के कारण आने वाले महीनों में उनके उत्पाद की मांग प्रभावित हो सकती है।

भारतीय सरकार अभी भी भारतीय वस्तुओं पर संभावित प्रभाव के चार-पांच परिदृश्यों पर काम कर रही है और अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए बातचीत कर रही है। पर हम भारतीयों को अपने स्तर पर समाधान खोजने की कोशिश जारी रखनी चाहिए।

समस्या तो समस्या है। अगर ये एक बार सामने आ चुकी है, तो खुद से गायब नहीं हो जाएगी। इस पर पछताने से हल नहीं निकलेगा। इसलिए उसका सामना करें। इसमें कुछ आइडिया काम करेंगे, कुछ नहीं। इससे फर्क नहीं पड़ता।

इससे मुझे चेन्नई में ट्रैफिक विभाग द्वारा सड़कों पर बाइकर्स की समस्या हल करने के लिए एक नई पहल याद आ गई। इसमें कुछ सिग्नल्स पर पांच लाइट्स लगाई गई हैं: रेड, एम्बर, ग्रीन, और इसके अलावा दो और ग्रीन- एक पैदल यात्रियों के लिए और एक बाइकर्स के लिए। इससे बाइकर्स को 35 से 40 सेकंड का हेड स्टार्ट मिलता है, जिससे जाम कम होता है और दुर्घटनाओं में कमी आती है।

इस ‘टू-व्हीलर प्रायोरिटी सिग्नल’ का पायलट चरण अगले महीने से चुनिंदा जंक्शनों पर शुरू होगा। अलग-अलग सिग्नल चरणों के माध्यम से मूवमेंट को अलग करने से टकराव के बिंदु कम होंगे और कारों और बड़े वाहनों के लिए अधिक लेन स्पेस मिलेगा। इस विचार के पीछे का मूल सोच यही है।

औसतन एक सेकंड में एक बाइक सिग्नल पार करती है, हालांकि यह कम आंका गया आंकड़ा है, इस लिहाज से कम से कम 40 बाइक एक सिग्नल साइकल में क्लियर हो जाएंगी। यदि एक घंटे में 20 ऐसे चक्र होते हैं, तो एक जंक्शन 700 से 800 दोपहिया वाहनों को क्लियर कर सकता है, जिससे लाइन कम होगी, लोग रास्ता नहीं बदलेंगे और लेन स्पेस फ्री होगा जिससे ट्रैफिक का प्रवाह सुगम होगा। इस प्रणाली की सफलता के आधार पर इसे और बढ़ाया जाएगा।

फंडा यह है कि शुरुआती तौर पर सारे जवाब सही नहीं हो सकते, पर क्या पता अगर आप कोशिशें जारी रखेंगे तो आपको कोई चौंकाने वाला रास्ता मिल जाए। इसलिए हमेशा मुश्किलों के समाधान खोजते रहिए, डराने वाले सवालों का सामना करते रहिए और उनके बारे में मत पछताइए।

खबरें और भी हैं…

राजनीति की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – राजनीति
News