आधी आबादी को पूरी मुबारकबाद: मान दें, कमान दें, इनाम दें

126
आधी आबादी को पूरी मुबारकबाद: मान दें, कमान दें, इनाम दें

आधी आबादी को पूरी मुबारकबाद: मान दें, कमान दें, इनाम दें


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस यानी महिलाओं को सम्मान देने का दिन। खास मौके पर आधी आबादी को स्पेशल फीलिंग करवानेे का दिन। मां, बहन, दोस्त, सहयोगी के कार्यों को मान्यता देने, जज्बे को सलाम करने का दिन। उनकी उपलब्धियों को याद करने का दिन, उन्हें नई ऊंचाइयां देने का दिन। 113 साल पहले इस खास मौके की शुरुआत हुई थी। पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस न्यूयॉर्क में राजनीतिक कार्यक्रम के रूप में 28 फरवरी 1909 को मनाया गया था। इसके बाद तत्कालीन सोवियत संघ ने इस दिन को राष्ट्रीय अवकाश घोषित कर दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 8 मार्च 1975 को महिला दिवस मनाने की शुरुआत की। उस दिन से लेकर आज तक कई देश अपने यहां अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं। पहले कुछ लोग पर्पल रिबन पहनकर इस खास दिन को सेलिब्रेट करते थे।

ताकि खत्म हो सके भेदभाव

सवाल यह उठता है कि यह दिन मनाया क्यों जाता है तो इसका जवाब भी दिलचस्प है। विश्व में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव खत्म करने के लिए इस दिन को आयोजित किया जाता है। साथ ही इस मौके को इसलिए भी सेलिब्रेट किया जाता है ताकि महिलाओं के विकास पर ध्यान दिया जा सके। उनकी उपलब्धियों पर भी गौर किया जा सके। आधी आबादी के सम्मान में इस दिन को मनाने के पीछे का उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देना भी है। सीधे सरल शब्दों में कहें तो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस महिला अधिकार आंदोलन का एक आकर्षण भी है जो लैंगिक समानता, प्रजनन अधिकार और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और दुव्र्यवहार जैसे मुद्दों की ओर ध्यान खींचता है। इसके अलावा महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार दर्शाते हुए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों को उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।

ये तो किताबों में लिखा है

ये तो वो अच्छी बातें हैं जो किताबों में लिखी गई हंै, जिनकी परिकल्पना बरसों से की जा रही हैं। महिलाओं के संबंध में ऐसा होना चाहिए, ऐसा किया जाना चाहिए लेकिन हालात इसके उलट हैं। बात यदि राजधानी जयपुर की ही करें तो महिलाओं की तस्वीर स्याह ही नजर आएगी। आए दिन उनके खिलाफ शारीरिक-मानसिक अपराध हो रहे हैं। रेप, यौन शोषण, अपहरण, प्रताडऩा जैसे अपराधों में दिनोंदिन बढ़ोतरी होती जा रही है। सरकार और पुलिस की लाख कोशिश के बावजूद बच्चियों से लेकर महिलाओं तक के खिलाफ यौन अपराध कम नहीं हो रहे।

फिर भी बंदिशों का दंश

बातें समानता की होती हैं लेकिन घर से लेकर कार्य स्थल तक उनसे भेदभाव होता है। वास्तविकता यह है कि शिक्षा का अधिकार हो या जीवन साथी तय करने का सभी में उनकी सुनवाई नहीं होती। परिजन ही तय करते हैं कि उनके लिए क्या ठीक रहेगा। इससे कहीं बढ़कर महिलाओं को खाने-पहनने, चलने-फिरने तक की बंदिशों के दंश से आज भी दो-चार होना पड़ रहा है।

भावनाओं की कद्र करें

बेहतर होगा जिस उद्देश्य के लिए यह दिवस मनाया जा रहा है उसकी सार्थकता को समझें और फिर उसकी अहमियत को जीवन में उतारें। महिलाओं को दिल से सम्मान दें, भावनाओं की कद्र करें और उनके फैसलों को स्वीकार करें। साथ ही उनको आगे बढऩे के अवसर प्रदान करें।

राजस्थान की और समाचार देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Rajasthan News