उदयपुर में कैसे बना रहा वन-विभाग हर्बल गुलाल: पेड़ से गिरने वाले फूलों को चुनकर बनता है रंग, चक्की की तरह जमाकर बनाते हैं अबीर – Udaipur News

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उदयपुर में कैसे बना रहा वन-विभाग हर्बल गुलाल:  पेड़ से गिरने वाले फूलों को चुनकर बनता है रंग, चक्की की तरह जमाकर बनाते हैं अबीर – Udaipur News

उदयपुर में कैसे बना रहा वन-विभाग हर्बल गुलाल: पेड़ से गिरने वाले फूलों को चुनकर बनता है रंग, चक्की की तरह जमाकर बनाते हैं अबीर – Udaipur News

इस साल फिर से उदयपुर में महिलाएं हर्बल गुलाल बना रही हैं। ये गुलाल पेड़ों से गिरे फूलों, पत्तियों से बनाया जाता है। होली पर इस बार फिर से ये गुलाल शहर में बिकने आएगा। वन-विभाग की ओर से शहरभर में अलग-अलग स्थानों पर स्टॉल लगा कर ये गुलाल बेचा जाएगा।

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हर्बल गुलाल बनाने वाली जगह तक दैनिक NEWS4SOCIALपहुंचा और पूरी बनाने की विधि को समझा। उदयपुर शहर से करीब 17 किलोमीटर दूर उदयपुर-झाड़ोल मार्ग पर नांदेश्वर महादेव जी स्थित​ चौकड़िया पौधशाला में महिलाएं गुलाल तैयार कर रही थी। वहां उनके पूरे काम को देखा और समझा। ऊपर की तरफ उदयपुर-झाड़ोल हाईवे है और नीचे जंगल और पास में नांदेश्वर चैनल है। पानी के किनारे जो वन विभाग की जंगल में नर्सरी है वहां महिलाएं बिना केमिकल वाली ये गुलाल तैयार कर रही है।

पढ़िए-आदिवासी महिलाएं कैसे तैयार करती हर्बल गुलाल

वन विभाग की वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति चौकड़िया बनी हुई है। इसमें 11 महिलाओं का एक समूह है जो होली का कलर बनाती है। इन महिलाओं में सबका अपना अलग-अलग काम है। महिलाएं सुबह से इस काम में लगती हैं। शाम ढलने तक वे हर्बल गुलाल को तैयार करती है। हर्बल गुलाल बनने का हर चरण अलग-अलग होता है। चरण पूरा होने के बाद हर्बल गुलाल बनने का क्रम आगे बढ़ता जाता है।

1. फूलों और पत्तों को एकत्रित करते हैं असल में जंगलों में जाकर फूल लाकर गुलाल बनाने में तो मेहनत बहुत बढ़ जाती है। ऐसे में नर्सरी के पास और आसपास जो भी गार्डन है वहां जो फूल नीचे गिरते है उनको एकत्रित किया जाता है। चौकड़ी नर्सरी में जो पौधे लगे हुए उनकी हरी पत्तियां भी एकत्रित की जाती है। गुलाब के फूल नहीं मिलते है तो इसके लिए ये महिलाएं मंदिर में भगवान को चढ़ाई गई मालाएं जुटा लेती है या आसपास गार्डन में नीचे गिरे गुलाब को एकत्रित कर लेती है। बाकी हरी पत्ती और दूसरे फूल तो जंगल में आसपास मिल ही जाते हैं।

2. इतना उबालते जब तक रंग नहीं छोड़ दे इसके बाद इन पत्तों को बड़े तपेले में आग पर इतना उबालते है कि जब तक ये पत्ते या फूल रंग नहीं छोड़ देते है। उबलने का काम पूरा होने के बाद उसे ठंडा किया जाता है।

3. जब तक गाढ़ा नहीं हो जाता तब मिलाते है अरारोट फूलों का उबाल लाने वाले कलरफूल पानी को ठंडा होने के बाद उसमें अरारोट मिलाना शुरू करते है। अरारोट तब तक मिलाते रहते है जब तक वह पूरी तरह से गाढ़ा नहीं हो जाता है। गाढ़ा होने के बाद उसको एक कपड़े पर फैलाया जाता है। जैसे यह ठंडा होता है तो इसको एकत्रित कर बाद में हल्की धूप में सुखाया जाता है। इस दौरान ये मिश्रण इस कदर जम जाता है कि चक्की या चूरमा बनाने जैसा हो जाता है इसके बाद इसको हाथ से इसको जमे हुए भाग को तोड़कर अलग किया जाता है।

