अभिजीत अय्यर मित्रा का कॉलम: ट्रम्प ने टैरिफ लगाने में दोस्तों और दुश्मनों का ख्याल रखा है h3>
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4 घंटे पहले
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अभिजीत अय्यर मित्रा,सीनियर फेलो, आईपीसीएस
ट्रम्प द्वारा चीन पर 104 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद अधिकांश विश्लेषक कह रहे हैं कि ट्रम्प को आर्थिक मामलों की समझ नहीं है और वे मनमानी कर रहे हैं। जबकि हकीकत शायद इसके उलट हो! ट्रम्प परोक्ष हमलों के बड़े उस्तादों में से एक हैं- जिसमें वास्तविक प्रहार को बहुत सारे गलत दिशा-निर्देशों द्वारा छिपाया जाता है।
ये टैरिफ भी ट्रम्प द्वारा सार्वजनिक रूप से बताई गई बातों के पीछे अपने वास्तविक मकसद को छिपाने का क्लासिक मामला हैं। लेकिन ट्रम्प के दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही है, इसे समझने के लिए हमें पहले यह समझने की जरूरत है कि ट्रम्प किसे दुश्मन मानते हैं और किस क्रम में।
ट्रम्प के पहले कार्यकाल में यूरोपीय देशों, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय तंत्र, अंतरराष्ट्रीय नौकरशाही और उनसे प्रभावित अमेरिकी नेता-नौकरशाहों ने बहुत अड़चनें डाली थीं और इस बार ट्रम्प उन्हीं पर सबसे पहले हमला कर रहे हैं। ट्रम्प के इन अभूतपूर्व टैरिफ के दो मकसद हैं- सबसे पहले तो ये विश्व व्यापार संगठन और उसकी बहुपक्षीय संधियों पर प्रहार करते हैं, जो पिछले 30 वर्षों में निर्मित वित्तीय नौकरशाही का आधार थे। वास्तव में, इनमें से कोई भी नेता या नौकरशाह वो सब करने में सक्षम नहीं हैं, जिसका उन्होंने वादा किया था।
ये संस्थाएं स्टॉक ट्रेडिंग हाउस और फाइनेंसरों से भी जुड़ी हुई थीं। इन टैरिफ से बाजार में जो गिरावट आई है, उसने दोनों गणनाओं को उलट दिया है- जो बाजार में गिरावट पर दांव लगा रहे थे और जो बाजार की स्थिरता पर दांव लगा रहे थे (ब्लैकरॉक्स और सोरोस), उनकी भविष्यवाणियां अब काम नहीं कर रही हैं।
दूसरा कारण है अमेरिका द्वारा लिया गया भारी कर्ज- जिसका अधिकांश हिस्सा इन्हीं वैश्विक वित्तीय नेटवर्कों से लिया गया था। टैरिफ के कारण होने वाली मुद्रास्फीति दो काम करेगी- वे कर्ज (क्योंकि डॉलर का मूल्य घटेगा) और ब्याज दरों दोनों को कम कर देंगे। फेडरल रिजर्व को ब्याज दरों में नाटकीय रूप से कटौती करनी होगी।
मूल रूप से अगर अमेरिका पर 36 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है, तो डॉलर के मूल्य-ह्रास के आधार पर, अमेरिका उस कर्ज के सोने के मूल्य में बहुत अधिक कटौती कर सकता है। साथ ही ब्याज दरों में गिरावट से ये ऋण लगभग ब्याज-मुक्त हो सकते हैं।
संक्षेप में, ट्रम्प जो करने की कोशिश कर रहे हैं, वह है कर्ज के मूल्य और उस पर देय ब्याज को काफी कम कर देना। इन टैरिफ का एक व्यक्तिगत पहलू भी है- चेतावनी। ग्लोबल फाइनेंस ट्रम्प के सहयोगियों जैसे इलॉन मस्क की टेस्ला को निशाना बना रहे हैं और उसके बाजार-मूल्य को गिरा रहे हैं। बदले में ट्रम्प उनके साथ भी ऐसा ही कर रहे हैं।
हालांकि भारत पर 27% टैरिफ लगाया गया है, लेकिन अमेरिका को भारतीय निर्यात का अधिकांश हिस्सा- जैसे फार्मास्यूटिकल्स, मशीन टूल्स आदि को टैरिफ से बाहर रखा गया है। टेक्सटाइल्स को शामिल किया गया है, लेकिन देखें कि बांग्लादेशी और चीनी वस्त्रों पर 34 और 37 प्रतिशत टैरिफ लगाया जा रहा है।
