आज का एक्सप्लेनर: ‘इंसानों की पहली मां’ लूसी की कहानी, 32 लाख साल पहले बच्चे पैदा किए, मगरमच्छ के हमले से मौत

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आज का एक्सप्लेनर:  ‘इंसानों की पहली मां’ लूसी की कहानी, 32 लाख साल पहले बच्चे पैदा किए, मगरमच्छ के हमले से मौत

आज का एक्सप्लेनर: ‘इंसानों की पहली मां’ लूसी की कहानी, 32 लाख साल पहले बच्चे पैदा किए, मगरमच्छ के हमले से मौत

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10 घंटे पहलेलेखक: शिवेंद्र गौरव

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समयः 32 लाख साल पहले जगहः अफ्रीकी देश इथियोपिया

29 साल की एक महिला खाने की तलाश में परिवार से दूर टहल रही थी। साथ में एक बच्चा भी था। प्यास लगी तो पानी पीने के लिए झील किनारे पहुंची। अचानक एक मगरमच्छ ने उसे अपना शिकार बना लिया। ‘लूसी’ नाम की इस महिला को इंसानों की पहली ज्ञात मां कहा जाता है।

ह्यूस्टन म्यूजियम में लगी लूसी की तस्वीर। 32 लाख साल पुरानी महिला अपने बच्चे और समूह के साथ दिख रही है।

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। आज के एक्सप्लेनर में जानेंगे लूसी की खोज कैसे हुई, उसकी जिंदगी कैसी थी और कैसे पता चला कि लूसी ही इंसानों की पहली मां है…

सवाल-1: बंदरों से इंसान बनने की थ्योरी क्या है?

जवाबः जियोलॉजिस्ट चार्ल्स डार्विन ने 24 नवंबर 1859 को ‘थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन’ में बताया कि इंसानों के पूर्वज बंदर थे। डार्विन ने समझाया कि ओरैंगुटैन (बंदरों की एक प्रजाति) का एक बेटा पेड़ पर, तो दूसरा जमीन पर रहने लगा।

जमीन पर रहने वाले बेटे ने खुद को जिंदा रखने के लिए नई कलाएं सीखीं। उसने खड़ा होना, दो पैरों पर चलना, दो हाथों का उपयोग करना सीखा। धीरे-धीरे जरूरतों के अनुसार उनमें बदलाव आने शुरू हो गए, जो उनकी आगे की पीढ़ी में दिखने लगे। ये बदलाव एक-दो सालों में नहीं आए, बल्कि इसमें करोड़ों साल लग गए।

बंदर से इंसान बनने के क्रम में दो जरूरी चीजें हुईं- इंसानों का दिमाग बंदरों से बड़ा हो गया और इंसान चार पैरों की बजाय दो पैरों पर चलने लगा। हालांकि, इन दोनों में से पहले क्या हुआ, ये नहीं पता था।

साल 1924 में साउथ अफ्रीका की खदान में 25 लाख साल पुरानी एक खोपड़ी मिली, जो बंदर की तरह छोटी थी। ऑस्ट्रेलियाई मानवविज्ञानी रेमंड डार्ट ने कहा कि ये इंसान के बच्चे की खोपड़ी है और इसके रीढ़ की हड्डी से जुड़ने के कोण से लगता है कि ये दो पैरों पर चलने वाला इंसान था।

इसे तब तक का खोजा गया सबसे पुराना इंसान माना गया और इस प्रजाति को नाम दिया गया- ‘ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफ्रिकैनस’। नाम के पीछे की वजह थी- रेमंड का ऑस्ट्रेलियाई होना और खोपड़ी का अफ्रीका में मिलना। हालांकि, ये पूरी तरह सही जवाब नहीं था। असली जवाब 1974 में मिला।

सवाल-2: इंसानों की पहली मां लूसी की खोज कैसे हुई?

