एन. रघुरामन का कॉलम: अनिश्चितता के दौर में संघर्ष की भावना विकसित करना सीखें h3>
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10 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
कल्पना करें, हम दस दिन के लिए आधिकारिक टूर पर जा रहे हैं और अचानक ये एक और हफ्ते खिंच जाता है। हम घर पर फोन करते हैं और उन्हें समझाते हैं कि जल्दी ही लौट आएंगे। लेकिन प्रोजेक्ट कुछ और दिनों के लिए खिंच जाता है और इस बार इसकी समयसीमा तय नहीं है।
अब कल्पना करें कि हम पर क्या बीतेगी? हम में से कई लोग टूट जाते हैं और घंटों तक घरवालों से बात करते रहते हैं, उन्हें मनाते हैं। कल्पना करें कि आने के 250 दिन बाद भी हम घर नहीं लौट पाए हैं, तब हमारी क्या मनोस्थिति होगी?
अगर आपको लगता है कि असल दुनिया में ऐसा नहीं हो सकता और हमेशा फ्लाइट पकड़कर जल्दी घर आ सकते हैं, भले ही थोड़े समय के लिए और ऐसे हालात सिर्फ चरम या काल्पनिक होते हैं, तो असली दुनिया में आपका स्वागत है और आगे पढ़ें।
उन्हें अनिश्चितताओं के बीच सबसे बुरे हालात देखने पड़े। वह केवल आधिकारिक काम के लिए एक सहकर्मी के साथ आठ दिनों के लिए गई थीं। लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि उनकी वापसी की तारीख का कोई अंदाजा नहीं लगा पा रहा था।
इस बीच वह चारों ओर घूमती रहीं, माफ करें, शून्य गुरुत्वाकर्षण में तैरती रहीं और स्पेस स्टेशन में 286 दिन बिताते हुए 195.2 मिलियन किमी की दूरी तय करके पृथ्वी के 4,577 चक्कर लगाए और अंततः सुनीता विलियम्स अपने साथी अंतरिक्ष यात्री बुच विलमोर के साथ इस बुधवार की सुबह ब्रह्म मुहूर्त में सुरक्षित धरती पर लौट आए।
हालांकि इतना लंबा ये पहला मिशन नहीं था। पहले के कुछ मिशन इससे लंबे थे। लेकिन इस मिशन में महत्वपूर्ण बात ये थी कि वापसी की तारीख को लेकर अनिश्चितता थी। इन 286 दिनों में उनके नाखून-बाल शायद तेजी से बढ़े।
उनकी रीढ़ की हड्डी शायद फैल गई होगी क्योंकि कशेरुकाओं के बीच के कार्टिलेज पर कोई दबाव नहीं होता, जिससे अंतरिक्ष में ये थोड़ा लंबी हो जाती है। लंबे समय तक भारहीनता के कारण बोन डेनसिटी और मांसपेशियों के द्रव्यमान का तेजी से नुकसान होता है।
इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने विशेष उपकरणों के साथ हार्नेस का उपयोग करके जमकर कसरत की ताकि गुरुत्वाकर्षण जैसा अनुभव किया जा सके और मांसपेशियों के द्रव्यमान को बनाए रखने के लिए वजन उठाया, विशेष रूप से कूल्हों और पैरों में।
उन्होंने कार्डियोवैस्कुलर फिटनेस के लिए एक्सरसाइज बाइक का भी उपयोग किया। जैसे ही विलियम्स और विलमोर मंगलवार और बुधवार की मध्य रात्रि को पानी में उतरे, उन्हें अंतरिक्ष यान से बाहर निकाला गया और स्ट्रेचर पर रखा गया।
यह एहतियातन नहीं किया गया- यह जरूरत थी। राइस यूनिवर्सिटी में एप्लाइड स्पोर्ट्स साइंस के निदेशक व नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक जॉन डेविट ने स्पष्ट किया, ‘कई अंतरिक्ष यात्री स्ट्रेचर पर बाहर नहीं आना चाहते लेकिन उन्हें बताया जाता है कि उन्हें ऐसा करना होगा।’
माइक्रोग्रैविटी में महीनों बिताने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को अक्सर खड़े होने में परेशान होना पड़ता है, चलने की तो बात ही छोड़ दें। संतुलन से जुड़ी समस्याएं, चक्कर आना और मांसपेशियों की कमजोरी सामान्य हैं, जिससे तत्काल चिकित्सा मूल्यांकन जरूरी हो जाता है।
वहीं धरती पर वापसी के बाद यहां तत्काल ढल भी नहीं पाते। लैंडिंग के बाद, उनके फ्लूइड बैलेंस को स्थिर होने में लगभग 24 से 48 घंटे लगेंगे, जिसके बाद ही वह सबसे छोटी शारीरिक गतिविधियां फिर से शुरू कर पाएंगी। वह धैर्य, भावनात्मक नियंत्रण, सकारात्मकता और अडिग प्रतिबद्धता का सच्चा प्रतीक हैं।
वह दृढ़ता और लचीलापन का प्रतिबिंब हैं। उनकी यह यात्रा संपूर्ण मानव जाति की वो ताकत का प्रमाण है कि हम इंसान सबसे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को भी पार कर सकते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि उनके संघर्ष, जज्बे और साहस को गुजरात के मेहसाणा जिले के झुलासन गांव में भी लोगों ने सराहा और जश्न मनाया, जो कि उनका पुश्तैनी गांव है।
फंडा यह है कि जीवन यात्रा कितनी भी कठिन और अनिश्चित क्यों न हो, जो कि कुछ मामलों में हो सकती है, लेकिन हमारी प्रतिबद्धता और मानसिकता ही अंततः हमें सफलता का रास्ता दिखाती है और हमें हमारे प्रियजनों के पास वापस ले आती है।
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कल्पना करें, हम दस दिन के लिए आधिकारिक टूर पर जा रहे हैं और अचानक ये एक और हफ्ते खिंच जाता है। हम घर पर फोन करते हैं और उन्हें समझाते हैं कि जल्दी ही लौट आएंगे। लेकिन प्रोजेक्ट कुछ और दिनों के लिए खिंच जाता है और इस बार इसकी समयसीमा तय नहीं है।
अब कल्पना करें कि हम पर क्या बीतेगी? हम में से कई लोग टूट जाते हैं और घंटों तक घरवालों से बात करते रहते हैं, उन्हें मनाते हैं। कल्पना करें कि आने के 250 दिन बाद भी हम घर नहीं लौट पाए हैं, तब हमारी क्या मनोस्थिति होगी?