इससे भारत, बांग्लादेश और चीन की 10 डॉलर की शर्ट की कीमत क्रमशः 12.6, 13.4 और 13.7 डॉलर हो जाएगी। इससे भी भारत को एक महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलेगी, जबकि अतीत में वह इन दोनों देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं था।
चीन के लिए इससे भी बदतर बात यह है कि ट्रम्प ने पिछले महीने ही ऑटोमोटिव जैसे कुछ चीनी उत्पादों पर अलग से 20% टैरिफ लगाया था। इसका मतलब यह है कि चीन को इन उत्पादों को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अपने डॉलर रिजर्व की एक बड़ी राशि सब्सिडी देने में खर्च करनी होगी।
दूसरे, यह चीन से मैन्युफैक्चरिंग को छीन लेता है, क्योंकि जो देश आगे की बिक्री के लिए चीनी माल को प्रोसेस करते हैं, उन्हें मैन्युफैक्चरिंग के लिए कम टैरिफ वाले देशों को खोजने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। दूसरे शब्दों में, ट्रम्प न केवल चीन के मैन्युफैक्चरिंग-आधार को नष्ट कर रहे हैं, उसकी वित्तीय गहराई में भी पलीता लगा रहे हैं।
बांग्लादेश के मामले में तो टैरिफ का असर और स्पष्ट है। बांग्लादेश के निर्यात में टेक्सटाइल्स का हिस्सा 80% है। ऐसे में ये टैरिफ न केवल बांग्लादेश की निर्यात अर्थव्यवस्था को सीधे तौर पर नष्ट कर देंगे, बल्कि उसकी राजस्व कमाने की क्षमता भी समाप्त हो जाएगी। बांग्लादेश की जो थोड़ी बहुत क्षमता बचेगी, वह भारतीय वस्त्रों से अधिक महंगी होगी। चीन और बांग्लादेश की तुलना में भारत पर टैरिफ का असर कम पड़ेगा। ट्रम्प ने टैरिफ लगाने में अपने दोस्तों-दुश्मनों का ख्याल रखा है।
ट्रम्प के दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही है, इसे समझने के लिए हमें पहले यह समझना होगा कि ट्रम्प किसे अपना दुश्मन मानते हैं और किस क्रम में। भारत के बजाय चीन या बांग्लादेश पर उनके टैरिफ का ज्यादा असर होने वाला है। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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अभिजीत अय्यर मित्रा,सीनियर फेलो, आईपीसीएस
ट्रम्प द्वारा चीन पर 104 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद अधिकांश विश्लेषक कह रहे हैं कि ट्रम्प को आर्थिक मामलों की समझ नहीं है और वे मनमानी कर रहे हैं। जबकि हकीकत शायद इसके उलट हो! ट्रम्प परोक्ष हमलों के बड़े उस्तादों में से एक हैं- जिसमें वास्तविक प्रहार को बहुत सारे गलत दिशा-निर्देशों द्वारा छिपाया जाता है।
ये टैरिफ भी ट्रम्प द्वारा सार्वजनिक रूप से बताई गई बातों के पीछे अपने वास्तविक मकसद को छिपाने का क्लासिक मामला हैं। लेकिन ट्रम्प के दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही है, इसे समझने के लिए हमें पहले यह समझने की जरूरत है कि ट्रम्प किसे दुश्मन मानते हैं और किस क्रम में।
ट्रम्प के पहले कार्यकाल में यूरोपीय देशों, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय तंत्र, अंतरराष्ट्रीय नौकरशाही और उनसे प्रभावित अमेरिकी नेता-नौकरशाहों ने बहुत अड़चनें डाली थीं और इस बार ट्रम्प उन्हीं पर सबसे पहले हमला कर रहे हैं। ट्रम्प के इन अभूतपूर्व टैरिफ के दो मकसद हैं- सबसे पहले तो ये विश्व व्यापार संगठन और उसकी बहुपक्षीय संधियों पर प्रहार करते हैं, जो पिछले 30 वर्षों में निर्मित वित्तीय नौकरशाही का आधार थे। वास्तव में, इनमें से कोई भी नेता या नौकरशाह वो सब करने में सक्षम नहीं हैं, जिसका उन्होंने वादा किया था।
ये संस्थाएं स्टॉक ट्रेडिंग हाउस और फाइनेंसरों से भी जुड़ी हुई थीं। इन टैरिफ से बाजार में जो गिरावट आई है, उसने दोनों गणनाओं को उलट दिया है- जो बाजार में गिरावट पर दांव लगा रहे थे और जो बाजार की स्थिरता पर दांव लगा रहे थे (ब्लैकरॉक्स और सोरोस), उनकी भविष्यवाणियां अब काम नहीं कर रही हैं।
