अब बाघों की गर्जना नहीं ऑर्गेनिक खेती बनेगी ‘धनिया’ की पहचान | Now the roar of tigers will become organic farming, the identity of ‘ | Patrika News h3>
यहां के ग्रामीणों ने परंपरागत खेती छोड़ इस साल कोदो, मक्का, अरहर एवं मूंगफली की ऑर्गेनिक खेती शुरू की है। जंगल की घनी बादियों के बीच खेतों में लहलहाती देशी अनाज कोदो की फसल इस गांव को नई पहचान दे रही है। दरअसल, उचेहरा विकासखंड का आदिवासी गांव धनिया अभी तक सिर्फ बाघ व खूंखार जंगली जानवरों की चहलकदमी के लिए जाना जाता था। अब इस गांव की पहचान ऑर्गेनिक खेती से होगी।
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धनिया गांव के भ्रमण के दौरान आदिवासी परिवारों की हालत देख इन्हें परंपरागत खेती से जोड़ने गांव को गोद लिया। बीज उपलब्ध कराया। आदिवासी किसान ऑर्गेनिक खेती से जुड़ गए हैं। अब इनकी फसल को बाजार उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। शासन ने ध्यान दिया तो धनिया गांव देशभर में ऑर्गेनिक खेती के लिए जाना जाएगा।
धनिया गांव के आदिवासी दलपत सिंह बताते हैं कि पहली बार उनकी गांव को किसी योजना का लाभ मिला है। ऊबड़ खाबड़ जमीन में खेती न होने के कारण 300 की आबादी वाले गांव के आदिवासी परिवार खेती छोड़कर लकड़ी काटने और मजदूरी को रोजगार बना लिया था।
संभागीय कृषि यंत्री सतना राजेश तिवारी ने बताया कि इस साल कृषि अभियांत्रिकी विभाग ने उन्हें खेती से जोड़ा तो गांव अधिकांश परिवार मजदूरी छोड़ फिर खेती करना शुरू कर दिए हैं। कृषि यंत्रों से 61 एकड़ में कोदो, मक्का, अरहर एवं मूंगफली की लाइन विधि से बोवनी कराई है।
यहां के ग्रामीणों ने परंपरागत खेती छोड़ इस साल कोदो, मक्का, अरहर एवं मूंगफली की ऑर्गेनिक खेती शुरू की है। जंगल की घनी बादियों के बीच खेतों में लहलहाती देशी अनाज कोदो की फसल इस गांव को नई पहचान दे रही है। दरअसल, उचेहरा विकासखंड का आदिवासी गांव धनिया अभी तक सिर्फ बाघ व खूंखार जंगली जानवरों की चहलकदमी के लिए जाना जाता था। अब इस गांव की पहचान ऑर्गेनिक खेती से होगी।
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धनिया गांव के आदिवासी दलपत सिंह बताते हैं कि पहली बार उनकी गांव को किसी योजना का लाभ मिला है। ऊबड़ खाबड़ जमीन में खेती न होने के कारण 300 की आबादी वाले गांव के आदिवासी परिवार खेती छोड़कर लकड़ी काटने और मजदूरी को रोजगार बना लिया था।
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