आज का एक्सप्लेनर: 191 साल पहले मजदूर बनकर मॉरीशस गए 36 बिहारी, कैसे बसा दिया पूरा देश; PM मोदी के दौरे के क्या मायने

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आज का एक्सप्लेनर:  191 साल पहले मजदूर बनकर मॉरीशस गए 36 बिहारी, कैसे बसा दिया पूरा देश; PM मोदी के दौरे के क्या मायने

आज का एक्सप्लेनर: 191 साल पहले मजदूर बनकर मॉरीशस गए 36 बिहारी, कैसे बसा दिया पूरा देश; PM मोदी के दौरे के क्या मायने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 दिन के राजकीय दौरे पर मॉरीशस पहुंचे हैं। वे आज यानी 12 मार्च को मॉरीशस के 57वें राष्ट्रीय दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे। इससे पहले 11 मार्च को जब PM मोदी मॉरीशस पहुंचे तो उनके स्वागत में मॉरीशस की महिलाओं ने

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बिहारी गीत गाना सिर्फ इत्तफाक नहीं, बल्कि मॉरीशस की परम्परा है, क्योंकि 191 साल पहले भारत के 36 गिरमिटिया मजदूरों ने ही मॉरीशस को बसाया था।

आखिर गिरमिटिया मजदूरों को मॉरीशस क्यों लाया गया, कैसे 36 भारतीयों ने नया देश बसाया और भारत के लिए मॉरीशस कितना जरूरी है; ऐसे 7 जरूरी सवालों के जवाब आज के एक्सप्लेनर में…

सवाल-1: मॉरीशस कहां है और क्या यहां 70% भारतीय मूल के लोग रहते हैं? जवाब: मॉरीशस हिंद महासागर में स्थित एक द्वीप देश है, जो अफ्रीका के नजदीक बसा है। यहां की कुल आबादी 12 लाख से ज्यादा है, जिसमें 70% भारतीय मूल के हैं। रिसर्च ऑर्गनाइजेशन बीटीआई की 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, मॉरीशस की कुल आबादी में करीब 52% हिंदू हैं। इसके अलावा 30.7% ईसाई, 16.1% मुस्लिम और 2.9% चीन के लोग हैं। यह देश अफ्रीका में सबसे ज्यादा प्रति व्यक्ति आय वाले देशों में से एक है।

मॉरीशस की मुख्य भाषा मॉरीशन क्रिओल है। साथ ही भारतीय भाषाओं और रीति-रिवाजों का चलन आम है। यहां पर भोजपुरी भी बोली जाती है। मॉरीशस के पहले प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम बिहार के भोजपुर जिले के थे।

सवाल-2: 191 साल पहले 36 बिहारी लोगों को मॉरीशस क्यों ले जाया गया था? जवाब: 18वीं सदी की बात है। भारत में अकाल और भुखमरी बढ़ने लगी थी, जिसके चलते करीब 3 करोड़ लोगों की मौत हो गई। उस वक्त तक देश में ब्रिटिशर्स ने पकड़ मजबूत कर ली थी। ब्रिटिश हुकूमत ने इस मौके का फायदा उठाते हुए एक रास्ता निकाला, जिसे ‘द ग्रेट एक्सपेरिमेंट’ नाम दिया। इसके तहत बंधुआ मजदूरों को कर्ज के बदले काम करने का लालच दिया गया।

उदाहरण से समझिए- अगर किसी मजदूर के ऊपर कर्ज है और वो कर्ज नहीं चुका पा रहा, तो वो अंग्रेजों के पास गुलामी करेगा। इसके लिए समय-सीमा तय की जाएगी। इस दौरान मजदूर को अपनी गुलामी के बदले कर्ज से छुटकारा मिल जाएगा।

इसके अलावा उन दिनों अंग्रेजों को चाय और कॉफी का चस्का लग गया था, जिसमें शक्कर भी इस्तेमाल होती थी। उस वक्त शक्कर का उत्पादन कैरिबियन आइलैंड्स यानी मॉरीशस और आसपास के द्वीप में होता था। ऐसे में ब्रिटिशर्स ने कैरिबियन द्वीपों पर गन्ने की खेती बढ़ा दी, जिसके लिए भारतीय मजदूरों को मॉरीशस लाया जाने लगा।

10 सितंबर 1834 को कोलकाता से एटलस नाम के जहाज से 36 मजदूरों को मॉरीशस के लिए रवाना किया गया। यह सभी मजदूर बिहार के रहने वाले थे और कोलकाता में काम करते थे। 53 दिन के सफर के बाद 2 नवंबर 1834 को जहाज मॉरीशस पहुंचा।

