एन. रघुरामन का कॉलम: ग्रेजुएशन पसंद नहीं तो हाथों का कमाल दिखाएं!

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एन. रघुरामन का कॉलम:  ग्रेजुएशन पसंद नहीं तो हाथों का कमाल दिखाएं!

एन. रघुरामन का कॉलम: ग्रेजुएशन पसंद नहीं तो हाथों का कमाल दिखाएं!

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2 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

अनिल और सुनील दो भाई हैं। सुनील, अनिल से 6 साल छोटा है। परिवार के सहयोग के लिए, अनिल कॉलेज नहीं गया और इलेक्ट्रिशियन बन गया। उसने और माता-पिता ने, सुनील की ग्रेजुएशन में मदद की और उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई।

लेकिन कुछ समय पहले उसकी नौकरी चली गई, जबकि अनिल का इलेक्ट्रिकल कॉन्ट्रैक्ट का बिजनेस काफी बढ़ गया। पिछले हफ्ते तक सुनील को कोई भी ऐसी नौकरी नहीं मिली, जिसमें पहले जितना वेतन हो। शनिवार को मेरी मुलाकात उसके पिता से हुई। उन्होंने कहा, ‘मुझे शायद सुनील को कंप्यूटर की डिग्री लेने के लिए जोर नहीं देना चाहिए था।

अगर मैंने उसे शौक के मुताबिक, इंटीरियर डिजाइनिंग सीखने दी होती, तो आज वो अनिल के बढ़ते बिजनेस में साथ दे पाता।’ऐसा सोचने वाले वे अकेले नहीं हैं। पहले माता-पिता, ग्रेजुएशन डिग्री की तुलना में वोकेशनल यानी पेशेवर कोर्स को खास तवज्जो नहीं देते थे।

लेकिन अब व्हाइट कॉलर जॉब के हिमायती पेरेंट्स मानने लगे हैं कि जो बच्चे हाथों का इस्तेमाल करने वाले किसी कौशल में महारत हासिल करेंगे, वे कभी बेरोजगार नहीं रहेंगे। ऐसे कौशलों की मांग इतनी ज्यादा है कि विकसित देशों के सार्वजनिक हाईस्कूल ‘शॉप’ कक्षाएं दे रहे हैं, जहां छात्रों को कंस्ट्रक्शन, मैन्युफैक्चरिंग और कारपेंटरी सिखाने वाले पेशेवर शैक्षणिक कोर्स मिल रहे हैं।

अमेरिका में 2024-25 का ट्रेंड तो यही है।जो पेरेंट्स सोचते थे कि उनके बच्चे को डेस्क जॉब करनी चाहिए, वे अब पेशेवर शिक्षा की ओर जा रहे हैं क्योंकि इससे करिअर के दो रास्ते खुल जाते हैं। या तो बच्चा सुनील की तरह कॉलेज जा सकता है या अनिल की तरह, सीधे काम शुरू कर सकता है।

यह सोच अब मध्यमवर्गीय परिवारों में भी जगह बना रही है, जहां ग्रेजुएट होना गर्व का विषय माना जाता है। वे समझने लगे हैं कि तार्किक सोच आधारित नौकरियां कम हो रही हैं और वे नहीं चाहते कि उनका बच्चा डेस्क जॉब करे।

आपको पता होगा कि दिल्ली में जन्मी अभिनेत्री कृति सेनन की मां चाहती थीं अगर कृति का एक्टिंग करियर नहीं चला, तो बैकअप प्लान के तौर पर वे इंजीनियरिंग पूरी कर लें। इसी तरह स्पिन के जादूगर अनिल कुंबले जानते थे कि खेल की दुनिया में करिअर बहुत अनिश्चित होता है और एक चोट भी घातक हो सकती है। इसलिए बैकअप में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री गेमचेंजर साबित हुई।

एक हालिया इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘विकल्प के तौर पर, मेरा इंजीनियर होना बहुत अच्छा था। मैं जानता था कि कुछ भी गड़बड़ होने पर, मैं नौ से पांच की नौकरी के लिए तो एप्लाई कर ही सकता हूं।’ खुशकिस्मती से, कृति और कुंबले, दोनों को बैकअप प्लान इस्तेमाल नहीं करने पड़े।

लेकिन आधुनिक पैरेंट्स और नई पीढ़ी सोचती है कि बैकअप प्लान किसी पेशेवर कोर्स के इर्दगिर्द होना चाहिए, ताकि कभी खाली न बैठना पड़े। वे अपने बच्चों को सलाह देते हैं कि ह्यूमैनिटीज़, आर्ट या कौशल आधारित ट्रेड में करिअर बनाना भविष्य के लिए ज्यादा सुरक्षित विकल्प है। आज सॉफ्टवेयर बनाने वाले और सर्जरी करने वाले बॉट का डर है।

ऐसे में स्टेम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स) का बुलबुला फूटने वाला है। इसलिए पेरेंट्स अपने बेटे-बेटियों को म्यूज़िक और डांस से लेकर इंटीरियर डिज़ाइन या कारपेंटरी और इलेक्ट्रिकल जैसे कोर्स तक करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। भले ही सभी माता-पिता ऐसा न सोचें, लेकिन इस सोच की लहर शुरू तो हुई है, खासतौर पर तब, जब बच्चे ग्रेजुएशन में बहुत रुचि नहीं दिखा रहे।

फंडा यह है कि अगर आप कॉलेज जाने के लिए तैयार नहीं हैं, तो किसी पेशेवर कोर्स से जुड़ जाइए और अपने हाथों का कमाल दिखाइए। समय के साथ आपके हाथों का यही कौशल बड़ी कमाई का ज़रिया बन सकता है।

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