आज का एक्सप्लेनर: होली पर लगी आग से कैसे खुला बेहिसाब कैश का राज, हाईकोर्ट जस्टिस का ‘तबादला’, क्या सजा नहीं मिलेगी? h3>
दिल्ली हाईकोर्ट जस्टिस के घर होली की शाम लगी एक छोटी सी आग ने अचानक ऐसे बड़े राज से पर्दा उठा दिया, जिसने सुप्रीम कोर्ट से संसद तक और सड़क से सोशल मीडिया तक सनसनी फैला दी है।
.
कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा, उनके बंगले पर कैसे मिले बेहिसाब नोट और जजों की जांच और सजा का प्रोसेस क्या होता है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…
सवाल-1: दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस वर्मा के बंगले में एक्सिडेंटली कैसे मिला बेहिसाब कैश? जवाब: 14 मार्च यानी होली की रात करीब साढ़े 11 बजे… दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी बंगले में आग लग गई। जस्टिस वर्मा घर पर नहीं थे तो उनके परिवार ने फायर ब्रिगेड और पुलिस को सूचना दी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बंगले के स्टोर रूम में आग लगी थी। यह एक छोटी आग थी। दो फायर ब्रिगेड ने मौके पर पहुंचकर आग बुझाने का काम शुरू किया और पुलिस भी आ पहुंची। इसी दौरान एक कमरे में कैश का ढेर मिला। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इस मामले में प्रस्ताव पारित किया है जिसमें इस रकम को 15 करोड़ बताया जा रहा है।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, ‘तुगलक रोड पुलिस स्टेशन के रजिस्टर में मामले की एंट्री की गई, लेकिन कहीं भी कैश मिलने का जिक्र नहीं किया गया।
दिल्ली फायर ब्रिगेड चीफ अतुल गर्ग का कहना है कि जस्टिस यशवंत वर्मा के घर आग बुझाने के दौरान फायर ब्रिगेड की टीम को कोई नकदी नहीं मिली। गर्ग के मुताबिक 14 मार्च की रात 11.35 बजे लुटियंस दिल्ली में बने जज के बंगले पर आग लगने की खबर मिली। टीम जब वहां पहुंची तो आग स्टोर रूम में लगी थी, जिसे बुझाने में 15 मिनट लगे। इसके तुरंत बाद हमने पुलिस को खबर दी।
सवाल-2: जस्टिस वर्मा के घर कैश मिलने की बात कैसे फैली? जवाब: मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जस्टिस यशवंत वर्मा के घर जैसे ही जलते हुए नोट दिखे तो इसकी सूचना पुलिस के आला अधिकारियों को दी गई। अधिकारियों के जरिए ये सूचना सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस यशवंत उपाध्याय के कार्यालय तक पहुंची। किसी ने इस घटना के वीडियो और फोटो भी बनाए थे, जो CJI को भेजे गए।
सूचना मिलने पर, दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने इन-हाउस जांच प्रक्रिया शुरू की, जिसमें सबूत और जानकारी इकट्ठा की जा रही है। इस बीच कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये खबर लीक हो गई और पूरे देश में फैल गई।
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने शुक्रवार को इस मुद्दे को सदन में उठाते हुए कहा,
आज सुबह हमने एक चौंकाने वाली खबर पढ़ी, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज के घर से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने की बात सामने आई है। उन्होंने चेयरमैन से अनुरोध किया कि न्यायिक जवाबदेही बढ़ाने के लिए सरकार को दिशा-निर्देश दिए जाएं।
राज्यसभा के चेयरमैन और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी है और वह इस मुद्दे पर एक स्ट्रक्चर्ड डिस्कशन करवाएंगे।
इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने 21 मार्च को अपनी जांच रिपोर्ट भारत के मुख्य न्यायाधीश को सौंपी है। रिपोर्ट की जांच के बाद आवश्यक कार्रवाई के लिए आगे की प्रक्रिया की जाएगी।
सवाल-3: सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम क्या है, जिसने जस्टिस वर्मा का तबादला करने का फैसला किया? जवाब: 20 मार्च को CJI संजीव खन्ना ने 5 सदस्यीय कॉलेजियम बैठक बुलाई। इसमें CJI समेत सभी 4 जजों ने इस मामले पर अपनी राय दी। कॉलेजियम ने जस्टिस यशवंत वर्मा को वापस इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने का प्रस्ताव बनाया।
दिल्ली और इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और जस्टिस वर्मा को पत्र लिखकर जवाब मांगे गए हैं, इसके बाद कॉलेजियम उनके ट्रांसफर का प्रस्ताव पारित करेगा।
