एक हार और फिर ‘एका’ की एंट्री! 14 फीसदी वोटर्स के लिए BJP ने चुनाव से पहले बदली रणनीति

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एक हार और फिर ‘एका’ की एंट्री!  14 फीसदी वोटर्स के लिए BJP ने चुनाव से पहले बदली रणनीति

एक हार और फिर ‘एका’ की एंट्री! 14 फीसदी वोटर्स के लिए BJP ने चुनाव से पहले बदली रणनीति

रीवा: विधानसभा चुनाव 2018 के पहले मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र में ‘माई के लाल’ वाले बयान को लेकर सियासत तेज थी। ये बयान मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने आरक्षण के मुद्दे पर दिया था। इस बयान का सबसे ज्यादा विरोध विंध्य और ग्वालियर-चंबल में देखने को मिला था। लेकिन चुनाव के बाद जब नतीजे आएं तो जिले की सभी 8 सीटें बीजेपी के खाते में गईं थी। कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला था। इस बार भी रीवा जिले की सभी विधानसभा सीटों को साधने के लिए बीजेपी ने विंध्य के सबसे बड़े चेहरे राजेन्द्र शुक्ल को कैबिनेट मंत्री बनाया है। हालांकि उन्हें मंत्री बनाने की मांग लंबे समय से चल रही थी लेकिन विधानसभा सभा चुनाव के करीब डेढ़ महीने पहले उन्हें ये पद दिया गया है। आइए जानते हैं रीवा जिले की सियासी समीकरण के अकेले राजेन्द्र शुक्ल कैसे साध सकते हैं। बीजेपी राजेन्द्र शुक्ल के सहारे ब्राह्मण वोट को कैसे साध पाएगी।

राजेन्द्र शुक्ल का रीवा विधानसभा सीट के साथ-साथ पूरे विंध्य में प्रभाव है। विधानसभा चुनाव से पहले एमपी में नगरीय निकाय चुनाव हुए थे। बीजेपी को रीवा में हार मिली थी। जिसके बाद स्थानीय तौर पर यह कहा गया था कि मेयर के टिकट वितरण में राजेन्द्र शुक्ल की राय नहीं ली गई थी। राजेन्द्र शुक्ल को मंत्रालय नहीं देने के कारण जिले का स्थानीय वोटर्स बीजेपी से नाराज है। नगरीय निकाय चुनाव में हार के बाद ही बीजेपी ने अपना मंथन शुरू कर दिया था।

अभय मिश्रा की चुनाव से पहले एंट्री
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने कई सर्वे कराए। सर्वे रिपोर्ट के नतीजे बीजेपी के पक्ष में नहीं थे। जिसके बाद राज्य में कैबिनेट विस्तार की योजना पर काम किया गया। इसी बीच 11 अगस्त 2023 को बीजेपी में अभय मिश्रा की वापसी हुई। अभय मिश्रा की बीजेपी में वापसी के बाद ही जिले की सियासत तेज हो गई। राजेन्द्र शुक्ल के धुर-विरोधी माने जाने वाले अभय मिश्रा ने अपनी पत्नी के साथ बीजेपी की सदस्यता ले ली। ये अलग बात है कि अभय ने अपने राजनीति की शुरुआत बीजेपी से ही की थी और 2008 में पहली बार सेमारिया विधानसभा सीट से विधायक बने थे। 2013 में उनकी छवि खराब होने के कारण पार्टी ने उनकी पत्नी नीलम मिश्रा को सेमारिया से चुनाव मैदान में उतारा।

2018 में अभय मिश्रा ने बीजेपी से बगावत की और कांग्रेस में शामिल हो गए। अभय मिश्रा ने 2018 का विधानसभा चुनाव राजेन्द्र शुक्ल के खिलाफ रीवा विधानसभा सीट से लड़ा। राजेद्र शुक्ल ये चुनाव तो जीत गए। लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में अभय मिश्रा भी राजेन्द्र शुक्ल के खिलाफ अपनी सियासत को बुंलद किए रहे। 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले अभय की फिर से बीजेपी में वापसी के बाद राजेन्द्र शुक्ल का खेमा नाराज बताया जा रहा था।

ब्राह्मण वोटर्स पर राजेन्द्र शुक्ल की पकड़
रीवा जिले में विधानसभा की आठ सीटें हैं। इन आठों सीटों पर राजेन्द्र शुक्ल का प्रभाव है। अभय मिश्रा के बीजेपी में शामिल होने के बाद माना जा रहा है कि उन्हें सेमारिया विधानसभा सीट से टिकट मिल सकती है। सेमारिया से अभी राजेन्द्र शुक्ल के खास केपी त्रिपाठी विधायक हैं। रीवा की 8 सीटें जीतने के लिए बीजेपी राजेन्द्र शुक्ल को नाराज नहीं करना चाहती थी जिस कारण से उन्हें कैबिनेट में जगह दी गई।
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रीवा में कितने फीसदी ब्राह्मण वोटर्स
मध्यप्रदेश का विंध्य क्षेत्र की गिनती देश के उन इलाकों में होती है जहां ब्राह्मण आबादी ज्यादा है। रीवा जिले में करीब 14 फीसदी ब्राह्मण वोटर्स हैं। वहीं, मध्यप्रदेश में करीब 10 फीसदी वोटर्स हैं। विंध्य क्षेत्र में 30 विधानसभा सीट हैं। इनमें से 23 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां ब्राह्मणों की आबादी 30 फीसदी के करीब है। नरोत्तम मिश्रा और गोपाल भार्गव बाद राजेन्द्र शुक्ल राज्य के बड़े ब्राह्मण नेता है। शिवराज कैबिनेट में अब ब्राह्मण मंत्रियों की संख्या तीन हो गई है। वहीं, वीडी शर्मा खुद प्रदेश अध्यक्ष हैं। ऐसे में बीजेपी प्रदेश के ब्राह्मण वोटर्स को यह मैसेज देना चाहती है कि राज्य सरकार ब्राह्मण विरोधी नहीं है।

रीवा जिले में कैसा था 2018 में बीजेपी का प्रदर्शन

विधानसभा सीट जिला विधायक पार्टी
रीवा रीवा राजेन्द्र शुक्ल (शिवराज कैबिनेट में मंत्री) बीजेपी
सेमारिया रीवा केपी त्रिपाठी बीजेपी
सिरमौर रीवा दिव्यराज सिंह बीजेपी
त्योंथर रीवा श्याम लाल द्विवेदी बीजेपी
मऊगंज रीवा प्रदीप पटेल बीजेपी
देवतलाब रीवा गिरीश गौतम बीजेपी
मनगंवा रीवा पंजूलाल प्रजापति बीजेपी
गुढ़ रीवा नागेन्द्र सिंह बीजेपी

बसपा का भी प्रभाव
रीवा जिला उत्तरप्रदेश से सटा हुआ है। इस जिले में बसपा और सपा का भी असर दिखाई देता है। कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां बसपा के उम्मीदवारों से यहां बीजेपी और कांग्रेस को सीधी टक्कर मिलती है। ब्राह्मण वोटर्स के साथ-साथ जिले की आठों विधानसभा सीटों पर पटेल, ठाकुर वोट का भी वर्चश्व है। इसके अलावा आदिवासी वोटर्स भी प्रदेश की 8 विधानसभा सीटों पर निर्णायक वोटर्स हैं।

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