एन. रघुरामन का कॉलम: छोटे-बड़े सभी विक्रेताओं के लिए चिल्लर ‘बिग मनी’ है

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एन. रघुरामन का कॉलम:  छोटे-बड़े सभी विक्रेताओं के लिए चिल्लर ‘बिग मनी’ है

एन. रघुरामन का कॉलम: छोटे-बड़े सभी विक्रेताओं के लिए चिल्लर ‘बिग मनी’ है

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6 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

सोचिए, आप 10 या 20 रुपये के सिक्के कहां रखते हैं और उसी मूल्य के नोट कहां रखते हैं। ज्यादातर मामलों में पुरुष शर्ट की सामने की जेब में और महिलाएं पर्स की साइड पॉकेट में सिक्के रखती हैं। जबकि नोट पर्स में सलीके से रखे जाते हैं।

अब कल्पना कीजिए कि आप अनिच्छा से इन वस्तुओं पर खर्च करने के लिए सहमत हो रहे हैं- आपके साथ चल रहा बच्चा आइसक्रीम मांगता है या आपकी युवा बेटी एक विशेष ब्रांड के बाथ सोप की मांग कर रही है और सुबह से इसके लिए कॉल कर रही है या पत्नी कॉल करके कुछ विशेष सब्जी मांगती है- आप कौन-सा पैसा खर्च करेंगे? एक सर्वेक्षण कहता है कि 99% लोग शर्ट की ऊपरी जेब में रखी चिल्लर खर्च करेंगे, न कि पर्स में रखे नोट।

ऐसा इसलिए है क्योंकि खर्च करते समय, मानव मस्तिष्क सिक्कों को साधारण ‘चिल्लर’ मान लेता है और अनिच्छा के कारण ‘जाने दो’ वाले एटीट्यूड के साथ पहले इसे खर्च करने के लिए प्रेरित करता है, भले ही उस चिल्लर का मूल्य पर्स में नोट के मूल्य के बराबर हो।

प्रबंधन में इसे “सुविधाजनक मूल्य निर्धारण बिंदु” कहा गया है। इसका मतलब है कि हर खर्च में उपभोक्ता को लगता है कि उसने अपने प्रियजनों के लिए केवल “चिल्लर” खर्च किया है और उसने चतुराई से उन नोटों को बचा लिया है जो उसके दिमाग में चिल्लर से बड़े दिखते हैं।

करोड़ों भारतीयों की इस मानसिकता को समझते हुए, ब्रांडेड उपभोक्ता वस्तु कंपनियां बाजार में उसी प्राइज रेंज में नए उत्पाद और वैरिएंट पेश कर रही हैं और छोटे पैक के वितरण और विपणन पर भी ध्यान केंद्रित कर रही हैं।

कोल्ड ड्रिंक और लस्सी जैसी उपभोग्य वस्तुओं से लेकर शैंपू और साबुन जैसी बॉडी केयर वस्तुओं तक सभी अब सुविधाजनक मूल्य निर्धारण बिंदुओं पर बेची जा रही हैं। इससे निम्न मध्यम वर्ग को उन वस्तुओं का उपभोग करने की क्षमता का एहसास होता है, जिन्हें समाज में विलासिता माना जाता है।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ स्थापित कंपनियों ने इस बिक्री तकनीक को सीखा है। वास्तव में उन्होंने इसे कम पढ़े-लिखे सब्जी विक्रेताओं से सीखा है जो 10 या 20 रुपये में सब्जियों का एक गुच्छा बेचते हैं, विशेष रूप से यह उल्लेख करते हुए कि सस्ती किस्म दो लोगों के लिए है और बाद की किस्म परिवार के पांच लोगों के लिए है।

गर्मियों के कारण चूंकि अब कोई भी सब्जी 50 रुपए से कम नहीं है, ऐसे में कोलकाता से चेन्नई तक के ये सब्जी विक्रेता अब अपनी सब्जियां सुविधाजनक मूल्य निर्धारण बिंदुओं पर बेच रहे हैं। सब्जियों का प्रत्येक गुच्छा, इसमें आलू, प्याज, बैंगन से लेकर गार्निशिंग के लिए हरी मिर्च और टमाटर तक होते हैं, लेकिन दो या पांच लोगों के लिए रोटी के साथ ग्रेवी वाली सब्जी पकाने के लिए पर्याप्त होते हैं। शायद ये भोजन एक समय के लिए होते हैं और यही कारण है कि ये सब्जी विक्रेता दुकान बंद करने से पहले दिन के अंत में अपना “गुच्छा” बनाते हैं।

वित्तीय रूप से थोड़े बेहतर लोगों पर फोकस करते हुए होटल्स भी अपने रेस्तरां में फुटफॉल बढ़ाने के लिए कुछ नया करने की कोशिश कर रहे हैं। पूर्वी दिल्ली के प्रीत विहार में 14 जनवरी, 2025 को खुले एक रेस्तरां उडुपी आहार का उदाहरण लें, जहां वे सुबह के नाश्ते के दौरान 299 रुपये में असीमित डोसा पेश करते हैं, जो सुबह 11 बजे बंद हो जाता है।

हालांकि कई ग्राहक कुछ बाइट्स खाने के बाद डोसा बर्बाद कर देते हैं, लेकिन इससे फुटफॉल में काफी वृद्धि हुई है और लोग धीरे-धीरे दोबारा ग्राहक बन रहे हैं। वह शायद अब “भोजन ही भगवान है” और “भोजन भगवान का प्रसाद है” जैसे नारे पेश कर सकते हैं ताकि भोजन की बर्बादी कम हो सके। लेकिन मुख्य बिंदु एक सुविधाजनक मूल्य निर्धारण बिंदु है जहां ग्राहक को अपनी बचत पर चोट महसूस नहीं होती है।

फंडा यह है कि यदि आप किसी चुने हुए कस्टमर बेस को तेजी से और बड़ी संख्या में कुछ बेचना चाहते हैं तो यह पता लगाएं कि आपके पास खर्च करने वाली आबादी में ‘चिल्लर’ का माइंडसेट पैदा करने के लिए क्या आइडिया है। दूसरे शब्दों में, यह आपकी अफॉर्डेबिलिटी माइंडसेट बनाने की क्षमता पर निर्भर करता है।

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