अगर आपको लगता है कि असल दुनिया में ऐसा नहीं हो सकता और हमेशा फ्लाइट पकड़कर जल्दी घर आ सकते हैं, भले ही थोड़े समय के लिए और ऐसे हालात सिर्फ चरम या काल्पनिक होते हैं, तो असली दुनिया में आपका स्वागत है और आगे पढ़ें।
उन्हें अनिश्चितताओं के बीच सबसे बुरे हालात देखने पड़े। वह केवल आधिकारिक काम के लिए एक सहकर्मी के साथ आठ दिनों के लिए गई थीं। लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि उनकी वापसी की तारीख का कोई अंदाजा नहीं लगा पा रहा था।
इस बीच वह चारों ओर घूमती रहीं, माफ करें, शून्य गुरुत्वाकर्षण में तैरती रहीं और स्पेस स्टेशन में 286 दिन बिताते हुए 195.2 मिलियन किमी की दूरी तय करके पृथ्वी के 4,577 चक्कर लगाए और अंततः सुनीता विलियम्स अपने साथी अंतरिक्ष यात्री बुच विलमोर के साथ इस बुधवार की सुबह ब्रह्म मुहूर्त में सुरक्षित धरती पर लौट आए।
हालांकि इतना लंबा ये पहला मिशन नहीं था। पहले के कुछ मिशन इससे लंबे थे। लेकिन इस मिशन में महत्वपूर्ण बात ये थी कि वापसी की तारीख को लेकर अनिश्चितता थी। इन 286 दिनों में उनके नाखून-बाल शायद तेजी से बढ़े।
उनकी रीढ़ की हड्डी शायद फैल गई होगी क्योंकि कशेरुकाओं के बीच के कार्टिलेज पर कोई दबाव नहीं होता, जिससे अंतरिक्ष में ये थोड़ा लंबी हो जाती है। लंबे समय तक भारहीनता के कारण बोन डेनसिटी और मांसपेशियों के द्रव्यमान का तेजी से नुकसान होता है।
इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने विशेष उपकरणों के साथ हार्नेस का उपयोग करके जमकर कसरत की ताकि गुरुत्वाकर्षण जैसा अनुभव किया जा सके और मांसपेशियों के द्रव्यमान को बनाए रखने के लिए वजन उठाया, विशेष रूप से कूल्हों और पैरों में।
उन्होंने कार्डियोवैस्कुलर फिटनेस के लिए एक्सरसाइज बाइक का भी उपयोग किया। जैसे ही विलियम्स और विलमोर मंगलवार और बुधवार की मध्य रात्रि को पानी में उतरे, उन्हें अंतरिक्ष यान से बाहर निकाला गया और स्ट्रेचर पर रखा गया।
यह एहतियातन नहीं किया गया- यह जरूरत थी। राइस यूनिवर्सिटी में एप्लाइड स्पोर्ट्स साइंस के निदेशक व नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक जॉन डेविट ने स्पष्ट किया, ‘कई अंतरिक्ष यात्री स्ट्रेचर पर बाहर नहीं आना चाहते लेकिन उन्हें बताया जाता है कि उन्हें ऐसा करना होगा।’
माइक्रोग्रैविटी में महीनों बिताने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को अक्सर खड़े होने में परेशान होना पड़ता है, चलने की तो बात ही छोड़ दें। संतुलन से जुड़ी समस्याएं, चक्कर आना और मांसपेशियों की कमजोरी सामान्य हैं, जिससे तत्काल चिकित्सा मूल्यांकन जरूरी हो जाता है।
वहीं धरती पर वापसी के बाद यहां तत्काल ढल भी नहीं पाते। लैंडिंग के बाद, उनके फ्लूइड बैलेंस को स्थिर होने में लगभग 24 से 48 घंटे लगेंगे, जिसके बाद ही वह सबसे छोटी शारीरिक गतिविधियां फिर से शुरू कर पाएंगी। वह धैर्य, भावनात्मक नियंत्रण, सकारात्मकता और अडिग प्रतिबद्धता का सच्चा प्रतीक हैं।
वह दृढ़ता और लचीलापन का प्रतिबिंब हैं। उनकी यह यात्रा संपूर्ण मानव जाति की वो ताकत का प्रमाण है कि हम इंसान सबसे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को भी पार कर सकते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि उनके संघर्ष, जज्बे और साहस को गुजरात के मेहसाणा जिले के झुलासन गांव में भी लोगों ने सराहा और जश्न मनाया, जो कि उनका पुश्तैनी गांव है।
फंडा यह है कि जीवन यात्रा कितनी भी कठिन और अनिश्चित क्यों न हो, जो कि कुछ मामलों में हो सकती है, लेकिन हमारी प्रतिबद्धता और मानसिकता ही अंततः हमें सफलता का रास्ता दिखाती है और हमें हमारे प्रियजनों के पास वापस ले आती है।
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