21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस रिलीज जारी कर साफ किया है कि कॉलेजियम में जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर का प्रस्ताव और उनके बंगले से मिले कैश मामले में इन हाउस जांच प्रोसीजर अलग-अलग बातें हैं। इनका एक दूसरे से संबंध नहीं है।
कॉलेजियम सिस्टम वह तरीका है, जिसके जरिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति या ट्रांसफर होता है। यह सिस्टम संविधान या संसद के बनाए गए किसी कानून से नहीं आया है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के 3 बड़े फैसलों के जरिए धीरे-धीरे विकसित हुआ। सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की 3 बड़ी जिम्मेदारियां…
- नियुक्ति: सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति की सिफारिश करना।
- तबादला: हाईकोर्ट के जजों का एक राज्य से दूसरे राज्य में तबादला करना।
- प्रमोशन: हाईकोर्ट के जजों को सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन के लिए सिफारिश करना।
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक, ‘कॉलेजियम के बारे में संवैधानिक प्रावधान नहीं हैं और यह व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक फैसले से बनी है। कॉलेजियम की अनुशंसा से ही जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर हो सकता है और इनहाउस कमेटी मामले की जांच कर सकती है।’
सवाल-4: जस्टिस वर्मा के घर मिले कैश की जांच कौन करेगा? जवाब: सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट आशीष पांडे का कहना है, ‘कॉलेजियम का मुख्य काम जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर करना है। यह कोई डिसिप्लिनरी या जांच निकाय नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की एक आंतरिक जांच कमेटी (इन-हाउस प्रोसीजर) है।’
इन-हाउस प्रोसीजर में 4 पॉइंट्स पर काम होता है…
- अगर किसी हाईकोर्ट जज के खिलाफ शिकायत आती है तो उसे हाईकोर्ट के ही चीफ जस्टिस देखते हैं। छोटी-मोटी शिकायतों को रद्द कर दिया जाता है और इसकी जानकारी CJI को दी जाती है।
- अगर शिकायत सीधे CJI को मिलती है तो वह हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और जज से राय लेते हैं। मामला संगीन होने पर जांच के लिए 3 लोगों की कमेटी बनती है।
- हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पर आरोप लगने पर CJI उनसे जवाब मांगते हैं। जरूरत पड़ने पर तीन सदस्यों की कमेटी बनती है।
- सुप्रीम कोर्ट के जज पर आरोप होने कमेटी में तीन सुप्रीम कोर्ट जज होते हैं। CJI के खिलाफ शिकायत के लिए इस प्रक्रिया में कोई अलग नियम नहीं है।
सवाल-5: क्या दोषी पाए जाने पर जज को भी सजा मिलती है? जवाब: सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता का कहना है, ‘संविधान के अनुच्छेद-124 (4) में सुप्रीम कोर्ट के जजों और 217 (1) (बी) में हाईकोर्ट के जज को महाभियोग की प्रकिया से हटाने का प्रावधान है। आईपीसी की धारा-77 और नये BNS कानून की धारा-15 के अनुसार हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जजों की आधिकारिक कामों के मामले में आपराधिक मामला दर्ज नहीं हो सकता।’
आशीष पांडे कहते हैं, ‘दोषी पाए जाने पर किसी भी जज को सजा मिल सकती है। लेकिन यह जेल भेजे जाने या जुर्माना लगाने जैसी सजा नहीं होती या फिर ऐसा भी कह सकते हैं कि आम आदमी को दी जाने वाली सजा नहीं होती। भारत के कानून में बेसिक स्ट्रक्चर में सेपरेशन ऑफ पावर एक एसेंशियल इंग्रीडिएंट है। इस वजह से जज को सजा देने के दो ही तरीके हैं- इस्तीफा या महाभियोग।’
सवाल-6: अगर हाईकोर्ट का कोई जज भ्रष्टाचार करते पाया गया, तो उन्हें पद से कैसे हटाया जा सकता है? जवाबः भारत में किसी भी सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जस्टिस को हटाने की एक तय प्रक्रिया है। 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ गाइडलाइंस तय की थीं, जिनके मुताबिक…
- सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संबंधित जज से जवाब मांगते हैं।
