अयोध्या में धूमधाम से मन रहा रामलला का छठ उत्सव: दो दिवसीय महोत्सव के आनंद में डूबे हैं मंदिर,राममंदिर और लक्ष्मण किला में भव्यता से मना – Ayodhya News

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अयोध्या में धूमधाम से मन रहा रामलला का छठ उत्सव:  दो दिवसीय महोत्सव के आनंद में डूबे हैं मंदिर,राममंदिर और लक्ष्मण किला में भव्यता से मना – Ayodhya News

अयोध्या में धूमधाम से मन रहा रामलला का छठ उत्सव: दो दिवसीय महोत्सव के आनंद में डूबे हैं मंदिर,राममंदिर और लक्ष्मण किला में भव्यता से मना – Ayodhya News

आचार्य पीठ लक्ष्ण किला में भगवान के गर्भगृह को भव्य रूप से सजाया गया

रामलला के छठ के दो दिवसीय महोत्सव के आनंद में अयोध्या के मंदिर डूबे हुए हैं।राममंदिर और लक्ष्मण किला में यह पर्व बेहद भव्यता से मनाया गया।राम मंदिर में गर्भगृह को भव्य रूप से सजाने के साथ ही अयोध्या के प्रसिद्ध संगीतज्ञों ने रामलला के दरबार में अपनी

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आचार्य पीठ लक्ष्ण किला में भगवान के गर्भगृह को भव्य रूप से सजाया गया।रामलला को खिलौना सहित अनेक उपहार भेंट किए गए।बाद इसका वितरण भक्तों में किया गया।पुष्प और गुलाब जल की वर्षा के बीच गायन-वादन का दौर घंटों चला जो संतों को भी मुग्ध कर देने वाला रहा।इस अवसर पर महंत मैथिली रमण शरण ने धन और टाफी के के साथ खिलौने लुटा कर अपना आनंद प्रकट किया।

हनुमत निवास में आचार्य डाक्टर मिथिलेश नंदिनी शरण की अध्यक्षता में यह पर्व मनाया गया। आज कैसो दिवस सजनी बड़े भागन पाइए और जा दिन नहाय बैठो लैके कनिया आदि पदों को गायन कर भगवान श्रीराम के बाल क्रीड़ा को व्यक्त किया गया।इस अवसर पर प्रसिद्ध गायक विनोद शरण,संगीतज्ञ भोला बाबा और रामनरेश आदि ने पदों का गायन किया।

आचार्य डाक्टर मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा कि रामलला को इस धरा धाम पर प्रकट हुए 5 दिन हो गए हैं। चक्रवर्ती श्रीदशरथ जी महाराज के महल का उल्लास घटने का नाम नहीं लेता। हो भी कैसे.. पत्थर पर दूब जो उगी है। चौथे पन में जब भगवान के भजन में मन लगाने का समय होता है तब रानियां पुत्रवती हुई हैं। देवता दाहिने हुए हैं, गुरु का आशीर्वाद फलित हुआ है। यज्ञ भगवान ने कृपा किया है और सूर्यवंश में मानवता का सूर्य चार रूपों में अवतरित हुआ है।

उन्होंने कहा कि एक पुत्र को तरसते आँगन में एक साथ चार-चार बालक अवतरित हुए हैं। तीनों रानियां ने पुत्र जनमाया है। चक्रवर्ती जी ने ऐसा उत्सव रचा है जैसा न कभी किसी ने देखा और न सुना। देवता मुदित अपना भोग-बलि-हविष्य ग्रहण करते हैं। गुरु वशिष्ठ का पग पखार कर सारे महल में छिड़काया जाता है। मुनि मण्डली सेवा-सम्मान से तृप्त होकर स्वस्तिवाचन करती है। पुरजन-परिजन का तो कहते ही नहीं बनता..ऐसे छके हैं कि जो पाते हैं उसे सहेजने के स्थान पर लुटा देते हैं। उदार शिरोमणि श्रीदशरथ जी की दानशीलता का तो कहना ही क्या.. जाचक सकल अजाचक कीन्हें।