जवाबः 1970 में फ्रांस के पैलियोएंथ्रोपोलॉजिस्ट यानी जीवाश्मविज्ञानी मॉरिस तैयब ने इथियोपिया के ‘अफार ट्रायंगल’ नाम की जगह पर एक साइट खोजी। इसे ‘हदार फॉर्मेशन’ नाम दिया और यहां जीवाश्मों की खोज शुरू की। अमेरिका के जीवाश्मविज्ञानी डोनाल्ड जोहान्सन समेत 11 लोगों की टीम इस काम में जुटी थी। नवंबर 1973 में जोहान्सन और उनके एक स्टूडेंट टॉम ग्रे को एक इंसानी घुटने से नीचे के हिस्से का टुकड़ा मिला।

इथियोपिया में हादर का इलाका जहां लूसी का कंकाल मिला (फोटो सोर्स- एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी)

एक साल बाद 24 नवंबर 1974 की सुबह जोहान्सन सर्वे का नया नक्शा बनाने के लिए अपनी लैंडरोवर कार से निकले। दिन भर के थके जोहान्सन ने दूरी खड़ी कार तक जाने के लिए पास की एक खाई का रास्ता चुना। कुछ ही दूर उन्हें डेढ़ इंच का दाईं कोहनी की हड्डी का टुकड़ा मिला।

प्रोफेसर जोहान्सन एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के ‘इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन ओरिजिंस’ के डायरेक्टर हैं। वे हिस्ट्री चैनल से बात करते हुए कहते हैं, ‘मुझे लगा कि ये वहां फैले बबून बंदर के जीवाश्मों में से एक होगा, लेकिन जब करीब से देखा तो चौंककर टॉम से कहा- ये इंसान के पूर्वज का है।’

पास ही एक फीमर यानी जांघ की हड्डी का निचला हिस्सा मिला।

फीमर हड्डी के टुकड़े के साथ जोहान्सन (फोटो सोर्स- एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी)

इसे एक साल पहले मिली घुटने के नीचे वाली हड्डी से जोड़कर देखने पर बने एंगल से साफ था कि यह दोनों हड्डियां दो पैरों पर सीधे खड़े होकर चलने वाले 32 लाख साल पुराने एक ही इंसान की थीं। यानी ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफ्रीकेनस से भी पुराना। इस तरह जोहान्सन दुनिया के सबसे पुराने इंसान की खोज कर चुके थे।

सवाल-3: 32 लाख साल पुरानी महिला का नाम लूसी क्यों रखा गया?

जवाबः जोहान्सन की टीम को चट्टानों के नीचे 200 फीट गहराई तक कुल 47 हड्डियां मिलीं। इनमें से एक पेल्विस यानी महिलाओं के शरीर की श्रोणि, एक छोटी सी खोपड़ी के पीछे का हिस्सा, कुछ पसलियां और जबड़े की हड्डियां थीं।

1975 में लूसी के कंकाल के साथ जोहान्सन (फोटो सोर्स- ASU)

उस रात कैंप में जश्न मनाया गया। शराब और नाच-गाने के बीच सोनी के टेप रिकॉर्डर पर जोर-जोर से बीटल्स बैंड का गाना ‘लूसी इन द स्काई विद डायमंड्स’ बज रहा था।

जोहान्सन ने अपनी किताब ‘लूसीज लिगेसी: द क्वेस्ट फॉर ह्यूमन ओरिजिंस’ में बताया है,

मेरी गर्लफ्रेंड पामेला एल्डरमैन ने पूछा, ‘हम इसका नाम लूसी क्यों नहीं रख सकते?’ मैं कोई साइंटिफिक नाम रखना चाहता था। जैसे- जिस जगह ये मिली उस हिसाब से इसका टेक्निकल नाम था- A.L.288-1 यानी अफार लोकैलिटी 288, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। सब उसे लूसी कहने लगे थे।

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आज अमेरिका और इथियोपिया में लूसी नाम के कॉफी शॉप्स की भरमार है। हालांकि, इथियोपिया की भाषा में लूसी को नाम दिया गया था- डिंकिनेश। जिसके मायने होते हैं- ‘आप अद्भुत हैं।’

अगले तीन हफ्ते में टीम को लूसी के पूरे कंकाल की करीब 40% हड्डियां मिल गईं।

सवाल-4: लूसी के दौर की जिंदगी कैसी थी?

