आगरा के जिस गांव में 6 हत्याएं हुई…वहां दहशत : SC से आरोपी बरी; मुकदमा लड़ने वाले की मां बोली- हमारी जान कौन बचाएगा – Agra News h3>
राजस्थान बॉर्डर से सटे आगरा के गांव तुरकिया में इन दिनों दहशत है। लोगों ने 13 साल पहले 6 हत्याओं का जो खूनी मंजर देखा, उसका आरोपी अब जेल से बाहर आ गया है।
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लोअर कोर्ट और हाईकोर्ट ने आरोपी गंभीर सिंह को फांसी की सजा सुनाई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। गंभीर पर अपने सगे भाई-भाभी और उनके 4 बच्चों को कुल्हाड़ी से बेरहमी से काट डालने का आरोप था।
गंभीर जेल से छूटने के बाद कहां गया, गांव में क्या माहौल है, केस दर्ज कराने वाला अब क्या करेगा? ये जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम आगरा से 35KM दूर अछनेरा इलाके के गांव तुरकिया में पहुंची। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
खंडहर जैसा दिखने वाला मकान सत्यभान का है। यही पर 6 कत्ल किए गए थे।
पहले घटना और अब तक क्या-क्या हुआ
9 मई, 2012 की सत्यभान, पुष्पा और उनके 4 बच्चे आरती (6), कन्हैया (4), मछला (3) और गुड़िया (2) घर में सोए थे। उन्हें कुल्हाड़ी से बेरहमी से काट दिया गया। पुलिस ने इस मामले में सत्यभान के छोटे भाई गंभीर सिंह को अरेस्ट किया। बताया गया कि साजिश में उसका बिहार का दोस्त अभिषेक भी शामिल था। पुलिस को गंभीर की बहन गायत्री ने कहा था कि सत्यभान 1 बीघा जमीन नहीं दे रहा था। इसी रंजिश में हत्या की गई।
यह तस्वीर गंभीर सिंह की है। वह जेल से बाहर आने के बाद से गायब है।
पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की। निचली अदालत में सुनवाई के बाद गंभीर सिंह को फांसी की सजा सुनाई। गंभीर के वकील ने 2019 में हाईकोर्ट में अपील दाखिल की। हाईकोर्ट ने भी सुनवाई के बाद गंभीर को दोषी ठहराया।
इसके बाद गंभीर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अभियोजन पक्ष के मामले में बहुत सी खामियां हैं, जिन्हें सुधारना असंभव है। सबूतों के अभाव में आरोपी को बरी किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पढ़िए…
अब ग्रामीणों की बात…
गांव की तरफ जाने वाली सड़क पर सन्नाटा था। कुछ दूर चलने के बाद हमें चबूतरा दिखा। यहां 4-5 लोग बैठे थे। हमने उनसे सत्यभान का घर पूछा तो वह हमें गांव के बॉर्डर तक लेकर गए। यहां एक खंडहर दिखाया, बोले यही सत्यभान का मकान है। इसी घर में 13 साल पहले 6 लोगों का खून बहा था, अब खंडहर हो चुका है। घर पर दरवाजे पर ताला और चारों तरफ कंटीली झाड़ियां हैं।
दैनिक भास्कर की टीम को देखकर कोई अपने घर की छत से झांक रहा था तो कोई दूर खड़ा सारे मूवमेंट पर नजर रख रहा था। मगर, जैसे ही हम उनके पास गए तो वह अपने घरों में घुस गए।
कुशपाल ने कहा- मैं जब पहुंचा, वहां खून ही खून था सत्यभान के घर से 20 मीटर दूर रहने वाले कुशपाल अपने पशुओं को नहला रहे थे। हमने उनसे घटना को लेकर बात करनी चाही तो पहले तो उन्होंने मना किया। मगर थोड़ी बातचीत के बाद वह सहज हुए। कहा- अब क्या बताएं उस सुबह के बारे में। 10 मई 2012 को जब मैं वहां पहुंचा तो वहां खून ही खून था। पानी की तरह से खून बह रहा था। कमरे में सत्यभान और परिजनों की कटी हुईं लाशें पड़ी थीं। देखा नहीं जा रहा था। मासूम बच्चों को भी बुरी तरह से काटा गया था। खूनी मंजर देखकर हमारी तो रूह कांप गई।
यह कुशपाल का मकान है, वह घर के बाहर ही हमें मिले।
कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई, तब गांव लौटे गांव से 2 किलोमीटर दूर अरदाया गांव में सत्यभान की ससुराल है। उनके रिश्ते के साले महावीर सिंह इस केस के मुख्य वादी हैं। महावीर मजदूरी करते हैं। उनका पूरा परिवार दहशत में है। महावीर कहते हैं- इस घटना के बाद हम लोग इतना डर गए कि घर बार छोड़कर महाराष्ट्र चले गए। वही पर मजदूरी करने लगे। हमारा छोटा भाई केस की पैरवी करता रहा। जब कोर्ट ने गंभीर को फांसी की सजा सुना दी, तब 3 साल पहले गांव लौटे थे। अभी 27 जनवरी को पुलिस ने जानकारी दी कि सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर को बरी कर दिया है।
महावीर बोले- अब केस लड़ू या बच्चों का पेट पालू हमने पूछा कि अब क्या करेंगे? महावीर कहते हैं- हमें अब अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता है। मजदूरी करके मैं जो कमाता हूं, उससे बच्चों का पेट भर लूं या फिर केस लड़ लूं। न तो वकील की फीस देने के लिए मेरे पास पैसे हैं और न ही भागदौड़ करने के लिए संसाधन।
