एक दांव और बदल गई बिहार की सियासत, जानिए किस पासे ने बीजेपी को बनाया नंबर वन और RJD-JDU का कर दिया नुकसान… इनसाइड स्टोरी h3>
पटना: जरा याद कीजिए 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव। मुकाबला ऐसा था कि रात तक सियासी गलियारे में सांस थमी रही। कभी लग रहा था कि महागठबंधन आगे तो कभी NDA। लेकिन आखिरी वक्त में बाजी NDA के हाथ में गई। बीजेपी के 74, JDU के 43, मांझी की हम के चार और मुकेश सहनी की वीआईपी के भी 4 विधायकों की मदद से बिहार में नीतीश ने NDA के साथ सत्ता पर कब्जा बरकरार रखा। हालांकि इस चुनाव में RJD 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच सिर्फ 15 सीटों का अंतर रह गया। लेकिन इसी NDA में सरकार बनते के ही लालू और उनके बेटे उसके गिरने की भविष्यवाणी करने लगे। सूत्र बताते हैं कि उन्हें पूरी उम्मीद थी मांझी तो नहीं लेकिन सहनी की अतिमहत्वाकांक्षा इसका कारण बनने जा रही है। लेकिन आखिर में बीजेपी ने RJD की इस उम्मीद को धूल में मिला दिया। बीजेपी न सिर्फ बिहार में नंबर वन बन गई है बल्कि उसने नीतीश की जेडीयू को भी कई सीट पीछे छोड़ दिया है। शायद ये लगे कि यूपी चुनाव में सहनी के यूपी में ताल ठोकने के बाद ये सब हुआ। लेकिन यकीन मान लीजिए कि ये तभी तय हो गया था जब भविष्य की चाल को बीजेपी सरकार बनते के साथ ही भांप गई थी। पढ़िए बीजेपी के बिहार में नंबर वन पार्टी बनने की ये इनसाइड स्टोरी…
सियासत ही होनी है और वही अनहोनी भी
मुकेश सहनी ने आरजेडी के साथ सुर में सुर मिलाना तब शुरू किया जब बिहार विधानपरिषद में RJD की सदन में उन पर किया गया तंज मूर्त रूप लेने लगा। दरअसल तेजस्वी ने पिछले साल ही विधानसभा में सहनी पर तंज कसा था कि पता नहीं अब उनका परिषद का कूपन रीचार्ज होगा भी या नहीं। क्या कहा था तेजस्वी ने… इसे जानने के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं। खैर, इसके बाद हाल ही में विधानपरिषद चुनावों का ऐलान हो गया। इससे पहले यूपी में योगी के खिलाफ सहनी ने ताल ठोक रखी थी। बस, यहीं से बीजेपी ने वो किया जो वो सरकार बनते के साथ करना चाह रही थी। यूं समझिए कि चार सीटों की बिसात भले ही VIP की थी लेकिन उसके चार में से तीन मोहरे बीजेपी के। बस बीजेपी यही चाहती थी कि जब मुकेश सहनी हदें पार कर दें तो उसके मोहरे साथ न छोड़ें।
सन ऑफ मल्लाह तो खुद ही अपनी नाव में कर चुके थे छेद
दरअसल, पटकथा तो पहले लिखी जा चुकी थी। लेकिन इसके मुख्य किरदार प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और तार किशोर प्रसाद हैं। जिन्होंने न सिर्फ सहनी की नाव डुबाई बल्कि योगी की राह में रोड़ा बनने वालों को हश्र भी बता दिया। विधानसभा के भीतर अध्यक्ष के चैम्बर में वीआईपी के तीनों विधायक स्वर्णा सिंह, मिश्री लाल यादव और राजू सिंह की लंबी मुलाकात चली। ये मुलाकात ऐसी ही नहीं थी। वीआईपी के तीनों विधायक मुकेश सहनी की नाव पलटने यहां पहुंचे थे। बताते चलें कि बीजेपी ने सहनी की नाव में पहले ही कई छेद बना रखे थे। ताकि जब जरूरत पड़े तो बीजेपी उन छेदों से उंगली हटा सके। ये बात मुकेश सहनी को पता थी, लेकिन उन्हें लग रहा था कि वो अंतिम वक्त में चमत्कार कर देंगे। बस यही गलतफहमी सहनी को ले डूबी।
नित्यानंद राय से यूं ही नहीं हुई सीएम नीतीश की मुलाकात
इससे पहले बीजेपी के कद्दावर नेता और अमित शाह के सेकेंड हैंड माने जाने वाले गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने होली के मौके पर नीतीश कुमार से मुलाकात की थी। इस दौरान NBT ने इस मुलाकात के दौरान उनके पॉकेट में बजते फोन पर राजनीतिक शंका जाहिर की थी। ये मुलाकात ऐसे ही नहीं थी। नित्यानंद राय मुकेश सहनी को हटाने का फरमान लेकर आए थे। मंत्रिमंडल में शामिल मंत्री को बाहर का रास्ता दिखाने का अधिकार मुख्यमंत्री का है। ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों मुकेश सहनी को बाहर का रास्ता दिखाना तय माना जा रहा है।
Bihar Politics : ‘बीजेपी और वीआईपी के झगड़े से हमें क्या लेना-देना?’… अब तो सहनी से मांझी ने भी किया किनारा
लेकिन इस पूरे खेल में बीजेपी को फायदा और JDU-आरजेडी को नुकसान!