मॉरीशस में बिहारी मजदूर।

सवाल-3: आखिर मॉरीशस में इतनी बड़ी भारतीय आबादी कैसे बस गई? जवाब: शुरुआत में ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीय मजदूरों को 5 साल नौकरी देने का वादा कर मॉरीशस भेजा। पुरुषों के लिए 5 रुपए महीना और महिलाओं के लिए 4 रुपए महीना तनख्वाह तय की। इसके लिए पहले उनसे एक एग्रीमेंट साइन कराया जाता, जिसे ‘भारतीय गिरमिट’ कहा गया। साइन करने वाले मजदूर गिरमिटिया कहलाए। इस एग्रीमेंट को ब्रिटिश अधिकारी जॉर्ज चार्ल्स ने बनाया था।

2 नवंबर 1834 को पहले जहाज में 36 गिरमिटिया मजदूर पहुंचने के बाद साल-दर-साल ये सिलसिला जारी रहा। 1834 से 1910 के बीच 4.5 लाख से ज्यादा मजदूरों को भारत से मॉरीशस भेजा गया। भारतीय मजदूर मॉरीशस पहुंचते और वहीं बस जाते। उनकी अगली पीढ़ियों ने भी मॉरीशस को अपना देश माना।

जिस घाट पर पहली बार भारतीय मजदूर उतरे, उसे आज ‘अप्रवासी घाट’ बोला जाता है। इसकी याद में हर साल 2 नवंबर को मॉरीशस में ‘अप्रवासी दिवस’ भी मनाया जाता है।

मॉरीशस में अप्रवासी घाट।

सवाल-4: क्या गिरमिटिया मजदूरों के पास भारत वापस आने का रास्ता नहीं था? जवाब: ‘गिरमिटिया एग्रीमेंट’ के तहत भारतीय मजदूर 5 साल काम करके वापस भारत आ सकते थे, लेकिन ब्रिटिशर्स उन्हें वापस आने नहीं देते थे। मॉरीशस से भारत वापस आने का एक ही रास्ता था- समुद्री जहाज। लेकिन इन पर अंग्रेजों का कब्जा रहता था। मजदूरों को मॉरीशस में अमानवीय स्थिति में रखा जाता था। न उन्हें हर महीने मजदूरी मिलती थी और न समय पर खाना।

1860 में एग्रीमेंट में घर वापसी की बात को ही हटा दिया गया। इसके बाद दुनिया के अन्य देशों में शक्कर का उत्पादन बढ़ने लगा, तो 1878 में लेबर लॉ पास किया गया, जिसके बाद मजदूरों को समय पर तनख्वाह मिलने लगी। 19वीं सदी की शुरुआत में शक्कर का उत्पादन लगभग सभी देशों में होने लगा था। इस दौरान औद्योगिक क्रांति भी आ गई थी और लोग अपने हक के लिए लड़ने लगे थे।

नतीजतन 1917 में मॉरीशस में आंदोलनों की वजह से गिरमिटिया मजदूरों को भारत वापस भेजने का फैसला लिया गया, लेकिन तब तक भारतीय मजदूरों की 3-4 पीढ़ियां मॉरीशस में जन्म ले चुकी थीं। यह लोग मॉरीशस को ही अपना देश मानने लगे थे। इसलिए ज्यादातर मजदूर यहीं रुक गए। 1931 में मॉरीशस की 68% आबादी भारतीय थी।

मॉरीशस के घाट पर गिरमिटिया मजदूर।

सवाल-5: कैसे गिरमिटिया मजदूरों ने नया देश बसाया और रामगुलाम मॉरीशस के राष्ट्रपिता बने? जवाब: 18वीं सदी में भारत से मॉरीशस आए गिरमिटिया मजदूरों में रामगुलाम परिवार भी शामिल था, जिन्होंने मॉरीशस को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलाई। 1896 में 18 साल के मोहित रामगुलाम बिहार से मॉरीशस आए थे। वह उन हजारों भारतीय मजदूरों में से एक थे, जिन्हें गन्ने के खेतों में काम करने के लिए लाया गया था। मोहित ने शुरुआत में मजदूरी की, लेकिन बाद में एक चीनी मिल में नौकरी करने लगे। उन्होंने भारतीय परंपरा खासकर भोजपुरी भाषा और हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया, जिससे भारतीय समुदाय एकजुट होते गए।

1935 में मोहित के बेटे शिवसागर रामगुलाम इंग्लैंड से पढ़ाई कर मॉरीशस लौटे। इंग्लैंड में शिवसागर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े नेताओं से प्रभावित हुए। इसके चलते उन्होंने मॉरीशस में मजदूरों के अधिकारों और वोटिंग के अधिकार के लिए संघर्ष करना शुरू किया। उन्होंने लेबर पार्टी बनाने में अहम भूमिका निभाई और देश की आजादी के लिए संघर्ष किया।

