एन. रघुरामन का कॉलम: किसी काम में कितना निवेश किया है? जवाब सिर्फ आपके पास है

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एन. रघुरामन का कॉलम:  किसी काम में कितना निवेश किया है? जवाब सिर्फ आपके पास है

एन. रघुरामन का कॉलम: किसी काम में कितना निवेश किया है? जवाब सिर्फ आपके पास है

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  • N. Raghuraman’s Column How Much Have You Invested In A Work? Only You Have The Answer

7 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

एक सफल क्रिकेटर तैयार करने में कितनी लागत आती है? यकीन मानें, हममें से कोई भी इसकी सही लागत नहीं बता सकता। सबसे पहला निवेश तो माता-पिता का होता है, जो अपने काम से अनुपस्थित रहने के लिए दफ्तर में कई अर्जियां देते हैं, ताकि अपने बच्चे को क्रिकेट जैसे खेल में बेस्ट कोचिंग दिलवाने के लिए मुंबई के शिवाजी पार्क जैसी किसी जगह पर लेकर जाएं।

इसके बाद, वह उभरता हुआ क्रिकेटर महीनों से लेकर सालों तक उसी खेल का अभ्यास करता है। और दिन के 24 घंटों में कई दफा उसके मन में चलता रहता है कि उसे खेल में बेस्ट बनना है। फिर जब बच्चा अंडर 13 या अंडर 15 में पहुंचता है, तो पैरेंट्स उसे विभिन्न टूर्नामेंट्स में खिलाने के लिए देश के कई राज्यों में लेकर जाते हैं, ताकि चयनकर्ताओं की नजर उस पर पड़े।

मैं यहां उस संघर्ष की बात नहीं कर रहा हूं जो अंतिम ग्यारह में चुने जाने और अपने देश और टीम के लिए जीतने की मानसिकता के साथ खेलने के लिए करना पड़ता है। लेकिन जब वही खिलाड़ी पैसा कमाने लगता है, तो बाहरी लोग तुरंत उसकी कमाई के बारे में बहुत बात करने लगते हैं, जैसे कि यहां तक पहुंचने के लिए उसने कोई निवेश ही नहीं किया हो। उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं होता कि सफलता से पहले उसने न जाने कितनी असफलताओं का सामना किया होगा।

फार्मा सेक्टर में काम कर रहे अपने एक दोस्त के साथ, रविवार की शाम को मैं इन मुद्दों पर चर्चा कर रहा था। और इस मुद्दे पर भी बात हुई कि कैसे सेरिडॉन टेबलेट बनाने वाली कंपनी “रोश’ पर अमेरिकी गैर-लाभकारी संस्था नॉलेज इकोलॉजी इंटरनेशनल (केईआई) ने आरोप लगाया है कि उसने स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) की दवा बनाने के बाद इससे सौ गुना से भी ज्यादा मुनाफा कमा लिया है।

जब रोश ने क्लिनिकल ट्रायल की लागत की जानकारी साझा करने से मना कर दिया, तो केईआई ने शोध लागत का अनुमान लगाया और कहा कि ये 50 मिलियन डॉलर हो सकती है। इस गैर-लाभकारी संस्था ने दावा किया कि 2021 से 2024 के बीच रोश ने ‘रिस्डिप्लम’ नामक दवा की बिक्री से 5.8 अरब डॉलर कमाए, जो अनुमानित लागत का 115 गुना ज्यादा है।

इस संस्था के आकलन पर रोश ने जवाब दिया है, “……केवल कुछ प्रोजेक्ट्स लैब से निकलकर असली दुनिया तक पहुंच पाते हैं और हमें असफल प्रोजेक्ट्स की लागत भी उठानी पड़ती है, जबकि आपका अनुमान सिर्फ सफल प्रोजेक्ट की ही बात कर रहा है।’ यह उल्लेखनीय है कि साल 2003 से, स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी फाउंडेशन (एसएमएएफ) ने इस बीमारी की दवा विकसित करने में 100 मिलियन डॉलर का निवेश किया है।

आज के मेरे कॉलम में इस उदाहरण को लेने के दो कारण हैं। 1970 के दशक के उत्तरार्ध में मैंने मुंबई में रोश के साथ सात साल तक काम किया और उनकी दवाओं की गुणवत्ता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं।

मैंने जितनी भी जिम्मेदारियां लीं, उन कामों में गुणवत्ता के सीखे हुए तमाम पहलुओं को शामिल करने की कोशिश की। दूसरा, मुझे रोश द्वारा पेश किए गए तर्क का एक हिस्सा पसंद आया, (सभी नहीं) जो ऊपर उल्लिखित है। कोई भी कभी नहीं जान पाएगा कि एक नई दवा खोजने के पीछे कितनी सारी चीजें होती हैं।

दवा बनाना, किसी छह साल के बच्चे को क्रिकेट खेलने के लिए तैयार करने से बिल्कुल भी अलग नहीं है, जहां वह एक जुनून के साथ क्रिकेट खेले और रोज टेलीविजन पर आए, जैसे कि इन दिनों चल रहे आईपीएल में हो रहा है। दवा निर्माण में एक और दिक्कत यह है कि शोध करते समय कई असफलताएं हाथ लगती हैं। और यह प्रक्रिया का हिस्सा है।

जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए, पैसों (आपके या आपके माता-पिता के या कॉर्पोरेट के) के अलावा समय का निवेश करना होता है, साथ ही दिमाग भी इसमें जगह घेरता है, साथ ही साथ इस काम में शरीर की पूरी ऊर्जा भी लगती है।

फंडा यह है कि आपके और आपके माता-पिता के अलावा किसी को भी आपकी सफलता, फेम और उपलब्धियों के लिए चुकाई गई सही कीमत का अंदाजा नहीं होता। इसलिए, किसी भी चीज में आपके निवेश के हर कतरे का सम्मान करें, फिर चाहे वह डिग्री हो, कौशल हो या प्रसिद्धि।

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