अरशद मदनी बोले-UCC लागू करने की जरूरत क्यों?: सरकार अल्पसंख्यकों का अधिकार छीनना चाहती, उसे धार्मिक मामले में दखल का हक नहीं – Saharanpur News h3>
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू होने के बाद इसका विरोध तेज हो गया है। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
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संगठन के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बुधवार प्रेस रिलीज जारी की। कहा-यह कानून न केवल संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
बल्कि देश की धर्मनिरपेक्षता और एकता के लिए भी हानिकारक है। सरकार संविधान की ओर से अल्पसंख्यकों को दिए गए अधिकारों को छीनना चाहती है।
पढ़िए मदनी के 4 बड़े बयान
1. ‘शरीयत के खिलाफ कोई कानून मंजूर नहीं’ मौलाना अरशद मदनी ने कहा-हम शरीयत के खिलाफ किसी भी कानून को स्वीकार नहीं कर सकते। मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है, लेकिन अपने धर्म और शरीयत से नहीं। यह हमारे अस्तित्व का नहीं, बल्कि हमारे अधिकारों का सवाल है।
समान नागरिक संहिता लागू कर सरकार संविधान की ओर से अल्पसंख्यकों को दिए गए अधिकारों को छीनना चाहती है। जब देश में पहले से ही एक ऑप्शनल नागरिक संहिता मौजूद है, तो फिर समान नागरिक संहिता की जरूरत क्यों?
मौलाना अरशद मदनी ने कहा-ब गोहत्या पर एक कानून नहीं है, तो फिर सिर्फ पर्सनल लॉ के मामले में ही समानता क्यों?
2. ‘UCC मौलिक अधिकारों का हनन’ मौलाना अरशद मदनी ने कहा-अनुच्छेद 44 को आधार बनाकर समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश की जा रही है, जबकि यह केवल एक मार्गदर्शक सिद्धांत है। उन्होंने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 29 नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं, जो इस कानून के विरोध में जाते हैं।
जब IPC और CRPC के प्रावधान देशभर में समान नहीं हैं, जब गोहत्या पर एक कानून नहीं है, तो फिर सिर्फ पर्सनल लॉ के मामले में ही समानता क्यों?
3. ‘धार्मिक मामलों में सरकार का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं’ मौलाना मदनी ने कहा-आजादी से पहले और बाद में जब भी शरीयत में हस्तक्षेप की कोशिश हुई, जमीयत उलमा-ए-हिंद ने पूरी ताकत से इसका विरोध किया।1937 का शरीयत कानून और 1939 का विवाह उन्मूलन कानून जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रयासों से ही बना था। सरकार को धार्मिक मामलों में दखल देने का कोई हक नहीं है।
मौलाना मदनी ने कहा- कुछ समय के लिए नफरत सफल हो सकती है, लेकिन अंतिम जीत प्यार और न्याय की होगी।
4. UCC लागू करना धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने की साजिश मौलाना मदनी ने समान नागरिक संहिता को “एक सोची-समझी साजिश” बताते हुए कहा-इससे देश के अल्पसंख्यकों को भय और असुरक्षा में डालने की कोशिश हो रही है।
देश के संविधान में नफरत नहीं, बल्कि प्यार और भाईचारा शामिल है। कुछ समय के लिए नफरत सफल हो सकती है, लेकिन अंतिम जीत प्यार और न्याय की होगी। उत्तराखंड हाईकोर्ट में इस याचिका पर जल्द सुनवाई होगी। यदि वहां से राहत नहीं मिली तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है। देखना होगा कि अदालत इस पर क्या फैसला सुनाती है।
हाईकोर्ट में इसी सप्ताह होगी सुनवाई याचिका में समान नागरिक संहिता को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल इस मामले में जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से पैरवी करेंगे। हाईकोर्ट इस पर इसी सप्ताह सुनवाई कर सकता है।
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