‘अपना घर’ की वीरांगनाओं को सलाम: बेरहमी के विरुद्ध युद्ध के ये निशान देखिए और सोचिए, क्या हम सच में इंसान हैं! h3>
हैवानियत की शिकार महिलाओं का ‘अपना घर’
देश की राजधानी दिल्ली के भीड़भाड़ वाले इलाके जंगपुरा स्थित ‘अपना घर’ में दूर-दराज के असम और बिहार के साथ-साथ पास के हरियाणा से भी आई वीरांगनाओं का निवास है। घर से दूर यह घर एक पीड़ित महिला ने इस सोच के साथ बनाया था उनकी जैसी सतायी हुई महिलाओं को कभी ना खत्म होने वाली मनोवैज्ञानिक, कानूनी और सामाजिक लड़ाइयां अकेले नहीं लड़नी पड़े। साथ ही, उन्हें शैक्षिक या रोजगार संबंधी समस्याओं जूझने में भी किसी का सहारा मिलता रहे। अमूमन अपनों की बेरहमी की ही शिकार इन महिलाओं की सभी समस्याओं का एक ही छत के नीचे समाधान की कोशिश वाकई सराहनीय है।
दुनिया ने सुनीं इन महिलाओं पर अत्याचार की कहानियां
इन महिलाओं ने अपने जख्मों के साथ जो कहानियां सुनाई हैं, वे वैश्विक मंच पर सुनी गईं। 25 वर्षीय रेशमा बानो कुरैशी का ही उदाहरण ले लीजिए। उन्होंने वर्ष 2017 में न्यूयॉर्क फैशन वीक में रैंप वॉक किया- भीड़ की नजरों में नजरें मिलाते हुए, मुस्कुराते हुए। मुंबई की रेशमा पर उत्तर प्रदेश के अपने गांव में अपने बहनोई ने ही तेजाब फेंक दिया था। तब वह सिर्फ 17 साल की थी। लेकिन रेशमा रुकीं नहीं और आठ साल बाद वो दुनिया के फैशन की राजधानियों में से एक न्यूयॉर्क में सुर्खियों में थीं जहां बेदाग त्वचा, यौवन और सौंदर्य को सराहा जाता है। रेशमा उन 16 महिलाओं में शामिल थीं, जो शनिवार को देश की राजधानी दिल्ली में ‘सौंदर्य, समाज और एसिड हमले’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी के समापन समारोह में भाग लिया था। वो सभी महिलाएं एक प्रतीकात्मक रैंप वॉक में भाग लेने के दौरान रूप-रंग से परे सुंदरता को परिभाषित करने को एक साथ आईं।
दिल्ली के ‘अपना घर’ में तेजाब हमलों में बच गईं महिलाएं।
जरा सोचिए, क्या सच में इंसान हैं हम?
रेशमा के साथ रैंप पर बिहार की रीमा कुमारी थीं। जमाने से उनका संघर्ष तो उनके चेहरे पर तेजाब का दाग लगने से पहले ही शुरू हो गया था। पिता की मृत्यु के बाद उन्हें 13 साल की उम्र में शादी करने को मजबूर किया गया। कच्ची उम्र में ससुराल गईं तो वहां उन्हें कथित घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा। सोचिए जिस बच्ची की शादी ही इस उम्मीद में कराई गई कि पिता का साया सिर से उठने के बाद पति का संरक्षण मिल जाएगा, उसे ससुराल में उत्पीड़न झेलना पड़ा। रीमा एक दिन पति को छोड़कर मां के पास लौट आई। दुनिया की कितनी बेरहम हो सकती है, इसका अंदाजा लगाइए। इधर, रीमा के पिता की मृत्यु के बाद चाचा की नजर भाई की संपत्ति पर गड़ गई। वो रीमा और उसकी मां को किसी तरह परिवार से बेदखल करना चाहते थे। इस कारण ससुराल से भागी रीमा पर तेजाब फेंककर उसे मरने के लिए छोड़ दिया। रीमा की उम्र अभी 24 वर्ष है।
पीड़ित महिलाओं की हौसलाआफजाई की जुगत
ललित होटल में संगोष्ठी का आयोजन ब्रेव सोल्स फाउंडेशन की ओर से किया गया था, जिसका नेतृत्व एसिड अटैक सर्वाइवर शाहीन मलिक ने किया था। ये वही महिला हैं जिन्होंने ‘अपना घर’ की स्थापना की। उनके फाउंडेशन ने ही इस तरफ ध्यान दिलाया कि कैसे दुकानों में खुलेआम तेजाब बेचे जा रहे हैं। एसिड अटैक के पीड़ित एसिड की खुली बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध चाहते हैं। इनमें कई तेजाब के असर में अपनी शारीरिक क्षमता लगभग खो चुके हैं।
