एक्सपर्ट ने कहा, 1980 से पहले जन्मे लोगों को मंक्सीपॉक्स का खतरा कम, क्योंकि…

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एक्सपर्ट ने कहा, 1980 से पहले जन्मे लोगों को मंक्सीपॉक्स का खतरा कम, क्योंकि…

एक्सपर्ट ने कहा, 1980 से पहले जन्मे लोगों को मंक्सीपॉक्स का खतरा कम, क्योंकि…

विशेष संवाददाता, नई दिल्लीः अगर आपका जन्म 1980 से पहले हुआ तो आपको मंकीपॉक्स का खतरा कम है। एक्सपर्ट्स की मानें तो 1980 से पहले तक देश में चेचक से उन्मूलन के लिए बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन किया गया था। चेचक की वैक्सीन काफी हद तक मंकीपॉक्स में भी कारगर मानी जाती है, क्योंकि यह सिंगल टाइम बीमारी है। हालांकि एक्सपर्ट्स कहना है कि समय के साथ इम्युनिटी में कमी आती है, बावजूद इसके जिन्हें वैक्सीन लगी है, उनमें प्रोटेक्शन ज्यादा होने की संभावना है। इससे देश की बड़ी आबादी मंकीपॉक्स के खिलाफ सुरक्षित है, खासकर बुजुर्ग आबादी को संक्रमण का खतरा कम है।

​नई बीमारी नहीं है मंकीपॉक्स

एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉक्टर संजय राय ने कहा कि मंकीपॉक्स कोई नई बीमारी नहीं है। 50 साल से भी ज्यादा समय से यह बीमारी है। यह जूनेटिक बीमारी है, यानी जानवर से इंसान में आती है। इस तरह की बीमारी को पूरी तरह से खत्म करना मुश्किल होता है। उन्होंने कहा कि जब देश में चेचक हो रहा था, तब इसके खिलाफ मौजूद वैक्सीन काफी असरदार था। डॉक्टर संजय ने कहा कि स्मॉल पॉक्स के खिलाफ 95 पर्सेंट तक और चेचक के खिलाफ 85 पर्सेंट तक वैक्सीन काम करती थी। समय के साथ इम्युनिटी घटती है, लेकिन जिन्हें चेचक की वैक्सीन लगी है, उनमें बाकी से बेहतर बचाव हो सकता है।

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सिंगल टाइम बीमारी है मंकीपॉक्स

वहीं, इस बारे में सफदरजंग अस्पताल के कम्युनिटी मेडिसिन के एचओडी डॉक्टर जुगल किशोर ने कहा कि यह सिंगल टाइम बीमारी है। जिन्हें एक बार हुई, उन्हें दोबारा नहीं होती है। अभी तक देखा गया है कि जिन्हें चेचक की वैक्सीन लगी है, उनमें या तो संक्रमण कम हो रहा है और संक्रमण हो भी रहा है तो उनमें इसका असर कम हो रहा है। जिन्हें वैक्सीन लगी है, उनमें मंकीपॉक्स के खिलाफ उन लोगों से ज्यादा प्रोटेक्शन है, जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है। उन्होंने कहा कि पिछले 40 साल से यह वैक्सीन बंद है, इसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है। लेकिन जिन्हें लगी है, उन्हें तो ज्यादा बचाव है।

​एक महीने तक रहना पड़ सकता है आइसोलेशन में

कोविड की तुलना में मंकीपॉक्स ज्यादा खतरनाक नहीं है। इसमें जान जाने का डर उतना नहीं है। यह लंग्स को प्रभावित नहीं करता है। लेकिन, कोविड की तुलना में यह ज्यादा लंबी बीमारी है। सरकार ने 21 दिन का समय तय किया है, लेकिन दिल्ली में आए एक मरीज की पुष्टि में यह देखा जा रहा है कि लगभग एक महीने पूरे होने वाले हैं, बावजूद इसके संक्रमण बना हुआ है। एलएनजेपी के मेडिकल डायरेक्टर डॉक्टर सुरेश कुमार ने बताया कि यह कोविड से ज्यादा लंबी बीमारी है। इसके एक से दो हफ्ते में लक्षण आते हैं और लक्षण आने के बाद लगभग 3 हफ्ते तक बीमारी रहती है। अमूमन यह 4 से 5 हफ्ते की बीमारी है। जब कोविड आया था तो दो हफ्ते का था, लेकिन ओमिक्रॉन वेरिएंट तक आते-आते यह एक हफ्ते से भी कम समय में ठीक होने लगा है। उन्होंने कहा कि यह संक्रमण काफी लंबे समय तक रहता है।

इस बारे में डॉक्टर जुगल किशोर ने कहा कि 21 दिन तो डिफाइन किया गया है, लेकिन यह एक महीने तक जाता है। संपर्क में आए मरीज को कम से कम 21 दिनों तक आइसोलेट रहना है। जो बीमारी है उन्हें तब तक आइसोलेट रहना पड़ सकता है जब तक कि बीमारी खत्म नहीं होती। बीमारी खत्म होने में एक महीने और इससे भी ज्यादा समय लग सकता है। साफ दिख रहा है कि मंकीपॉक्स का इलाज और मैनेजमेंट कोविड से ज्यादा है।

​डरें नहीं, मंकीपॉक्स से मौत का खतरा कम

डॉ. जुगल ने कहा कि मंकीपॉक्स के संक्रमण में अब तक बीमारी बहुत ज्यादा सीवियर नहीं देखी जा रही है। इसमें मौत का खतरा कम है, इसलिए पैनिक करने की जरूरत नहीं है और न ही बिना वजह शोर मचाने की जरूरत है। जरूरत है कि लोगों को जागरूक करें, उन्हें इसके बारे में बताएं। बचाव का तरीका सिखाएं, इसके लिए प्रेरित करें और सच बताएं। अफवाहें रोकें, लोगों को भी एक्सपर्ट की सुननी चाहिए, न कि हर किसी की बात सुनकर अफरातफरी का माहौल बनाएं।

उन्होंने कहा कि यह एक बार होने वाली बीमारी है। मौत का खतरा कम है। लेकिन जब किसी को निमोनिया, मेनिनजाइटिस या आंख में संक्रमण हो जाता है तो खतरा बढ़ जाता है। आंख की रोशनी कम हो सकती है। इसी तरह चेहरे पर निशान बना रह सकता है, दाग आसानी से हटते नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जब किसी का जख्म सूख जाता है और सूखने के बाद पपड़ी बनती है तो उस पपड़ी से भी संक्रमण हो सकता है। यही वजह है कि इसका मैनेजमेंट लंबा चलता है।

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