हमने पूरी कोशिश की थी। मगर पुलिस ने अपना काम ठीक से नहीं किया। इसकी वजह से हमारी बहन, बहनोई और 4 भांजे-भांजी का हत्यारोपी बरी हो गया।
केस के वादी महावीर का परिवार अब डरा हुआ है।
महावीर की मां बोली- अब मेरे बच्चों को खतरा… महावीर सिंह की 75 वर्षीय मां संता देवी ने कहा, बेटी को खोने के बाद हमें अपने बेटे की सुरक्षा सताने लगी है। अब मेरे बच्चों को खतरा है। मेरी बेटी को तो गंभीर ने मौत के घाट उतार ही दिया, अब मेरे बच्चों पर खतरा नहीं आना चाहिए।
मां संता देवी कहती हैं- गंभीर छूट गया है, अब मेरे बेटे को खतरा है।
अब केस हारने के कारण अभियोजन पक्ष का दावा है कि गंभीर सिंह ने संपत्ति विवाद काे लेकर अपने ही भाई के परिवार की हत्या कर दी थी। हालांकि कोर्ट ने पाया कि सत्यभान का वकील गंभीर सिंह के अपराध को साबित करने में नाकाम रहा। जांच में 4 खामियां सामने आई…
- जांच में गांव के एक व्यक्ति को गवाह बनाया। उन्होंने बयान दिया कि वह घटना की जानकारी पर सत्यभान के घर पहुंचे थे। तब हत्या का पता चला। इस दौरान गंभीर सिंह, उसकी बहन गायत्री और नाबालिग को जाते हुए देखा था। गंभीर के कपड़ों पर खून लगा हुआ था। मगर, उन्होंने टोका नहीं। खून लगा हाेने के बारे में नहीं पूछा। इस गवाही पर गंभीर को कातिल नहीं माना गया।
- पुलिस ने जमीन के विवाद में भाई और उसके परिवार की हत्या होना बताया, जबकि यह साबित नहीं कर पाई कि गंभीर ने ही हत्या की है। साथ ही जमीनी विवाद से संबंधित कोई ठोस सबूत भी प्रस्तुत नहीं कर पाए।
- पुलिस ने कुल्हाड़ी, कुंडल और खून से सने कपड़े बरामद किए थे। इन कपड़ों पर बरामदगी में किसी स्वतंत्र गवाह की गवाही नहीं कराई। कपड़ों पर खून लगा दर्शाया गया, वह किस ब्लड ग्रुप का था, यह नहीं पता चला। घर में पड़े मिले मृतकों के खून का कपड़ों के खून से मिलान नहीं कराया गया।
- पुलिस ने सिर्फ गवाही ली। गवाह भी वादी पक्ष का परिचित था। इसके अलावा सत्यभान के घर के आसपास के लोगों के कोई बयान नहीं लिए गए। इस मामले में ठोस गवाह प्रस्तुत नहीं किए गए। इसका फायदा गंभीर सिंह को मिला।
विवेचना में फेल हुई पुलिस गंभीर के बरी होने के बाद अब कई सवाल खड़े हो गए हैं। आखिर हत्यारा कौन है…किसने सत्यभान, उसकी पत्नी और बच्चों की हत्या की। पुलिस विवेचना में कहां फेल हो गई। क्या पुलिस विभाग के अफसरों ने मॉनिटरिंग नहीं की।
वैज्ञानिक साक्ष्य क्यों नहीं प्रस्तुत किए। सवाल उठता है कि आखिर इस जुर्म के लिए कौन जिम्मेदार है। क्या जानबूझकर विवेचना में लापरवाही बरती। ऐसे में विवेचक की जवाबदेही कौन, कब और कैसे तय होगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता रवि आरोरा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट से बरी होने के बाद अब इस मामले में दोबारा अदालती कार्यवाही की गुंजाइश नहीं बची है।
एक बीघा जमीन…6 हत्याएं, हाथ में कुछ नहीं जिस एक बीघा जमीन के लिए 6 लोगों की हत्या हुई, अब न तो वह जमीन रही और न ही मकान रहा। ग्रामीणों का कहना कि एक बीघा जमीन के साथ ही अब उसका घर भी बिक चुका है। सत्यभान और गंभीर के दूर के चाचा अजय सिंह बताते हैं कि मकान और जमीन सब जा चुका है। अब इनके पास कुछ नहीं बचा।
गंभीर और सत्यभान ने जमीन के लिए 2007 में मां की हत्या कर दी थी। पुलिस ने दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। सत्यभान को पहले जमानत मिल गई। मुख्य आरोपी गंभीर को जमानत नहीं मिल सकी थी।
इस पर सत्यभान से उसने जमानत के लिए एक बीघा खेत बेचने की बात कही थी। सत्यभान तैयार हो गया था। 6 महीने बाद जब गंभीर जेल से रिहा होकर आया ताे उसने सत्यभान से अपना हिस्सा देने के लिए कहा। इस बात पर दोनों में झगड़ा हुआ। बाद में सत्यभान ने हिस्सा देने से मना कर दिया था।
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प्रतापगढ़ के एक युवक को साइबर ठगों ने इस कदर ब्लैकमेल किया कि उसने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। यूपी पुलिस ने इस केस को डिजिटल मर्डर करार दिया है। ज्ञानदास प्रयागराज के फूलपुर में पंचायत विभाग में सफाई कर्मचारी थे। जालसाजों ने क्राइम ब्रांच का अफसर बनकर उनसे 3 दिन में 81 हजार रुपए ट्रांसफर करवाए। उन्हें ड्रग्स बेचने के मुकदमे में फंसाने की धमकी देते रहे। पढ़िए पूरी खबर…