‘अपना घर’ की स्थापना के दो साल ही हुए हैं। यह महज एक आश्रय स्थल नहीं बल्कि उजड़ी जिंदगी को फिर से संवारने के साथ-साथ यह सुनिश्चित किया जाता है कि जिंदगी उजाड़ने वाले के खिलाफ जंग जारी रहे। इसके लिए पीड़िताओं को इलाज के साथ-साथ कानूनी सहायता की जरूरत होती है। अपना घर में रह रही महिलाओं का सबसे ज्यादा फायदा मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक स्तर पर होता है। जब वो देखती हैं कि अकेली वो ही नहीं, कई अन्य भी हैं जिन्हें जमाने के बेदर्दी का सामना करना पड़ा है तो उन्हें जीने का सबब मिल जाता है। वो एक-दूसरे की हिम्मत बनती हैं। एक वो दिन था जब हमले के बाद इन महिलाओं ने
अपने-अपने घरों से आईने हटाए दिए थे और आज वो दिन है जब वो अपने बदले चेहरे और शरीर को स्वीकार कर लिया है। यह सफर वाकई बहुत लंबा है।
तेजाब हमले की एक पीड़िता ने ही बनाया अपना घर
शाहीन मलिक की वर्ष 2009 में तेजाब हमले के बाद दुनिया बदल गई थी। उनका अब भी इलाज चल रहा है। उन्होंने कहा, ‘एसिड अटैक में जिंदा बच गए अधिकांश लोगों को 10 से 15 सर्जरी से गुजरना पड़ता है, जिनकी लागत उन्हें सरकारों से मिलने वाले 3 से 5 लाख रुपये के मुआवजे से कहीं अधिक होती है।’ उन्होंने कहा कि इलाज में महीनों और कई बार वर्षों लग सकते हैं। तब महिलाओं को वहां एक आश्रय स्थल की जरूरत होती है जहां से वो आसानी से इलाज करवा सकें। शाहीन ने कहा, ‘अपना घर इन्हीं चिंताओं को दूर करने की एक पहल है। इससे पहले, तेजाब हमले के शिकार लोग अस्पतालों के पास खुले आसमान के नीचे में या किराए के कमरों में रहते थे जिसका खर्च उठाना उनके लिए असंभव सा होता है।’
बेदर्द जमाने का कोई दायरा नहीं, जिधर देखो वहीं बेरहमी
जुलाई 2021 से असम, छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में तेजाब हमलों से बचे लगभग 40 लोग ‘अपना घर’ में रह रहे हैं। मलिक ने कहा, ‘ये लोग जब तक चाहें, यहां रह सकते हैं। हमारा लक्ष्य उन्हें उनकी सभी चिकित्सा, कानूनी, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, शैक्षिक और आजीविका की जरूरतें पूरा करने का प्रयास है।’ जब हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (ToI) ने ‘अपना घर’ का दौरा किया, तो वहां की एक प्रभारी रेशमा ने कहा कि यह ऐसी जगह है जहां वो नई जिंदगी ठीक से गुजार सकती हैं। बिहार के सीवान की एक लड़की दीपा ने कहा, ‘हम यहां खूब मस्ती करते हैं।’
एक ड्रॉइंग रूम, बढ़िया किचन, बेडरूम्स और सीखने-सिखाने की जगह वाली एक जगह… अपना घर एक मध्यम वर्ग के परिवार के आशियाने की तरह दिखता है। अभी यहां 10 महिलाएं एक साथ खाना बनाती हैं, किराने की खरीदारी और भोजन के लिए जाती हैं, लेकिन तभी जब अपने इलाज, कानूनी सहायता, अन्य परामर्श और पढ़ने से समय मिलता है।
पति के दोस्त की एकतरफा आशिकी और…
एसिड अटैक ने 35 वर्षीय हसना बेगम की एक आंख की रोशनी छीन ली थी। वो इलाज के लिए पिछले सप्ताह असम से दिल्ली आईं। वर्ष 2014 में उनके पति के दोस्त ने उनके चेहरे पर तेजाब फेंक दिया था क्योंकि हसना ने उसके प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। ‘अपना घर’ ने उन्हें अपने बेटे को असम में छोड़कर अकेले दिल्ली आने का साहस दिया। हसना ने कहा, ‘जब बच्चे घर पर होते तो पड़ोसी मुझे अपने घर नहीं जाने देते थे, यह कहते हुए कि बच्चे मुझसे डरते हैं। यहां अपना घर में इस तरह की कोई रोक-टोक नहीं है।’
…और पति ने ही पिला दिया तेजाब!
इनमें से एक सोनीपत की रश्मि भाटिया भी हैं। उनका बाहरी हिस्सा बेदाग है, लेकिन खाने की नली को की सर्जरी करनी पड़ी। 2019 में उनके पति ने उन्हें तेजाब पीने के लिए मजबूर कर दिया था। बस कल्पना कीजिए, उस दर्द का जब खाने की नली में तेजाब उतरा होगा। रश्मि को नरम खाना खा पाने तक की स्थिति में आने में दो साल का इलाज और सर्जरी से गुजरना पड़ा। रश्मि अपने पति के खिलाफ मुकदमा लड़ रही हैं। उनके लिए ‘अपना घर’ का मतलब सुरक्षा है। यहां जमाने के दिए दर्द का गहना पहनी महिलाओं से हिम्मत मिलती है, उन्हें न्याय की प्रतीक्षा करने की शक्ति मिलती है।