अनिल जोशी का कॉलम: 2025 में भी गर्मी के तेवर वही रहेंगे, जो 2024 में थे h3>
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- Anil Joshi’s Column The Heat Will Remain The Same In 2025 As It Was In 2024
22 घंटे पहले
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डॉ. अनिल जोशी पद्मश्री से सम्मानित पर्यावरणविद्
अब यह खबर दुनिया में बिल्कुल भी चौंकाने वाली नहीं होगी कि 2025 भी उतना ही गर्म साबित होने जा रहा है, जितना कि 2024 था। हमने गत वर्ष में ही इसका अनुभव कर लिया है कि चरम-गर्मियां कैसी हो सकती हैं। एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने बताया है कि 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था, बल्कि यह पेरिस समझौते के तहत निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को भी तोड़ता हुआ दिखा।
यह अध्ययन वैज्ञानिकों के एक सामूहिक समूह ने किया, जिसमें पाया गया कि आने वाले समय में हम शायद अब तीव्र तापमान से नहीं बच पाएंगे, जो हमारी अपनी ही देन है। इसे ह्यूमन-इंड्यूस्ड यानी मानव-जनित तापमान कहा जा सकता है। यह अध्ययन कई संस्थाओं ने मिलकर किया और इसे मुख्य रूप से क्लाइमेट सर्विस चेंज ने जारी किया।
रिपोर्ट में दुनिया भर के आंकड़ों को इकट्ठा कर एक सामूहिक विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है कि 2025 में भी गर्मी के तेवर वही रहेंगे, जो 2024 में थे। रिपोर्ट में नासा, नोवा, यूके, बर्कले और वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन जैसे संगठनों ने सहयोग किया। उसने स्पष्ट किया कि बाद के वर्षों की परिस्थितियां काफी हद तक 2025 के हालात पर निर्भर करेंगी।
यह विडम्बना है कि पेरिस समझौते और कई सीओपी सम्मेलनों के बावजूद विश्व के पर्यावरणीय हालात में बड़ा सुधार नहीं हुआ। दुनिया के हर देश ने अपनी पारिस्थितिकी सीमाओं का उल्लंघन किया है। बड़ा सवाल उस पुराने तापक्रम का भी है, जिससे आज प्रचंड गर्मियों की शुरुआत हुई है और जो विकसित देशों की देन रही हैं। विकसित देश न तो इसको मानने लिए तैयार दिखते हैं और न ही इसे स्वीकार कर कोई सामूहिक कदम उठाना चाहते हैं।
10 जनवरी को जारी इस रिपोर्ट ने दुनिया को यह संदेश दिया है कि 2025 के लिए फिर प्रचंड ताप झेलने के लिए तैयार रहें। सवाल ये उठता है कि अगर 2025 में भी वैसी ही परिस्थितियां बनी रहीं, तो क्या होगा? वनों की आग, पानी का संकट और मिट्टी की स्थिति और खराब हो सकती है। इसके अलावा 2024 में दुनिया ने कई आपदाएं झेली हैं।
कोई भी देश ऐसा नहीं बचा, जहां बढ़ती गर्मी की मार न पड़ी हो। विभिन्न नामों के समुद्री तूफानों ने जीवन अस्त-व्यस्त तो किया ही, पर साथ में अपने देश में मानसून भी गड़बड़ाया। हालात ये थे कि कहां कब बारिश हो जाए पता नहीं चलता था। केरल का वायनाड और हिमाचल प्रदेश के गांव-शहर तो थे ही, पर साथ में दिल्ली-मुंबई भी बार-बार डूबते रहे। लोग गर्मियों से भी मरे और बाढ़ से भी।
असल में तापक्रम पृथ्वी की कई विधाओं को नियंत्रित करता है। अत्यधिक गर्मी ने पृथ्वी व समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र को ही झकझोर दिया है। अजीब बात ये भी है कि बढ़ती गर्मी ने एसी-कूलर का भी बाजार गरमा दिया और ये जब धूम से चले तो तापक्रम और बढ़ गया। ये भी विडम्बना ही है कि गर्मी और एसी कूलर तथा शीत व हीटर एक-दूसरे के सहयोगी हो गए।
समय आ गया है कि हम सामूहिक रूप से चिंता व्यक्त करें। 2024 का अत्यधिक तापमान दुनिया को हिला चुका है, और करीब 180 देशों ने इसे सीधा महसूस किया। यदि 2025 में भी यही स्थिति रही, तो पेरिस समझौते का 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य पूरी तरह से विफल माना जाएगा और हम अपने विनाश के लिए एक कदम आगे बढ़ जाएंगे।