4. ग्राइंडर मशीन में पीसते है इसके बाद सूखे हुए इस रंग को ग्राइंडर मशीन में पीस लिया जाता है जिससे यह पाउडर सा बन जाता है और एक तरह से गुलाल तैयार हो जाता है। महिलाओं ने बताया कि तेज धूप में नहीं सुखाते है क्योंकि सावधानी नहीं रखते तो रंग उड़ जाता है इसलिए हल्की धूप में दो दिन तक सुखाते है।

5. गुलाल तैयार, पैकिंग करते है मशीन से पीसने के बाद गुलाल को महिलाएं वजन कर थेलियों में पैक करती है। इसकी पैकिंग के ऊपर भी पोस्टर लगाते है ताकि मार्केटिंग अच्छी हो सके। इसके बाद जंगल से ये पार्सल उदयपुर शहर आ जाते है और यहां जहां-जहां वन सुरक्षा समिति काउंटर लगाती है वहां इनको बेचने का काम शुरू किया जाता है।

होली से 20 दिन पहले काम शुरू कर देते चौकड़िया वन नर्सरी के नर्बदा शंकर मेनारिया बताते है कि होली जिस तारीख को होती है उसके करीब 20 दिन पहले काम शुरू कर देते है। इसमें होली से करीब दस दिन पहले पैकेट तैयार कर बेचना भी शुरू करवा देते है।

महिलाओं को यह फायदा होता है वन सुरक्षा समिति की 11 सदस्यों की महिला समूह को वन विभाग की और से जो मजदूरी प्रतिदिन बनता है वह तो उनको दिया ही जाता है लेकिन इस गुलाल से होने वाला फायदा भी उनमें ही बंटता है। एक तरह से हर्बल गुलाल बनाने से लेकर बेचने में सारा खर्चा निकालने के बाद जो भी फायदा होता है वह इन 11 महिलाओं में इंसेंटिव राशि के रूप में बांट दिया जाता है। प्रति महिला कभी 1 हजार से 2 हजार रुपए तक का इंसेंटिव होता है लेकिन वह कितनी गुलाल बनती और बिकती है उस पर डिपेंड करता है।

ये चार प्रकार की गुलाल बनाते

  1. रंगे गुलाब : यह गुलाब के फूलों से बनाया जाता है।
  2. रंगे पलाश : यह पलाश के फूलों से बनाया जाता है।
  3. रंगे हरियाली : यह हरियाली यानि की हरे पत्तों से बनाया जाता है
  4. रंगे अमलताश : यह अमलताश के फूलों से बनाया जाता है

तैयार गुलाल की पैकेजिंग करते हुए

ऐसे बेचते गुलाल वन विभाग की और उदयपुर में अपने वन भवन के बाहर, शहर के टूरिस्ट प्वाइंट जैसे फतहसागर, सहेलियों की बाड़ी आदि क्षेत्र जहां भी सुविधा होती है वहां काउंटर लगाकर इसे बेचा जाता है। काउंटर भी महिला समूह की सदस्य ही संभालती है। टूरिस्ट प्वाइंट पर काउंटर होने से उदयपुर आने वाला टूरिस्ट भी गुलाल खरीदता है। नर्सरी पर 250 ग्राम के पैकेट में गुलाल पैक की जाती है।

एक मंडल में 6 क्विंटल गुलाल बनाई उदयपुर वन मंडल दक्षिण के DFO मुकेश सैनी बताते है कि इस बार 6 क्विंटल गुलाल तैयार की जा रही है। वे बताते है कि इस गुलाल की डिमांड दूसरे राज्यों के अलावा राजस्थान के दूसरे शहरों में भी रहती है। सैनी ने बताया कि बिना केमिकल के ये हर्बल गुलाल महिलाएं अपने हाथों से तैयार करती है।

तस्वीरों में देखिए कैसे बनता है हर्बल गुलाल…

सबसे पहले इन फूलों को एकत्रित करते हैं

फूलों को गर्म पानी में उबालते हैं जब तक इनका रंग नहीं निकल जाता।

अरारोट मिलाने के बाद ऐसा हो जाता गुलाल

सुखाने की तैयारी

करीब दो दिन तक हल्की धूप देते हैं

ग्राइंडर में पीसने से पहले चक्की जैसे जमे गुलाल को अलग करते है

अब ग्राइंडर में पीसते और यह गुलाल तैयार होता है

तैयार गुलाल बताते वनकर्मी नर्बदा शंकर मेनारिया

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