एन. रघुरामन का कॉलम: अगर आप लीडर हैं या निर्णय लेने वाली कोई अथॉरिटी, तो याद रखें कि उदारता आपकी ताकत है ना कि कमजोरी।

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एन. रघुरामन का कॉलम:  अगर आप लीडर हैं या निर्णय लेने वाली कोई अथॉरिटी, तो याद रखें कि उदारता आपकी ताकत है ना कि कमजोरी।

एन. रघुरामन का कॉलम: अगर आप लीडर हैं या निर्णय लेने वाली कोई अथॉरिटी, तो याद रखें कि उदारता आपकी ताकत है ना कि कमजोरी।

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5 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

जानलेवा कोविड-19 के दौर से गुजरने वाले हम सभी लोग जानते हैं कि कैसे हमने वह समय गुजारा, खासकर मार्च से अगस्त 2020 के बीच का वो समय। इस दौरान न केवल असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, बल्कि निजी कंपनियों के कर्मचारियों को भी वेतन कटौती का सामना करना पड़ा।

लोकसभा में 3 अगस्त 2021 को प्रस्तुत श्रम पर स्थायी समिति की 25वीं रिपोर्ट के अनुसार, दूसरी लहर पहली लहर की तुलना में अधिक गंभीर थी। रिपोर्ट में कहा गया कि असंगठित क्षेत्र में “महत्वपूर्ण आय हानि” हुई, जिससे कमजोर वर्ग और अधिक संकट में आ गए।

हम आम नागरिकों ने कभी भी सरकारी निर्देशों का इंतजार नहीं किया। हमने अपने घरेलू सहायकों का ध्यान रखा, जिनकी आय बहुत कम थी। और सभी ने सोचा कि सरकारी कर्मचारी हम सबमें से सबसे ज्यादा सुरक्षित और संरक्षित हैं, क्योंकि वही सरकारी अधिकारी और नेतागण हमें अपने कर्मचारियों के प्रति दयालु होने की सलाह दे रहे थे।

लेकिन रेलवे के तिरुचिरापल्ली (तमिलनाडु) स्थित केंद्रीय वर्कशॉप में तृतीय श्रेणी तकनीशियन, केरल के नीलांबुर के रहने वाले के. नितीश इतने खुशकिस्मत नहीं थे। नितीश ने अपने बच्चे की बीमारी के कारण 16 से 18 मार्च 2020 तक तीन दिन की छुट्टी ली और अपने गृहनगर चले गए।

इसके बाद उन्होंने अपनी छुट्टी को तीन दिन और बढ़ाकर 21 मार्च तक कर लिया, ताकि वह अपने बच्चे की देखभाल कर सकें। उस समय सामान्य बुखार और कोविड-19 बुखार के बीच अंतर समझ पाना मुश्किल था। अफवाहें फैली हुई थीं और लोग चिंतित थे।

तब नितीश ने अपनी छुट्टी को कैजुअल लीव के तहत समायोजित करने का अनुरोध किया था। लेकिन 22 मार्च को कोविड-19 महामारी को रोकने के लिए देशव्यापी कर्फ्यू की घोषणा कर दी गई। इसके बाद 24 मार्च को पूरे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया गया।

31 जुलाई 2020 को उन्होंने टैक्सी किराए पर ली और लगभग 400 किमी की यात्रा के लिए पास लेकर तिरुचिरापल्ली लौट आए और ड्यूटी पर रिपोर्ट किया। हालांकि, मेडिकल रिकॉर्ड के अनुसार, उन्हें 14 दिन के क्वारंटाइन की सलाह दी गई थी।

कोविड-19 के दौरान के समय को विशेष कैजुअल लीव के तौर पर रखने वाले सरकारी सर्कुलर पर भरोसा करते हुए उन्होंने अपनी अनुपस्थिति को नियमित करने के लिए एक आवेदन दिया। चूंकि वह 22, 23 और 24 मार्च 2020 की अनुपस्थिति का स्पष्टीकरण नहीं दे पाए, इसलिए उनका अनुरोध खारिज कर दिया गया और उन्हें जबरन रिटायर कर दिया गया।

दिलचस्प बात यह है कि महामारी के दौरान तिरुचिरापल्ली वर्कशॉप भी 20 मार्च से 2 जून 2020 तक बंद रही। और हम सब जानते हैं कि ऐसी तनावपूर्ण स्थिति में खबरें तेजी से फैलती हैं और उन्हें वर्कशॉप बंद होने की सूचना भी मिल गई थी। यही कारण है कि नितीश 22 मार्च को काम पर रिपोर्ट नहीं कर सके।

मामले में नितीश द्वारा दायर याचिका पर केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, एर्नाकुलम बेंच ने सुनवाई करते हुए उनकी सजा कम करते हुए उन्हें निचले वेतनमान पर बहाली का आदेश दिया। उन्हें 48 महीने के लिए सहायक (वर्कशॉप) ग्रेड में वरिष्ठता के निचले स्तर पर डिमोट कर दिया गया था।

फैसले से असंतुष्ट होकर उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने मामले की समीक्षा के बाद पाया कि याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति जानबूझकर नहीं थी, जिससे इतनी कड़ी सजा उचित नहीं थी। याचिकाकर्ता ने ड्यूटी पर रिपोर्ट करने के लिए 400 किमी की यात्रा की थी, बावजूद इसके कि उसे क्वारंटाइन में रहना पड़ा।

न्यायाधिकरण और अनुशासनात्मक प्राधिकरण का यह तर्क कि वह 22, 23 और 24 मार्च 2020 की अनुपस्थिति का स्पष्टीकरण नहीं दे सका, पूरी तरह से अनुचित था। कोर्ट ने सजा को रद्द करते हुए अधिकारियों को निर्देश दिया कि उसकी तीन दिन की अनुपस्थिति को आकस्मिक अवकाश के रूप में माना जाए और पदोन्नति के सारे लाभ दिए जाएं।

फंडा यह है कि अगर आप लीडर हैं या निर्णय लेने वाली कोई अथॉरिटी, तो याद रखें कि उदारता आपकी ताकत है ना कि कमजोरी। और सबसे ज्यादा जरूरत के वक्त उदार रहना अच्छे लीडर का गुण है।

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