अफसरों की तरह होगा कांग्रेस जिलाध्यक्षों का रिव्यू: सिर्फ बीजेपी को हराना नहीं RJD को भी टक्कर देना चाहती है कांग्रेस, अल्लावरू का नया प्लान – Bihar News h3>
अफसरों की तरह बिहार कांग्रेस अपने जिलाध्यक्षों की रिव्यू करेगी। हर 15 दिन पर उनके काम-काज का लेखा-जोखा देखा जाएगा।
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कांग्रेस की इस सोच के पीछे मकसद 6 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में ना सिर्फ BJP को हराना है, बल्कि सहयोगी RJD को टक्कर देना भी है।
प्रदेश कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने इसके लिए बाकायदा नियम बनाया है और इसे सख्ती से पालन करने का आदेश दिया है।
जल्द बनेगी जिला कमेटी
गुरुवार को पार्टी कार्यालय में जिला अध्यक्षों की मीटिंग में प्रदेश प्रभारी अल्लावारु ने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी सुपर फास्ट स्पीड ट्रेन की तरह चल रही है और जो लोग इसके साथ नहीं चल सकते वे प्लेटफॉर्म पर उतर जाएं।’
उन्होंने जिला, प्रखंड स्तर पर होने वाले कार्यक्रमों का हिसाब तो लिया ही जिला कमेटी का गठन जल्द से जल्द करने के लिए नाम भी मांगे। बूथ लेवल तक कमेटी तैयार करने का टास्क दिया। साथ ही कांग्रेस नेताओं को घर-घर जाकर कांग्रेस का झंडा लगाने का टास्क दिया गया था।
केंद्र सरकार के जातीय जनगणना कराने के ऐलान के बाद पटना में खुशी मनाते कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता।
हर 15 दिन पर रिव्यू मीटिंग
अल्लावारु ने कहा, ‘जिला अध्यक्ष और जिला प्रभारी जिम्मेदारियों का एहसास करें। यह एहसास उनके कार्यों की बदौलत जमीन पर दिखना चाहिए। खानापूर्ति नहीं करनी है। पिछड़ों, दलितों, अतिपिछड़ों, महिलाओं को कांग्रेस से जोड़ें। सब लोग अपने काम का ब्योरा दें। बैठक में जिला की समीक्षात्मक रिपोर्ट पेश की गई और साथ ही जरूरी सुधार के निर्देश दिए गए। अब हर 15 दिनों पर रिव्यू मीटिंग होगी।
औरंगाबाद जिला अध्यक्ष ने दिया इस्तीफा
औरंगाबाद जिला अध्यक्ष राकेश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। वह 2010 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और युवा कांग्रेस के जिला महासचिव व जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनकी गिनती निखिल कुमार के करीबी नेताओं में होती है।
जानकारी है कि कांग्रेस ने औरंगाबाद में कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाया है। राकेश कुमार का कार्यकारी अध्यक्ष महेन्द्र यादव से कॉर्डिनेशन नहीं बन पा रहा था। दोनों के बीच तनातनी की स्थिति थी। इस कारण ही उन्होंने इस्तीफा दिया है।
वहीं, इस्तीफे के सवाल पर प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने कहा, ‘वे पार्टी को समय नहीं दे पा रहे थे। कई जगहों पर कार्यकारी अध्यक्ष इसलिए बनाया गया है कि सेकेंड लाइन लीडरशिप तैयार की जा सके।’
बता दें, कांग्रेस ने 40 जिलाध्यक्षों में 14 सवर्ण, 5 दलित, 6 मुस्लिम को मौका दिया है। इसमें 19 को रिपीट किया गया है। 21 नए चेहरे आए हैं। सोशल इंजीनियरिंग पर कांग्रेस का पूरा फोकस है। अखिलेश प्रसाद सिंह अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद कई महत्वपूर्ण बैठकों में दिख नहीं रहे हैं।
फील्ड में जाएं कांग्रेस नेता
बैठक में अल्लावारु ने निचले स्तर के नेताओं से साफ शब्दों में कहा कि, क्षेत्र में लोगों से मिलें, सदाकत आश्रम में चेहरा दिखाने से जरूरी है क्षेत्र में काम करना। क्षेत्र में काम करें और काम का हिसाब अगली बैठक में लेकर आएं।
प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम कहते हैं, ‘बैठक इसलिए महत्वपूर्ण थी कि पार्टी के फॉर्मेट को नए जिला अध्यक्षों को समझना जरूरी था। अध्यक्षों के हेडक्वार्टर को सीधे वार रूम से जोड़ दिया गया है। 40 जिले के लिए अलग-अलग टेबल, अलग-अलग कंप्यूटर हैं। हर जिला के लिए अलग-अलग नंबर दिए गए हैं।’
‘हर घर झंडा कार्यक्रम के तहत एक व्यक्ति अगर 100 लोगों के घर में झंडा लगाता है तो उसका फोटो भेजेगा और सीधे रिपोर्टिंग होगी। सबकी समीक्षा होगी। नई टेक्नोलॉजी में नए जिलाध्यक्षों को थोड़ी दिक्कत हो रही है। पश्चिम चंपारण और पूर्वी चंपारण का प्रदर्शन अच्छा है।’
कृष्णा की सबसे बड़ी चुनौती- कांग्रेस को पॉकेट पार्टी के दाग से मुक्ति दिलाना
कृष्णा अल्लावरु के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस को पॉकेट पार्टी की छवि से बाहर निकालना होगा। फिलहाल बिहार में आम धारणा है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर कैंडिडेट सिलेक्शन तक सबकुछ लालू करते हैं। जो राजद सुप्रीमो चाहते हैं कांग्रेस के भीतर वही होता है।
क्या लालू जैसे खांटी नेता के सामने अल्लावरू अपनी बात मजबूती से रख पाएंगे? इस सवाल पर सीनियर जर्नलिस्ट आदेश रावल कहते हैं कि,
‘इस पर फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। बिहार जैसे राज्य में I.N.D.I.A. गठबंधन की जगह अब भी UPA गठबंधन है। ऐसे में ये उनके लिए पॉलिटिकल लिटमस टेस्ट होगा। वे इसे कैसे डील कर पाते हैं।’
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