उपचुनाव में मिली हार के बाद सपा हताश-सहयोगी बेचैन! अंदरखाने से अखिलेश की नीतियों पर उठ रहे सवाल

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उपचुनाव में मिली हार के बाद सपा हताश-सहयोगी बेचैन! अंदरखाने से अखिलेश की नीतियों पर उठ रहे सवाल

उपचुनाव में मिली हार के बाद सपा हताश-सहयोगी बेचैन! अंदरखाने से अखिलेश की नीतियों पर उठ रहे सवाल

लखनऊ : समाजवादी पार्टी की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के (राजनीतिक) दुश्मन जहां तेजी से आक्रामक होते जा रहे हैं, तो वहीं उनके दोस्त भी अब उन पर तंज कस रहे हैं। आजमगढ़ रामपुर चुनाव में मिली हार के बाद अखिलेश की पार्टी के नेता उनकी नीतियों पर जमकर आलोचना कर रहे हैं वहीं उनका परिवार भी उनसे कम नाराज नहीं है। ऐसे में अखिलेश यादव के लिए आने वाले महीनों में सबसे बड़ी चुनौती अपनी ही पार्टी और परिवार को साथ रखना होगा।

राजभर के निशाने पर अखिलेश यादव
26 जून को लोकसभा उप चुनाव के परिणाम आने के बाद, सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव पर हार का ठीकरा फोड़ते हुए एसी कमरे से बाहर निकलकर जमीन पर उतरने की नसीहत दी थी। इसके बाद मंगलवार को एक बार फिर सपा और सुभासपा अध्यक्ष आमने-सामने आ गए। अखिलेश यादव प्रदेश में योगी सरकार के 100 दिनों के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड पेश किए जाने पर मंगलवार को हमला बोला। मीडिया के सामने जब सहयोगी दलों की नाराजगी का सवाल किया गया तो अखिलेश ने कहा कि कुछ लोग पीछे से ऑपरेट हो रहे हैं। इस पर ओम प्रकाश राजभर ने अपने ही अंदाज में जवाब दिया है। राजभर ने कहा कि जब साथ रहनीं त कउन ऑपरेट करत रहे (जब साथ थे तो कौन ऑपरेट कर रहा था)?

राजभर की नसीहत पर अखिलेश का हमला
अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ मिलकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने की अपने सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की सलाह को खारिज करते हुए मंगलवार को कहा कि सपा को किसी की सलाह की जरूरत नहीं है। यादव ने लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस में राजभर की सलाह के बारे में पूछे गये एक सवाल पर स्पष्ट कहा ‘समाजवादी पार्टी को किसी की सलाह की जरूरत नहीं है।’इस सवाल पर कि राजभर सपा नेतृत्व की कार्यप्रणाली को लेकर नाराज हैं, पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा ‘अब कोई नाराज है तो मैं उसके लिये क्या कर सकता हूं। आजकल जो राजनीति दिखती है वह है नहीं। कई बार राजनीति पीछे से संचालित होती है।’

ऐसे बयानों से राजभर और अखिलेश के बीच की तकरार धीरे-धीरे सभी के सामने आने लगी है। लेकिन फिर भी कहा जा सरता है कि राजभर की सियासत पूरी तरह से अखिलेश यादव के ऊपर टिकी है, क्योंकि बीजेपी उन्हें साथ लेने के लिए फिलहाल उत्साह नहीं दिखा रही।

उधर, भतीजे अखिलेश यादव से शिवपाल यादव पहले से नाराज हैं और अलग अपनी सियासी राह तलाश रहे हैं। सपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाले महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य अलग हो चुके हैं। इस तरह एक तरफ सहयोगी दल अलग हो रहे हैं तो कुछ सवाल खड़े कर रहे हैं। ऐसे में सपा के लिए 2024 चुनाव की सियासी राह लगातार पथरीली होती जा रही है।

दूसरी तरफ रालोद प्रमुख जयंत चौधरी और सपा गठबंधन में अभी तक सब सही दिख रहा है। जयंत चौधरी मौके-मौके पर अखिलेश यादव और उनकी नीतियों का सपोर्ट करते देखे जा सकते हैं। अभी हाल ही में जब जयंत चुनाव प्रचार के लिए आजमगढ़ पहुंचे थे। यहां जब मीडिया ने जयंत से अखिलेश यादव के आज़मगढ़ न आने पर सवाल किया और पूछा, क्या वो आज़मगढ़ से नाराज हैं, इस सवाल पर जयंत चौधरी ने कहा वह हम सभी के नेता हैं। उन्हीं के कहने पर हम लोग प्रचार करने के लिए आए हैं।

2024 के चुनाव को लेकर बेचैनी
अखिलेश यादव के सहयोगी दलों की चिंता बढ़ गई है, उन्हें भी 2024 में अपने सियासी भविष्य को लेकर बेचैनी है। सूबे में कांग्रेस की वापसी की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है और बसपा गठबंधन को पर राजभर की सलाह को अखिलेश नकार दिया है। ऐसे में सपा से उनकी उम्मीदें टिकी हुई हैं, लेकिन अखिलेश की सुस्ती ने सहयोगी दलों की चिंताएं बढ़ा दी है।

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