- जवाब संतोषजनक नहीं होने पर एक इंटरनल जांच कमेटी बनाई जाती है, जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट जज और दो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस होते हैं।
- अगर जांच में जज दोषी पाए जाते हैं, तो CJI उन्हें इस्तीफा देने के लिए कह सकते हैं।
- अगर जज इस्तीफा देने से इनकार करते हैं, तो CJI सरकार को उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश कर सकते हैं।
- भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को इसकी सूचना दी जाती है, जिससे संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो सके।
भारत का संविधान लागू होने के बाद महाभियोग के जरिए किसी जज को नहीं हटाया जा सका है, हालांकि इसकी कोशिश कई बार हो चुकी है…
- 2018 में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के 64 सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव पेश किया। जस्टिस मिश्रा पर दुर्व्यवहार के आरोप लगे थे। लेकिन तत्कालीन राज्यसभा सभापति एम. वैंकेया नायडु ने उसे खारिज कर दिया।
- 2015 में राज्यसभा के 58 सांसदों ने गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस जे. बी. पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया। जस्टिस पारदीवाला पर अनुसूचित जाति और जनजाति के खिलाफ गलत शब्दों का इस्तेमाल करने के आरोप लगे। उस समय उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को यह प्रस्ताव भेजा गया। इसके बाद जस्टिस पारदीवाला ने अपने फैसले से उन शब्दों को हटा दिया।
- 2011 में भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग के आरोप में सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पी. डी. दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग लाया गया। लेकिन उन्होंने संसद में सुनवाई से पहले ही इस्तीफा दे दिया। जस्टिस दिनाकरन पर जमीन पर कब्जा करने और आय से अधिक संपत्ति रखने के आरोप थे। जस्टिस दिनाकरन पर राज्यसभा के 75 सांसदों ने महाभियोग चलाने की मांग की थी।
सवाल-7: इस मामले में जस्टिस वर्मा के साथ आगे क्या हो सकता है? जवाब: इस मामले के खुलासे के बाद जस्टिस वर्मा खुद ही छुट्टी पर चले गए हैं। विराग गुप्ता कहते हैं,
सिटिंग जज के मामलों में हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में PIL या न्यायिक सुनवाई सम्भव नहीं है। जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट से ट्रांसफर होकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में ज्वाइन कर सकते हैं।
इधर, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा के वापस आने पर इलाहाबाद ट्रांसफर का विरोध किया। एसोसिएशन ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट कोई कूड़ादान नहीं है, जहां भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को न्याय करने के लिए भेज दिया जाए।
विराग गुप्ता कहते हैं, ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा को न्यायिक कार्य से अलग रखने की मांग की है। संविधान लागू होने के 75 साल बाद तक अभी किसी भी जज को महाभियोग की प्रक्रिया से हटाया नहीं जा सका है। इसलिए आंतरिक जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर दोषी पाए जाने पर कॉलेजियम जस्टिस वर्मा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकता है। विवाद बढ़ने या फिर नए सबूत आने की स्थिति में जस्टिस वर्मा स्वयं ही इस्तीफा देने का निर्णय ले सकते हैं।’
————–
रिसर्च सहयोग- अंकुल कुमार
————–
हाईकोर्ट से जुड़ी अन्य खबर पढ़ें
आज का एक्सप्लेनर: बच्ची का प्राइवेट पार्ट पकड़ना, सलवार का नाड़ा तोड़ना बलात्कार की कोशिश नहीं है; इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का क्या असर होगा
किसी लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश से रेप या ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का मामला नहीं बनता। सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये फैसला सुनाते हुए दो आरोपियों पर लगी धाराएं बदल दीं। पूरी खबर पढ़ें…