एन. रघुरामन का कॉलम: चॉपस्टिक से पॉपकॉर्न खाकर खुद को चौंकाएं!

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एन. रघुरामन का कॉलम:  चॉपस्टिक से पॉपकॉर्न खाकर खुद को चौंकाएं!

एन. रघुरामन का कॉलम: चॉपस्टिक से पॉपकॉर्न खाकर खुद को चौंकाएं!

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6 दिन पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

जैसे ही हम मॉल के फूड कोर्ट में डिनर के लिए बैठे, कनाडा और यूएसए से आए अपने चचेरे भाइयों के बच्चों से मैंने कहा कि वे मुझे सरप्राइज कर सकते हैं। उनमें से एक ने मेन्यू लिया और पंक्ति-दर-पंक्ति उसे पढ़ना शुरू कर दिया। दूसरा उठकर उस फ्लोर पर मौजूद कई फूड काउंटरों पर गया और पॉपकॉर्न का एक बड़ा-सा कोन लेकर चला आया। उसने हमें चार जोड़ी चॉपस्टिक देकर उससे पॉपकॉर्न खाने की चुनौती दी।

हमने वैसा ही किया। हम सभी उत्साह में थे कि हमें चॉपस्टिक से पॉपकॉर्न को सही से पकड़ना था और उन्हें टेबल पर गिराना नहीं था। पॉपकॉर्न खाने पर हमारा फोकस इतना था कि यह हम चारों के बीच एक खेल जैसा बन गया था। हम यह नहीं देख पाए कि अगली टेबल पर बैठे लोगों ने हमें अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर लिया है। इसने मुझे जीवन में पहली बार पॉपकॉर्न खाने जितनी ही खुशी दी। उस दिन मुझे लगा कि चीजों को होने देना और फ्लो के साथ जाना मेरे जीवन को और अधिक संतुलित बनाता है।

बच्चों में से एक लड़की, जो मेन्यू को ध्यान से पढ़ रही थी, बोली- इसमें कुछ खास नहीं है। फिर उसने सुझाव दिया कि हम हर स्टॉल पर जाकर कोई एक आइटम ऑर्डर करें, जिसे चार लोगों के बीच बांटा जा सके। और हमने ऐसा करना शुरू कर दिया।

हमने उस रेस्तरां से दोबारा कुछ नहीं खरीदा, जहां से हमने कोई डिश ऑर्डर की थी। यह पागलपन था। लेकिन यह एक अलग तरह का डिनर था। हमने चार अलग-अलग रेस्तरां से चार डेजर्ट लिए और हम सभी ने उन्हें एक साथ नहीं, बल्कि एक के बाद एक चखा। इससे डिनर बहुत लंबा हो गया, लेकिन वो बहुत अलग भी था। यकीन मानिए यह ऐसा अनुभव था, जिसे मैं लंबे समय तक याद रखूंगा।

हममें से हरेक अपने जीवन में सेरोटोनिन को प्रेरित करने वाले उन क्षणों से परिचित है, जब हम अपने पसंदीदा भोजन का पहला निवाला या गन्ने के रस का पहला घूंट लेते हैं। यह निश्चित रूप से एक जादुई अनुभूति है। लेकिन जब हम एक ही तरह से खाने, पीने, चलने और एक ही बात को बार-बार करने की आदत डाल लेते हैं तो यह नीरस हो जाता है और आपको वैसी खुशी नहीं मिलती, जो शुरू में मिली थी।

शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि हम सभी अंततः उन चीजों से ऊब जाते हैं जो कभी हमें खुशी देती थीं। लेकिन जब आप बदलाव के लिए एक ही काम को अलग तरीके से करते हैं, तो हमारे दिमाग में कुछ दिलचस्प होने लगता है। इस परिघटना को हेडोनिक-एडाप्टेशन के रूप में जाना जाता है।

मुझे इस रविवार को आपके लिए एक नया प्रयोग सुझाने की अनुमति दें। कार में बैठें और परिवार को भी अपने साथ शामिल होने के लिए कहें। मोबाइल को साइलेंट रखें और कुछ भी प्लान न करें। बस ड्राइव करते चले जाएं और जहां भी आपका या आपके परिवार के सदस्यों का मन करे, वहां रुकें।

अपनी पसंद की कोई भी चीज खाएं और रास्ते में आने वाले किसी भी रेस्तरां में चले जाएं। मेरा मतलब है कि कुछ भी प्लान न करें। आप जानते हैं क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि जब तक आप इस विचार के लिए हां नहीं कहते, आपको पता नहीं होता कि क्या होगा।

ऐसी दुनिया में जहां अकसर सफलता की अथक खोज और कुछ पागलपन करने के डर का बोलबाला रहता है, एक अनुभव के नैरेटिव को फिर से परिभाषित करने का समय आ गया है। आप महसूस करेंगे कि आकस्मिकता और खुशी साथ-साथ चलते हैं।

फंडा यह है कि काम करने के लिए एक ही तरह के जाने-पहचाने तरीके का इस्तेमाल करने के बजाय आकस्मिकता की छोटी-सी खुराक भी व्यक्ति को अधिक खुशी देती है। इस बारे में न सोचें कि मैं इस रविवार को क्या करने जा रहा हूं, बस कुछ अलग करें। आपको सेरोटोनिन-प्रेरित क्षणों का अनुभव होगा। आजमाकर देखें।

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