1968 में मॉरीशस आजाद हुआ। शिवसागर मॉरीशस के राष्ट्रपिता और पहले प्रधानमंत्री बने। उन्होंने मुफ्त शिक्षा शुरू की और कई सामाजिक सुधार किए। 1982 में उनकी पार्टी चुनाव हार गई, लेकिन रामगुलाम परिवार का प्रभाव खत्म नहीं हुआ। शिवसागर के बेटे नवीनचंद्र रामगुलाम ने राजनीति में कदम रखा और 1995 से 2014 तक दो बार मॉरीशस के प्रधानमंत्री बने। 2024 में उन्होंने तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में पद संभाला।

शिवसागर रामगुलाल मॉरीशस के राष्ट्रपिता और पहले प्रधानमंत्री बने।

सवाल-6: तो क्या आज भी भारत के लिए मॉरीशस अहम है? जवाब: भारत के लिए मॉरीशस बेहद खास है, इसे 5 पाइंट्स से समझते हैं…

1. दोनों देशों के बीच व्यापार में बढ़ोतरी 2005 में दोनों देशों के बीच व्यापार 206 मिलियन डॉलर यानी 1792 करोड़ रुपए था, जो 2023-24 में बढ़कर 851 मिलियन डॉलर यानी 7403 करोड़ रुपए हो गया। इसके अलावा मॉरीशस भारत में इन्वेस्टमेंट का एक बड़ा जरिया रहा है। 2000 से अब तक मॉरीशस ने भारत में 175 अरब डॉलर यानी 1.4 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया है।

2. इंटरनेशनल फोरम पर एक-दूसरे के समर्थक मॉरीशस की आजादी के बावजूद चागोस द्वीप पर ब्रिटेन ने कब्जा बरकरार रखा था। इस विवाद में भारत ने हमेशा मॉरीशस को सपोर्ट किया। वहीं मॉरीशस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी UNSC में स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी का हमेशा समर्थन किया है।

3. हिंद महासागर पर दोनों देश एकमत भारत को घेरने और हिंद महासागर में दबदबा बढ़ाने के लिए चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर, श्रीलंका के हंबनटोटा से लेकर अफ्रीकी देशों में कई पोर्ट प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाया है। इसके जवाब में भारत ने हिंद महासागर में मौजूदगी बढ़ाने के लिए 2015 में सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन यानी ‘सागर प्रोजेक्ट’ शुरू किया था। इसके तहत भारत ने मॉरीशस के उत्तरी अगालेगा द्वीप पर मिलिट्री बेस तैयार किया है। यहां से भारत-मॉरीशस मिलकर पश्चिमी हिंद महासागर में चीन के सैन्य जहाजों और पनडुब्बियों पर नजर रख सकते हैं।

4. समुद्री निगरानी और खुफिया साझेदारी भारत ने मॉरीशस में कोस्टल रडार सिस्टम और जॉइंट मॉनिटरिंग सिस्टम लगाया है। वहीं मॉरीशस ने गुरुग्राम में मौजूद इन्फॉर्मेशन फ्यूजन सेंटर (IFC) जॉइन किया है, जहां हिंद महासागर की सुरक्षा से जुड़ी जानकारी साझा की जाती है और समुद्र में होने वाली हरकतों पर नजर रखी जाती है।

5. मॉरीशस के भारतवंशियों को भारत में रहने की छूट ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ इंडिया यानी OCI के तहत भारत ने मॉरीशस के भारतवंशियों को काफी सुविधाएं दी हैं। इसके जरिए मॉरीशस के भारतवंशियों की 7 पीढ़ियों को भारत में स्थायी रूप से रहने और काम करने की इजाजत मिलती है। इसका मकसद दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध को बेहतर करना है।

सवाल-7: PM मोदी के मॉरीशस दौरे के क्या मायने हैं? जवाब: JNU के प्रोफेसर और विदेश मामलों के जानकार राजन कुमार कहते हैं,

बजट सत्र के दौरान PM मोदी का मॉरीशस जाना इस बात का सबूत है कि यह देश भारत के लिए बेहद जरूरी है। अगर भारत मॉरीशस पर अपनी पकड़ ढीली कर देगा तो चीन इस पर कब्जा कर लेगा। भारत ऐसा नहीं होने देना चाहता क्योंकि मॉरीशस से भारत हिंद महासागर पर अपनी पकड़ बनाए हुए है। यहां भारत का मिलिट्री बेस भी है।

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रिसर्च सहयोग- अंकुल कमार

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