एक ही दिन जन्म और राजनीति में साथ उदय, डेप्युटी सीएम भी बने… महाराष्ट्र के जिगरी दोस्तों की जोड़ी
इससे पहले भी अजित पवार ने सीधे तौर पर देवेंद्र फडणवीस पर आरोप लगाने या आलोचना करने से बचते रहे हैं। हालांकि, पवार बीजेपी पर निशाना साधने में बिलकुल भी नहीं चूकते। दोनों के बीच दोस्ती का नजारा बीते विधानसभा के बजट सत्र में भी देखने को मिला था। अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस को अगर महाराष्ट्र की राजनीति में जय-वीरू कहा जाये तो गलत नहीं होगा। संयोग से, देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार का जन्मदिन भी एक ही दिन यानी 22 जुलाई को पड़ता है।
पक्के दोस्त राजनीती में भी एक साथ हुई एंट्री
देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार की राजनीति में एंट्री भी लगभग एकसाथ ही हुई थी। दोनों की उम्र में करीब 10 साल का अंतर है। अजीत पवार ने साल 1991 में राजनीति में प्रवेश किया था। शुरुआत में वह बारामती से सांसद थे लेकिन अपने चाचा शरद पवार के लिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। उस समय शरद पवार केंद्र में रक्षा मंत्री बन चुके थे। उसके बाद बारामती विधानसभा चुनाव में अजित पवार की जीत हुई थी।
वहीं देवेंद्र फडणवीस ने साल 1992 में राजनीति में प्रवेश किया था। उस समय वह कॉलेज से पढाई पूरी कर निकले ही थे। इसी साल वह नागपुर में पार्षद बने उसके बाद में वह मेयर भी बने। फिलहाल वह राज्य के उपमुख्यमंत्री हैं। देवेंद्र फडणवीस उस समय प्रदेश की राजनीति में सक्रिय नहीं थे। हालांकि, राज्य की राजनीति में प्रवेश करने के बाद उन्होंने अपनी खास पहचान बनाई। देवेंद्र फडणवीस को अजित पवार का टू द पॉइंट स्टाइल पसंद है। सुबह के शपथ ग्रहण समारोह के बाद दोनों के बीच दोस्ती पर मुहर लग गई थी।
विपक्ष में एक अच्छे दोस्त की जरूरत होती है
राजनीति में आपको विपक्ष में भी हमेशा एक अच्छे दोस्त की जरुरत होती है। जैसे विलासराव देशमुख और गोपीनाथ मुंडे थे। उसी तरह से अब देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार की अच्छी दोस्ती है। साल 1999 में जब देवेंद्र फडणवीस पहली बार विधायक बने थे, तब उनका सीधा संबंध अजीत पवार जुड़ा था। दोनों की विधानसभा में अच्छी बनती थी, आज भी वैसे ही रिश्ते हैं। देवेंद्र फडणवीस हमेशा अपनी चतुराई से सदन में अजित पवार को घेरने की कोशिश करते थे। वहीं अजित पवार भी उन्हें उतनी ही समझदारी से जवाब देते थे। अजीत पवार ने फडणवीस के आरोपों को कभी व्यक्तिगत रूप से नहीं लिया। इसलिए दोनों की दोस्ती आज भी कायम है।
सुबह का शपथ समारोह
इसी दौरान साल 2019 में 22 से 27 नवंबर के बीच महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा भूचाल आया। इसके लिए भी कहीं न कहीं अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस की दोस्ती जिम्मेदार थी। सियासत में कट्टर विरोधी दल बीजेपी और एनसीपी एकसाथ आए थे। दोनों नेता न केवल एकसाथ आए बल्कि उन्होंने राजभवन में सुबह-सुबह बिना किसी को बताये मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली। अगर यह प्रयोग सफल हुआ होता तो दोनों दोस्तों ने महाराष्ट्र की सरकार चलाई होती। हालांकि, महज 80 घंटे में अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस का यह खेल फेल हो गया।
नरेंद्र मोदी पर नरम रुख
अजित पवार ने बीते सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री के मुद्दे पर भी नरम रुख अपनाया। अजीत पवार ने कहा, ‘2014 में, क्या लोगों ने पीएम मोदी को उनकी डिग्री के आधार पर वोट दिया था? उनके करिश्मे ने उनकी मदद की और उन्होंने चुनाव जीता। वह नौ साल से देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।’ इसलिए उनकी डिग्री के बारे में पूछना उचित नहीं है। बल्कि लोगों को उनसे महंगाई और बेरोजगारी पर सवाल पूछना चाहिए। उनकी डिग्री महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। पवार ने सवाल पूछा कि उनकी डिग्रियों की जानकारी सामने आने से महंगाई कम होगी क्या? क्या डिग्री की हकीकत जानने से लोगों को नौकरी मिलेगी?’