आरती जेरथ का कॉलम: बिहार के अति पिछड़ा वोट बैंक पर सभी की नजर है

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आरती जेरथ का कॉलम:  बिहार के अति पिछड़ा वोट बैंक पर सभी की नजर है

आरती जेरथ का कॉलम: बिहार के अति पिछड़ा वोट बैंक पर सभी की नजर है

3 घंटे पहले

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आरती जेरथ राजनीतिक टिप्पणीकार

बिहार में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए ईबीसी (अति पिछड़ा जातियां) वोटों को लेकर होड़ शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की खराब सेहत ने भी इसमें योगदान दिया है। कांग्रेस, भाजपा और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बिहार के इस मजबूत मतदाता-वर्ग (ईबीसी) पर नजरें गड़ाए हुए हैं।

चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की इस वर्ग की क्षमता ने ही अभी तक नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति में सबसे आगे रखा था। नीतीश की सरकार द्वारा 2023 में कराई जाति जनगणना के अनुसार ईबीसी बिहार की आबादी का लगभग 36 प्रतिशत हैं।

वे तब से नीतीश के लिए एक मजबूत वोट बैंक रहे हैं, जब से उन्होंने 113 अति पिछड़ा जातियों की एक विशेष श्रेणी बनाने के लिए मंडल-ओबीसी ब्लॉक को तोड़ा। इसके बाद नीतीश ने टारगेटेड कल्याणकारी योजनाओं और सामाजिक लाभों को सफलतापूर्वक इस वर्ग तक पहुंचाया।

बिहार की राजनीति 2006 से ही नीतीश कुमार द्वारा तैयार किए गए खांचे में जड़ी हुई है। लेकिन अब राजनीतिक शतरंज की बिसात पर मोहरे तेजी से घूम रहे हैं और अक्टूबर-नवंबर में होने वाले चुनावों में इस परिदृश्य में खासा बदलाव देखने को मिल सकता है। यह तो जगजाहिर है कि नीतीश का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ रहा है।

गिरावट इतनी तेज है कि भाजपा ने न केवल उन्हें चुनावों में एनडीए के सीएम चेहरे के रूप में पेश करने के बारे में बात करना बंद कर दिया है, बल्कि वह खुले तौर पर उनके जनाधार पर भी कब्जा करने की कोशिश कर रही है।

बिहार में हाल ही में हुए कैबिनेट फेरबदल से भाजपा के इरादे साफ हुए। सात नए मंत्री शामिल किए गए। नीतीश कुमार ने भी भाजपा को अपनी स्थिति को जूनियर पार्टनर से बदलकर प्रमुख साझेदार बनाने की कोशिश का कोई प्रतिरोध नहीं किया है।

खास बात यह है कि नए कैबिनेट सदस्यों में से चार नीतीश कुमार के मुख्य वोटबैंक का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। उनमें से दो ईबीसी समूहों से हैं और दो नीतीश कुमार के अपने कुर्मी-कोइरी समुदाय से हैं। भाजपा अकेली पार्टी नहीं है, जो नीतीश कुमार के वोटबैंक पर नजरें गड़ाए हुए है।

कांग्रेस भी इसमें घुसपैठ कर रही है और ईबीसी, गैर-पासवान दलितों और मुसलमानों का सामाजिक गठबंधन बना रही है। राहुल गांधी इन समुदायों के साथ रैलियों और बैठकों के लिए पहले ही बिहार की तीन यात्राएं कर चुके हैं। कांग्रेस ने हाल ही में नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम को नियुक्त किया है, जो रविदास समाज से हैं।

यह कांग्रेस और राजद द्वारा 2015 के विजयी सामाजिक-गठबंधन को फिर से बनाने के लिए तैयार की गई संयुक्त रणनीति का हिस्सा लगता है। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव ने भाजपा के खिलाफ एक ताकतवर गठजोड़ बनाकर मंडल-ताकतों को फिर से लामबंद कर दिया था।

बिहार के जटिल जातिगत-गणित में विभिन्न सामाजिक समूह स्पष्ट रूप से परिभाषित ब्लॉकों में ध्रुवीकृत हैं। यही कारण है कि भाजपा के पास उच्च जातियों का निष्ठावान मतदाता-आधार है, नीतीश कुमार को ईबीसी वर्ग का समर्थन प्राप्त है और राजद के पास मुसलमानों और यादवों का गठजोड़ (एम-वाय) है।

कांग्रेस कभी बिहार में बड़ी ताकत हुआ करती थी, लेकिन मंडल राजनीति द्वारा पारंपरिक पैटर्न को उलटने के बाद से वह इस राज्य में पिछड़ गई है। अब वह नीतीश के बाद खाली हो रहे स्थान को भरने की उम्मीद में खुद को फिर से प्रासंगिक बनाने की बेताबी से कोशिश कर रही है। नीतीश के वोटबैंक पर प्रशांत किशोर की जन सुराज भी दावा कर रही है। पीके पिछले दो सालों से बिहार के कोने-कोने का दौरा कर रहे हैं, ताकि ईबीसी समूहों के बीच पैठ बना सकें।

प्रशांत किशोर की रणनीति दोहरी है : घर-घर जाकर लोगों से मिलना और नीतीश कुमार की क्षमताओं के क्षीण होने से बिहार में आई सुशासन की कमी की कड़ी आलोचना करना। प्रशांत किशोर ने नीतीश की शारीरिक और मानसिक सेहत के बारे में अपनी बात इधर लगातार बेबाकी से रखी है।

मंच सज चुका है और पांसे पलट रहे हैं। बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों में ईबीसी वोटों की होड़ सबसे ज्यादा हावी रहेगी और कुर्सी के दावेदार अपनी ऊर्जा को नीतीश के मुख्य वोटबैंक में सेंध लगाने पर केंद्रित करेंगे। नतीजे ही बताएंगे कि इसमें किस पार्टी को सबसे ज्यादा सफलता मिलती है। या कौन जाने, नीतीश एक और आखिरी चाल चल बैठें?

बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों में ईबीसी वोटों की होड़ सबसे ज्यादा हावी रहने वाली है। कुर्सी के दावेदार अपनी ऊर्जा को नीतीश के इस मुख्य वोटबैंक में सेंध लगाने पर केंद्रित कर रहे हैं। कांग्रेस, भाजपा, जन-सुराज मैदान में हैं। (ये लेखिका के अपने विचार हैं।)

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