दूसरा कारण है अमेरिका द्वारा लिया गया भारी कर्ज- जिसका अधिकांश हिस्सा इन्हीं वैश्विक वित्तीय नेटवर्कों से लिया गया था। टैरिफ के कारण होने वाली मुद्रास्फीति दो काम करेगी- वे कर्ज (क्योंकि डॉलर का मूल्य घटेगा) और ब्याज दरों दोनों को कम कर देंगे। फेडरल रिजर्व को ब्याज दरों में नाटकीय रूप से कटौती करनी होगी।
मूल रूप से अगर अमेरिका पर 36 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है, तो डॉलर के मूल्य-ह्रास के आधार पर, अमेरिका उस कर्ज के सोने के मूल्य में बहुत अधिक कटौती कर सकता है। साथ ही ब्याज दरों में गिरावट से ये ऋण लगभग ब्याज-मुक्त हो सकते हैं।
संक्षेप में, ट्रम्प जो करने की कोशिश कर रहे हैं, वह है कर्ज के मूल्य और उस पर देय ब्याज को काफी कम कर देना। इन टैरिफ का एक व्यक्तिगत पहलू भी है- चेतावनी। ग्लोबल फाइनेंस ट्रम्प के सहयोगियों जैसे इलॉन मस्क की टेस्ला को निशाना बना रहे हैं और उसके बाजार-मूल्य को गिरा रहे हैं। बदले में ट्रम्प उनके साथ भी ऐसा ही कर रहे हैं।
हालांकि भारत पर 27% टैरिफ लगाया गया है, लेकिन अमेरिका को भारतीय निर्यात का अधिकांश हिस्सा- जैसे फार्मास्यूटिकल्स, मशीन टूल्स आदि को टैरिफ से बाहर रखा गया है। टेक्सटाइल्स को शामिल किया गया है, लेकिन देखें कि बांग्लादेशी और चीनी वस्त्रों पर 34 और 37 प्रतिशत टैरिफ लगाया जा रहा है।
इससे भारत, बांग्लादेश और चीन की 10 डॉलर की शर्ट की कीमत क्रमशः 12.6, 13.4 और 13.7 डॉलर हो जाएगी। इससे भी भारत को एक महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलेगी, जबकि अतीत में वह इन दोनों देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं था।
चीन के लिए इससे भी बदतर बात यह है कि ट्रम्प ने पिछले महीने ही ऑटोमोटिव जैसे कुछ चीनी उत्पादों पर अलग से 20% टैरिफ लगाया था। इसका मतलब यह है कि चीन को इन उत्पादों को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अपने डॉलर रिजर्व की एक बड़ी राशि सब्सिडी देने में खर्च करनी होगी।
दूसरे, यह चीन से मैन्युफैक्चरिंग को छीन लेता है, क्योंकि जो देश आगे की बिक्री के लिए चीनी माल को प्रोसेस करते हैं, उन्हें मैन्युफैक्चरिंग के लिए कम टैरिफ वाले देशों को खोजने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। दूसरे शब्दों में, ट्रम्प न केवल चीन के मैन्युफैक्चरिंग-आधार को नष्ट कर रहे हैं, उसकी वित्तीय गहराई में भी पलीता लगा रहे हैं।
बांग्लादेश के मामले में तो टैरिफ का असर और स्पष्ट है। बांग्लादेश के निर्यात में टेक्सटाइल्स का हिस्सा 80% है। ऐसे में ये टैरिफ न केवल बांग्लादेश की निर्यात अर्थव्यवस्था को सीधे तौर पर नष्ट कर देंगे, बल्कि उसकी राजस्व कमाने की क्षमता भी समाप्त हो जाएगी। बांग्लादेश की जो थोड़ी बहुत क्षमता बचेगी, वह भारतीय वस्त्रों से अधिक महंगी होगी। चीन और बांग्लादेश की तुलना में भारत पर टैरिफ का असर कम पड़ेगा। ट्रम्प ने टैरिफ लगाने में अपने दोस्तों-दुश्मनों का ख्याल रखा है।
ट्रम्प के दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही है, इसे समझने के लिए हमें पहले यह समझना होगा कि ट्रम्प किसे अपना दुश्मन मानते हैं और किस क्रम में। भारत के बजाय चीन या बांग्लादेश पर उनके टैरिफ का ज्यादा असर होने वाला है। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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