अमरीका में सूर्य के अनसुलझे रहस्यों को खोज कर रही सतना की ये बेटी, जानिए सफलता की अनसुनी कहानी | Dr. Shirshalata returned home after a year from abroad, welcomed by family members | News 4 Social

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अमरीका में सूर्य के अनसुलझे रहस्यों को खोज कर रही सतना की ये बेटी,  जानिए सफलता की अनसुनी कहानी | Dr. Shirshalata returned home after a year from abroad, welcomed by family members | News 4 Social


अमरीका में सूर्य के अनसुलझे रहस्यों को खोज कर रही सतना की ये बेटी, जानिए सफलता की अनसुनी कहानी | Dr. Shirshalata returned home after a year from abroad, welcomed by family members | News 4 Social

बचपन से ही था साइंटिस्ट बनने का सपना

पत्रिका से बातचीत में डॉ. शीर्षलता ने बताया कि वह 6 बहन व 1 भाई में सबसे छोटी हैं। ढाई वर्ष की उम्र में सिर से पिता प्रोफेसर श्यामलाल सोनी का साया छिन गया। तब मां गुलाब देवी और बहनों ने संभाला। लाड़ली और सबसे छोटी बेटी को मां शहर से बाहर नहीं भेजना चाहती थी। ऐसे में मुख्तियार गंज स्थित शिवशक्ति स्कूल से प्राइमरी और सीएमए स्कूल में मिडिल तक पढ़ाई की। पिता डिग्री कॉँलेज में एनसीसी ऑफिसर थे।

घर के अन्य बच्चे एनसीसी नहीं ले पाए, तो मुझे एनसीसी दिलाने शासकीय हायर सेकंडरी स्कूल (एमएलबी) में मां ने दाखिला दिला दिया। ऐसे में कक्षा 9वीं से लेकर 12वीं की पढ़ाई गणित समूह से की। इसके बाद सतना के डिग्री कॉलेज से यूजी और फिजिक्स से पीजी की। बचपन में ही साइंटिस्ट बनने का लक्ष्य बना लिया था, पर अपने सपने के बारे में किसी को नहीं बताया।

देश-दुनिया में नाम कमाने पहुंच गई अमरीका

एक बार कॉलेज में नेशनल सेमिनार हुआ। कई नामचीन वैज्ञानिक आए। उन्होंने साइंटिस्ट बनने के टिप्स दिए। वहीं से सपने बुनने का मार्ग मिल गया। उस दिन से वैज्ञानिक बनने की जिद कर ली। सफल होने के लिए एपीएस यूनिवर्सिटी रीवा से एमफिल और पीएचडी की। तब वैज्ञानिक बनने की राह आसान हुई। इसके बाद पीआरएल अहमदाबाद से जुड़कर इसरो की ट्रेनिंग ली। डेढ़ साल तक इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (तिरुवनंतपुरम) में कई प्रकार के रिसर्च में सहभागी रही। आदित्य एल-1 की लांचिग के समय देश के लिए कार्य किया। नासा जाकर देश-दुनिया में नाम कमाने की चाहत में अमरीका पहुंच गई।

5 मार्च को 2023 को यूएसए गई

32 वर्षीय डॉ. शीर्षलता मिशिगन यूनिवर्सिटी में रिसर्च फैकल्टी के रूप में चयनित हुई हैं। वह सूर्य और रेडिएशन पर काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि सूर्य पर दो प्रकार के कार्य हो रहे हैं। एक सोलर एनर्जी, दूसरा सोलर फिजिक्स। भारत में सूर्य की किरणें काफी मात्रा में आती हैं पर अन्य देशों में ऐसा नहीं है। हम सूर्य से संबंधित पांच रिसर्च पर काम कर रहे हैं। पार्कर सोलर प्रोब, सोलर ऑर्बिट, सनराइज, स्विफ्ट, स्टूडियो पर 35 वैज्ञानिक दिन रात कार्य करते हैं।

नासा का ज्ञान करेंगे इंडिया में इस्तेमाल

डॉ. सोनी का मानना है कि जो भारत में ज्ञान है वह कहीं नहीं है, पर दुनिया में क्या चल रहा है उसको भी जानना जरूरी है। यह तब संभव है जब हम बाहर जाएंगे। वहां के वैज्ञानिकों का ज्ञान समझेंगे। दोनों में क्या अंतर है, कहां पर काम करने की जरूरत है, कहां हम कमी कर गए, कैसे नए रिसर्च सफल होंगे, ये नासा की पाठशाला में ही संभव है। हमारा लक्ष्य है कि कुछ वर्षों तक अमरीका में सन पर रिसर्च करें। इसके बाद लौटकर इंडिया में इस्तेमाल करेंगे।

पिता गांव से आए शहर, बेटी पहुंची सात समुंदर पार

बातचीत में कहा कि पिता सिंहपुर के नजदीक रौड़ गांव से निकलकर सतना शहर आए। वे डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर बन गए। 1994 में निधन के बाद पेंशन से मां ने 7 संतानों को पाला। फैमिली स्थिति सही न होने पर सरकारी विद्यालय से स्कूलिंग और उच्च शिक्षा प्राप्त की। कहा कि सफल होने के लिए जरूरी नहीं कि आप मैट्रो शहर अथवा आइआइटी व आइआइएम से ही पढ़ें। हमारे पिता गांव की गलियों से निकलकर शहर आए थे। मैं आज सात समुंदर पार पहुंच गई। इसमे मां के साथ भाई व बहनों का योगदान रहा है।