जवाबः रिसर्चर्स ने लूसी के दौर की जिंदगी के बारे में कई रोचक बातें पता लगाई हैं…

  • बच्चे पैदा करने में दाई मदद करती थी: रिसर्चर्स का मानना है कि लूसी लगभग 15 से 20 नर और मादाओं के एक ग्रुप में रहती थी। लूसी के कंकाल से पता चलता है कि वह बच्चों को जन्म दे सकती थी। हालांकि, पेल्विक एरिया छोटा होने के चलते, बच्चे को जन्म देना आसान नहीं था। हो सकता है कि तब के समय की दाई ने बच्चा पैदा करने में लूसी की मदद की हो।
  • एक ही स्त्री से प्रजनन करते थे पुरुष: लूसी के समय के पुरुष भी महिलाओं की तुलना में ज्यादा बड़े नहीं थे। वैज्ञानिकों के मुताबिक उस समय पुरुष मोनोगैमस (एक ही स्त्री से प्रजनन करने वाले) थे।

अमेरिकन म्यूजियम ऑफ हिस्ट्री में रखी हुई लूसी और उसके पार्टनर का रेप्लिका।

  • एक-दूसरे की परवाह करते थे लूसी के दौर के इंसान: जोहान्सन के मुताबिक, लूसी की प्रजाति का ज्यादातर समय दूसरे जानवरों का शिकार बनने से बचने में निकलता होगा। वह कहते हैं, ‘ये छोटे जीव बड़ी बिल्लियों और लकड़बग्घे जैसे जानवरों के लिए बढ़िया भोजन थे। उन्होंने एक-दूसरे का साथ दिया। खास तौर पर तब, जब कोई खतरा होता था।’
  • एक-दूसरे की मदद करते थे लोग: इथियोपिया में ही 36 लाख साल पुराना एक नर कंकाल भी मिला, जिसे ‘कडानूमुऊ’ नाम दिया गया। इसका पैर टूट गया था, जो कि मरते समय पूरी तरह ठीक हो गया था। एक अन्य जीवाश्मविज्ञानी जेरेमी डिसिल्वा के मुताबिक, ‘अगर साथी आपकी मदद न करें तो बिना डॉक्टर और बैसाखी के तो आप जिंदा नहीं रह सकते। कडानूमुऊ इसका पुख्ता सबूत है कि उन्होंने एक-दूसरे को मरने के लिए नहीं छोड़ा।’

सवाल-5: ये कैसे पता चला कि लूसी ही इंसानों की पहली मां हो सकती है?

जवाबः लूसी की खोपड़ी बंदर की तरह ही छोटी और आज के इंसान की करीब एक-तिहाई थी, लेकिन वह दो पैरों पर चलती थी। इससे यह बात साफ हो गई कि बंदर से इंसान बनने की प्रक्रिया में हमने पहले दो पैरों पर चलना सीखा। उसके बाद हमारा दिमाग विकसित हुआ।

लूसी, चिम्पांजी बंदर और आज के इंसान का कंकाल (बाएं से दाएं), फोटो सोर्स- Elucy.org)

लूसी ही इंसानों की सबसे पहली मां कैसे? दरअसल, लूसी की खोज से पहले तक मान्यता थी कि ‘होमिनिड्स’ (यानी शुरुआती बंदर) करीब 1.5 करोड़ साल पहले बंदर से इंसान बने थे। रामापिथिकस प्रजाति के इन इंसानों को मनुष्य का सबसे शुरुआती पूर्वज माना जाता था।

  • रामापिथिकस प्रजाति आगे चलकर ‘ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफ्रिकैनस’ और होमोनिंस प्रजातियों (यानी मनुष्यों के पूर्वज) में बंट गई।
  • ऑस्ट्रेलोपिथेकस प्रजाति लुप्त हो गई और होमोनिंस प्रजातियां आगे विकसित होकर आज के इंसान यानी होमो सेपियंस बनीं।

जोहान्सन ने भी शुरुआत में लूसी को ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफ्रिकैनस का ही सदस्य माना था। हालांकि, बाद में इथियोपिया और तंजानिया में मिली लूसी जैसी हड्डियों के आधार पर जनवरी 1979 में जोहान्सन ने दावा किया कि लूसी, इंसानों के इवोल्यूशन के क्रम में एक नई प्रजाति है। इसे नाम दिया गया- ‘ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफारेंसिस’।

