उम्रकैद की सजा काट रहे 14 कैदी जेल से छूटे: परिवार से मिलकर बोले- गुस्से पर काबू होता तो इतने साल खराब न होते – Gwalior News h3>
ग्वालियर सेंट्रल जेल से भीमराव अंबेडकर जयंती पर कैदियों को रिहाई मिली।
ग्वालियर सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे 14 बंदियों को डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती पर रिहा किया गया। जेल की चारदीवारी से बाहर निकलकर खुले आसमान के नीचे अपने बच्चों और नाती-पोतों से गले मिलते समय वे भावुक हो उठे।
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इस दौरान सभी ने कहा कि जीवन में ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे जेल जाना पड़े। यहां आकर जीवन के कीमती साल पीछे छूट जाते हैं। बाहरी दुनिया और जेल की दुनिया में बहुत अंतर होता है।
अब तक गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस पर ही कैदियों की सजा माफ कर रिहाई की परंपरा थी, लेकिन पिछले दो सालों से अंबेडकर और गांधी जयंती पर भी बंदियों की रिहाई की जा रही है।
इन सभी 14 कैदियों को रिहा किया गया।
प्रदेश भर से रिहा हुए कैदी
सोमवार को अंबेडकर जयंती पर ग्वालियर सेंट्रल जेल सहित मध्यप्रदेश की दूसरी जेलों से भी बंदियों को रिहा किया गया। ग्वालियर सेंट्रल जेल से ऐसे 14 बंदियों को रिहा किया गया, जिन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली थी। यह सभी सिंगल क्राइम मतलब एक बार ही अपराध में नाम आने पर फंस गए थे। जेल में इनका आचरण अच्छा रहा और ये सामाजिक व धार्मिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल रहे।
जेल प्रशासन ने इन बंदियों के नाम शासन को भेजे थे, जिन्हें रिहा करने की अनुमति मिल गई थी। सोमवार को इन्हें औपचारिक रूप से रिहा किया गया।
इन बंदियों को मिली रिहाई
साबिर पुत्र सत्तार, नरेंद्र पुत्र लखन सिंह यादव, रामकिशन पुत्र मगन यादव, कन्हैया पुत्र ज्वाला प्रसाद, महेश पुत्र ज्वाला प्रसाद, कुतरिया पुत्र सुखुआ जाटव, गोपाल पुत्र रामसिंह पाल, खेमचंद पुत्र तख्त सिंह, कल्लू पुत्र रतनू सिंह जाटव, बिहारी पुत्र छुटई कुशवाह, हरिओम पुत्र बिहारी कुशवाह, बिजेंद्र सिंह पुत्र प्रहलाद सिंह सिकरवार, केपी पुत्र मुलायम परिहार, मनोज पुत्र मुलायम सिंह परिहार। ये सभी हत्या जैसे गंभीर अपराध में दोषी पाए गए थे और 14 वर्ष से अधिक समय से जेल में सजा काट रहे थे।
रिहाई के समय भावुक हुए बंदी और परिजन
रिहाई से पहले जेल प्रशासन ने सभी बंदियों को शॉल और श्रीफल दिया। इस अवसर पर जेल अधिकारी, सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा अन्य बंदी भी उपस्थित रहे। जैसे ही बंदियों ने जेल से बाहर कदम रखा, सुबह से इंतजार कर रहे परिजनों ने उन्हें गले लगाया और भावनाओं में बहकर सभी की आंखें भर आईं।
21 सालों तक जेल में रहने के बाद रिहा हुए बंदी कल्लू पुत्र रतनू सिंह जाटव ने कहा, “यदि मैं गुस्से पर काबू रखता तो जीवन के इतने साल खराब न होते। गुस्से में किया गया काम जीवन भर की सजा बन गया।”
ग्वालियर सेंट्रल जेल अधीक्षक विदित सरवईया ने कहा कि बंदियों का आचरण अच्छा था। इसी आधार पर शासन द्वारा उनकी बाकी सजा माफ कर दी गई।