श्रीरंगनाथ, सूर्य नारायण, गणपति तथा गौरी आदि पञ्च देवों की बारम्बार आराधना होती है। पर भगवान् शिव इस पूजा से तृप्त नहीं, वे तो ठहरे परम रसिक। सो, जबतक अपने प्राणधन प्रभु को गोद में लेकर लाड लड़ाने का सुख न मिले तब तक इस मन्त्र-माल्य की पूजा में उनका जी नहीं लगता। वे निकल गए हैं ज्योतिषी बनकर, कागभुशुण्डि जी को चेला बनाया और अयोध्या की गलियों में उमड़ते श्रीरामजन्म महोत्सव का सुख लूटते हैं।

घूमते-फिरते अन्तःपुर में घुसने का भी उपाय बना लिया है और अपना मनोरथ सिद्ध किया है। भले यह चोरी है, पर इससे महादेव धन्य-धन्य हैं।

असंख्य दृश्य हैं और अनगिनत प्रसंग। कुछ भी कहो, बहुत कुछ छूट जाता है। इस लोकोत्तर महोत्सव के लौकिक सन्दर्भ भी कम मनोहर नहीं हैं।

..पाँच दिन हो गए हैं। माँ कौशल्या विह्वल हैं। छठी विधान पूरा हो.. लोक- वेद का आचार सम्पन्न हो, फिर अपने छगन-मगन को नहलाकर, उबटन- अंजन से निखारकर, पीली झगुली पहनाकर, दिठौना लगाकर, देव- पितरों को प्रणाम कराकर कनियाँ (कोरा-गोद) में लेकर आँगन में बैठूँ तो मेरा जी जुड़ाये। अब मैं पुत्रहीना नहीं हूँ। यही तो स्त्रीत्व है.. मातृत्व ही स्त्रीत्व का गौरव है, इसका पुण्यफल है।

आज माँ का हृदय उमड़ रहा है। मैं अपने राम को गोद में लेकर आँगन में बैठूँ… सोहर गाऊँ… अपनी प्रार्थना फलने का उत्सव मनाऊँ। पुत्रजन्म का उत्सव सारी अयोध्या मना रही है। देवता, सिद्ध, गन्धर्व-किन्नर सब इसमें सम्मिलित हैं, सब प्रमुदित हैं। पर माँ का चित्त तो कुछ और ही है ना। इनके गर्भ से जन्मे परमपिता कौशल्यानन्दन कहलायेंगे। वेद इनकी महिमा गायेंगे।

माँ कौशल्या का उल्लास उमड़कर बहता है। वे अपनी सहचरी स्त्रियों को कहती हैं कि सखियों ! मेरे देवता प्रसन्न हुए हैं तुम सबकी सेवा सार्थक हुई है। मैं तुम सबको मान -उपहार से तृप्त कर दूँगी। अपने लाल को गोद में लेकर आँगन में मुझे आने दो। हरी-हरी सारी, जिसके किनारे सोने से मढ़े हुए हैं, जिसमें हीरे टांके हुए हैं और मणियों की झालर लगी है वह मैं तुमको दूँगी।

पद रचते हुए श्री रतनहरि कहते हैं कि वात्सल्य से भरी हुई माता कौशल्या कहती हैं कि हीरा-माणिक्य से मंडित नथ, आभूषण अलंकार से सबका श्रृंगार करूँगी। जिस दिन मैं अपने लाल को गोद में लेकर आँगन में बैठूंगी।

“जा दिन नहाय बैठों राम लैके कनियाँ। दैहौं मनि मानिक विभूषण विचित्र तोकों। हरी-हरी साड़ी तामें जरद किनारी लागी बादल के झब्बे लागे तास की फुॅंदनियाँ॥ फूली न समैहों मुख मोरिहों न काहू पै ऐसो बनाऊँ जैसे राजन की रनियाँ॥ ‘रतनहरी’ नख सिख लौ गहनो हीरा मनि मानिक सो जटित नथुनियाँ॥”

श्रीरामलला की छठी आई है.. अयोध्या मगन है। सन्त बधाई गाते हैं, न्यौछावर लुटाते हैं और इस उत्सव पर बलि- बलि जाते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी, स्वामी अग्रअलीजी, स्वामी जीवाराम जी, स्वामी युगलान्यशरण जी, श्रीकृपानिवास जी, राजा रघुराज सिंह जी, रतनहरि जी, सिया अली जी, किन – किन का नाम लें.. अयोध्या में गूँजते सोहर, बधाई, चैता, रेख़्ता, सोहिलो, सोहर, पदावली और राग- तान की विविध स्वर लहरियों पर आरूढ़ पूर्वाचार्य, पदावली कार सर्वत्र छाए हुए हैं।

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