अविवाहित बेटी मां-बाप से शादी के खर्च का कर सकती हैं दावा, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला

104
अविवाहित बेटी मां-बाप से शादी के खर्च का कर सकती हैं दावा, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला

अविवाहित बेटी मां-बाप से शादी के खर्च का कर सकती हैं दावा, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला

आयुषी शर्मा, रायपुर : अविवाहित बेटियां अब अपने माता-पिता से शादी के खर्च (daughters claims expenses of wedding) पर दावा कर सकती हैं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने फैसले में माना है कि अविवाहित बेटियां (unmarried daughters news) हिंदू दत्तक और भरण पोषण अधिनियम, 1956 के तहत अपने माता-पिता से शादी के खर्च का दावा कर सकती हैं। दुर्ग फैमिली कोर्ट के एक आदेश को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और न्यायमूर्ति संजय एस अग्रवाल की खंडपीठ ने मामले को वापस भेज दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने दोनों पक्षों को फैमिली कोर्ट में पेश होने के लिए कहा है। साथ ही कोर्ट ने छह साल इस पुराने मामले में पुनर्विचार कर फैसला लेने का आदेश दिया है।


दरअसल, भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत रहे भानुराम की बेटी राजेश्वरी ने 2016 में हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। उस समय हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर फैमिली कोर्ट में आवेदन देने के लिए कहा था। राजेश्वरी ने फैमिली कोर्ट में आवेदन जमा कर कहा था कि कोर्ट उसके पिता को शादी के लिए 25 लाख रुपये देने के लिए निर्देशित करे। पिता को सेवानिवृति के बाद स्टील प्लांट से 55 लाख रुपये मिलने वाले थे।

High court order : पत्नी दफ्तर में बार-बार फोन करके पति की पूछताछ करे तो मानसिक क्रूरता, हाई कोर्ट ने तलाक किया मंजूर
राजेश्वरी की याचिका को फैमिली कोर्ट ने 20 फरवरी 2016 को खारिज कर दिया। इसके बाद राजेश्वरी ने फिर से हाईकोर्ट का रूख किया। हाकोर्ट में राजेश्वरी के वकील की तरफ से कहा गया है, उसके पिता को रिटायरमेंट के बाद 75 लाख रुपये मिले हैं। इसमें से बेटी 25 लाख रुपये शादी के खर्च के लिए मुहैया कराने की मांग कर रही है। अपीलकर्ता ने अपनी याचिका में यह दावा किया था कि वह एक अविवाहित बेटी है।

शादी से इनकार, पर पिता को मिला बच्चे से मिलने का अधिकार
हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम 1956 की धारा 20 के तहत बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी तय की गई है। कानून में दिए गए अधिकारों के तहत बेटी की शादी का उचित खर्च और उसकी शादी के लिए होने वाला खर्च शामिल है। भारतीय समाज में, आम तौर पर शादी से पहले और शादी के समय भी खर्च करने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, 1956 के अधिनियम की केंद्रीयता दोनों को सुरक्षा प्रदान करती है।

शादी एक पवित्र रिश्ता, जीवनसाथी पर चरित्रहीनता का झूठा आरोप क्रूरता- दिल्ली हाई कोर्ट
हाईकोर्ट ने इसी अधिनियम के तहत शादी के खर्च की राशि का दावा करने का अधिकार बनाया गया और अदालतें भी इससे इनकार नहीं कर सकतीं। अविवाहित बेटियां ऐसे अधिकारों को लेकर दावा करती हैं। कोर्ट ने कहा कि शादी से पहले और शादी के दौरान सामूहिक रस्में निभानी पड़ती हैं, जिसकी कीमत चुकानी पड़ती है।

‘आरोपी से शादी कर चुकी हूं’, रेप केस खारिज करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
वहीं, हाईकोर्ट ने यह भी टिप्पणी की है कि 1956 के अधिनियम के तहत अविवाहित बेटी के कहने पर कार्यवाही की अनुमति नहीं दी जाती है, शादी के खर्च का दावा करते हुए, वैधानिक प्रयास को सीमा पर समाप्त नहीं किया जा सकता है। आदेश में कहा गया है कि शादी के अनुमानित खर्च के लिए अविवाहित बेटियों के अधिकार के अनुसार उचित खर्च देने के लिए सुनिश्चित करना आवश्यक है।



Source link