मगर समीकरणों के आधार पर देखा जाए तो इस बदले हालात में बीजेपी सबसे तगड़े मुनाफे में रही वो भी शुद्ध 24 कैरेट वाले हिसाब से। अब सदन में तेजस्वी का ये दावा ही छीन लिया गया कि वो बिहार की सबसे बड़ी पार्टी हैं। उनकी 75 सीटें तो बरकरार है लेकिन बीजेपी ने वीआईपी के तीन विधायक झटक कर 77 सीटों के साथ बिहार की नंबर वन पार्टी का खिताब लालू के बेटे के हाथ से छीन लिया। जेडीयू भी कोई कम घाटे में नहीं रही, वो तो अपनी सीटें बढ़ाने के जुगाड़ में लगी थी… लेकिन मैदान मार ले गई सहयोगी बीजेपी। खैर यही तो सियासत है, जो सोचा के रखा जाता है वो नहीं होता और जो होता है उसके बारे में कोई सोच ही नहीं पाता।
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सियासत ही होनी है और वही अनहोनी भी
मुकेश सहनी ने आरजेडी के साथ सुर में सुर मिलाना तब शुरू किया जब बिहार विधानपरिषद में RJD की सदन में उन पर किया गया तंज मूर्त रूप लेने लगा। दरअसल तेजस्वी ने पिछले साल ही विधानसभा में सहनी पर तंज कसा था कि पता नहीं अब उनका परिषद का कूपन रीचार्ज होगा भी या नहीं। क्या कहा था तेजस्वी ने… इसे जानने के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं। खैर, इसके बाद हाल ही में विधानपरिषद चुनावों का ऐलान हो गया। इससे पहले यूपी में योगी के खिलाफ सहनी ने ताल ठोक रखी थी। बस, यहीं से बीजेपी ने वो किया जो वो सरकार बनते के साथ करना चाह रही थी। यूं समझिए कि चार सीटों की बिसात भले ही VIP की थी लेकिन उसके चार में से तीन मोहरे बीजेपी के। बस बीजेपी यही चाहती थी कि जब मुकेश सहनी हदें पार कर दें तो उसके मोहरे साथ न छोड़ें।
सन ऑफ मल्लाह तो खुद ही अपनी नाव में कर चुके थे छेद
दरअसल, पटकथा तो पहले लिखी जा चुकी थी। लेकिन इसके मुख्य किरदार प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और तार किशोर प्रसाद हैं। जिन्होंने न सिर्फ सहनी की नाव डुबाई बल्कि योगी की राह में रोड़ा बनने वालों को हश्र भी बता दिया। विधानसभा के भीतर अध्यक्ष के चैम्बर में वीआईपी के तीनों विधायक स्वर्णा सिंह, मिश्री लाल यादव और राजू सिंह की लंबी मुलाकात चली। ये मुलाकात ऐसी ही नहीं थी। वीआईपी के तीनों विधायक मुकेश सहनी की नाव पलटने यहां पहुंचे थे। बताते चलें कि बीजेपी ने सहनी की नाव में पहले ही कई छेद बना रखे थे। ताकि जब जरूरत पड़े तो बीजेपी उन छेदों से उंगली हटा सके। ये बात मुकेश सहनी को पता थी, लेकिन उन्हें लग रहा था कि वो अंतिम वक्त में चमत्कार कर देंगे। बस यही गलतफहमी सहनी को ले डूबी।
नित्यानंद राय से यूं ही नहीं हुई सीएम नीतीश की मुलाकात
इससे पहले बीजेपी के कद्दावर नेता और अमित शाह के सेकेंड हैंड माने जाने वाले गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने होली के मौके पर नीतीश कुमार से मुलाकात की थी। इस दौरान NBT ने इस मुलाकात के दौरान उनके पॉकेट में बजते फोन पर राजनीतिक शंका जाहिर की थी। ये मुलाकात ऐसे ही नहीं थी। नित्यानंद राय मुकेश सहनी को हटाने का फरमान लेकर आए थे। मंत्रिमंडल में शामिल मंत्री को बाहर का रास्ता दिखाने का अधिकार मुख्यमंत्री का है। ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों मुकेश सहनी को बाहर का रास्ता दिखाना तय माना जा रहा है।
Bihar Politics : ‘बीजेपी और वीआईपी के झगड़े से हमें क्या लेना-देना?’… अब तो सहनी से मांझी ने भी किया किनारा
लेकिन इस पूरे खेल में बीजेपी को फायदा और JDU-आरजेडी को नुकसान!
मगर समीकरणों के आधार पर देखा जाए तो इस बदले हालात में बीजेपी सबसे तगड़े मुनाफे में रही वो भी शुद्ध 24 कैरेट वाले हिसाब से। अब सदन में तेजस्वी का ये दावा ही छीन लिया गया कि वो बिहार की सबसे बड़ी पार्टी हैं। उनकी 75 सीटें तो बरकरार है लेकिन बीजेपी ने वीआईपी के तीन विधायक झटक कर 77 सीटों के साथ बिहार की नंबर वन पार्टी का खिताब लालू के बेटे के हाथ से छीन लिया। जेडीयू भी कोई कम घाटे में नहीं रही, वो तो अपनी सीटें बढ़ाने के जुगाड़ में लगी थी… लेकिन मैदान मार ले गई सहयोगी बीजेपी। खैर यही तो सियासत है, जो सोचा के रखा जाता है वो नहीं होता और जो होता है उसके बारे में कोई सोच ही नहीं पाता।