जोहान्सन के मुताबिक, बंदर से मनुष्य बनने की प्रक्रिया 1.5 करोड़ साल पहले रामापिथिकस के समय नहीं, बल्कि बाद में लूसी की प्रजाति के समय 60 लाख से 80 लाख साल पहले हुई। इस तरह रामापिथिकस की जगह ‘ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफारेंसिस’ को इंसानों का पहला पूर्वज मान लिया गया। यही मान्यता आज भी है। जोहान्सन के दावे के बाद उसी महीने टाइम मैगजीन ने लूसी को फ्रंट पेज पर सेलिब्रिटी के तौर पर छापा था।

2013 में हादर में ही 28 लाख साल पुराना एक मजबूत जबड़ा मिला, जो किसी प्रजाति से मेल नहीं खाता था। लूसी से महज 2 लाख साल बाद की इस प्रजाति को ‘आस्ट्रेलोपिथेकस रोबस्टस’ कहा गया। इसका जबड़ा सामने से लूसी की प्रजाति का दिखता है, जबकि पीछे से होमो सेपियंस के पूर्वजों की प्रजाति का। इसने आज के इंसान को पूरी तरह लूसी से जोड़ दिया।

सवाल-6: लूसी की मौत कैसे हुई?

जवाबः लूसी की मौत की दो थ्योरी हैं…

1. मगरमच्छ जैसे किसी जानवर के हमले से मौत

जोहान्सन के मुताबिक, लूसी की प्रजाति पेड़ों पर घोंसलेनुमा घर बनाकर रहती थी। दो पैरों पर धीरे-धीरे चलने वाले ये छोटे जानवर, पक्षी, कछुए के अंडे या हिरन, जो भी हाथ में आता, खा लेते थे।

जोहान्सन को लूसी की पेल्विक बोन के आसपास एक मांसाहारी जानवर के दांत का निशान मिला था। जोहान्सन कहते हैं, ‘लूसी की प्रजाति का शिकार किया जाता था। सुबह खाने या पानी की तलाश में लूसी निकली। झील के किनारे मगरमच्छ जैसे किसी जानवर ने उस पर हमला किया होगा।’

डिजाइनर ब्रिगिड स्लिंगर का बनाया चित्र, जिसमें लूसी को झील के किनारे पेड़ से फल तोड़ने दिखाया गया है, इसी दौरान एक मगरमच्छ उसकी तरफ बढ़ रहा है।

2. पेड़ से नीचे गिरने से मौत

नेचर मैगजीन में छपी मानवविज्ञानी जॉन कैप्पेलमेन की एक रिसर्च के मुताबिक, कैप्पेलमेन कहते हैं,

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2016 में लूसी के कंकाल के CT स्कैन और 3D इमेजिंग की गई। उसके दाहिने कंधे, पसलियों और घुटनों में फ्रैक्चर था। ये लाखों साल तक पत्थरों में दबे रहने से होने वाले फ्रैक्चर से अलग था। लूसी को काफी ऊंचाई के पेड़ पर खाना तलाशने के दौरान वहां से गिरने के चलते फ्रैक्चर हुए। मुझे नहीं लगता वह ज्यादा देर जिंदा रही।

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लूसी की 3D इमेजिंग, जिसमें कैप्पेलमेन ने दिखाया कि पेड़ से गिरने पर सबसे पहले लूसी के पैर की हड्डियां, रीढ़ की हड्डी और फिर सिर की हड्डियां टूटीं। (फोटो सोर्स- Nature)

पिछले पांच दशकों में अफ्रीका में लूसी से भी पुरानी इंसानी हड्डियां मिली हैं। एक प्रजाति ऑस्ट्रेलोपिथेकस एनामेंसिस का इतिहास 44 लाख साल पुराना है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्हें 70 लाख साल पुराने हड्डियों के टुकड़े भी मिले हैं।

जोहान्सन के मुताबिक, भले ही लूसी अब हमारी सबसे बुजुर्ग मां नहीं रही, लेकिन वह इंसान की दो प्रमुख शाखाओं- विलुप्त हो चुके ऑस्ट्रेलोपिथेकस और आधुनिक होमो सेपिएंस के बीच की कड़ी जरूर है।

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