ये सब कुछ बहुत पहले से चल रहा है, पर तमाम गोष्ठियों के बावजूद हम किसी ठोस निर्णय पर नहीं पहुंच पाए हैं। इस तरह के सम्मेलनों के बावजूद तापमान की वृद्धि को रोकने का कोई ठोस मापदंड तय नहीं किया जा सका।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि 2024 में आई आपदाएं- तूफान, समुद्र की हलचल या एल-नीनो जैसे प्राकृतिक बदलाव- ये सब पृथ्वी और समुद्र के बढ़ते तापमान के दुष्परिणाम हैं और जिनका कारण मूल रूप से हमारी असीमित सुविधाएं व इच्छाएं हैं।
वर्ष 1850 के तापमान से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर उठना पूरे पारिस्थितिक तंत्र को संकट में डाल सकता है। इसके लिए हमारी जीवनशैली, प्रकृति का दुरुपयोग और ऊर्जा का अत्यधिक उपभोग ही मुख्य कारण हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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डॉ. अनिल जोशी पद्मश्री से सम्मानित पर्यावरणविद्
अब यह खबर दुनिया में बिल्कुल भी चौंकाने वाली नहीं होगी कि 2025 भी उतना ही गर्म साबित होने जा रहा है, जितना कि 2024 था। हमने गत वर्ष में ही इसका अनुभव कर लिया है कि चरम-गर्मियां कैसी हो सकती हैं। एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने बताया है कि 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था, बल्कि यह पेरिस समझौते के तहत निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को भी तोड़ता हुआ दिखा।
यह अध्ययन वैज्ञानिकों के एक सामूहिक समूह ने किया, जिसमें पाया गया कि आने वाले समय में हम शायद अब तीव्र तापमान से नहीं बच पाएंगे, जो हमारी अपनी ही देन है। इसे ह्यूमन-इंड्यूस्ड यानी मानव-जनित तापमान कहा जा सकता है। यह अध्ययन कई संस्थाओं ने मिलकर किया और इसे मुख्य रूप से क्लाइमेट सर्विस चेंज ने जारी किया।
रिपोर्ट में दुनिया भर के आंकड़ों को इकट्ठा कर एक सामूहिक विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है कि 2025 में भी गर्मी के तेवर वही रहेंगे, जो 2024 में थे। रिपोर्ट में नासा, नोवा, यूके, बर्कले और वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन जैसे संगठनों ने सहयोग किया। उसने स्पष्ट किया कि बाद के वर्षों की परिस्थितियां काफी हद तक 2025 के हालात पर निर्भर करेंगी।
यह विडम्बना है कि पेरिस समझौते और कई सीओपी सम्मेलनों के बावजूद विश्व के पर्यावरणीय हालात में बड़ा सुधार नहीं हुआ। दुनिया के हर देश ने अपनी पारिस्थितिकी सीमाओं का उल्लंघन किया है। बड़ा सवाल उस पुराने तापक्रम का भी है, जिससे आज प्रचंड गर्मियों की शुरुआत हुई है और जो विकसित देशों की देन रही हैं। विकसित देश न तो इसको मानने लिए तैयार दिखते हैं और न ही इसे स्वीकार कर कोई सामूहिक कदम उठाना चाहते हैं।
10 जनवरी को जारी इस रिपोर्ट ने दुनिया को यह संदेश दिया है कि 2025 के लिए फिर प्रचंड ताप झेलने के लिए तैयार रहें। सवाल ये उठता है कि अगर 2025 में भी वैसी ही परिस्थितियां बनी रहीं, तो क्या होगा? वनों की आग, पानी का संकट और मिट्टी की स्थिति और खराब हो सकती है। इसके अलावा 2024 में दुनिया ने कई आपदाएं झेली हैं।
कोई भी देश ऐसा नहीं बचा, जहां बढ़ती गर्मी की मार न पड़ी हो। विभिन्न नामों के समुद्री तूफानों ने जीवन अस्त-व्यस्त तो किया ही, पर साथ में अपने देश में मानसून भी गड़बड़ाया। हालात ये थे कि कहां कब बारिश हो जाए पता नहीं चलता था। केरल का वायनाड और हिमाचल प्रदेश के गांव-शहर तो थे ही, पर साथ में दिल्ली-मुंबई भी बार-बार डूबते रहे। लोग गर्मियों से भी मरे और बाढ़ से भी।
असल में तापक्रम पृथ्वी की कई विधाओं को नियंत्रित करता है। अत्यधिक गर्मी ने पृथ्वी व समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र को ही झकझोर दिया है। अजीब बात ये भी है कि बढ़ती गर्मी ने एसी-कूलर का भी बाजार गरमा दिया और ये जब धूम से चले तो तापक्रम और बढ़ गया। ये भी विडम्बना ही है कि गर्मी और एसी कूलर तथा शीत व हीटर एक-दूसरे के सहयोगी हो गए।
समय आ गया है कि हम सामूहिक रूप से चिंता व्यक्त करें। 2024 का अत्यधिक तापमान दुनिया को हिला चुका है, और करीब 180 देशों ने इसे सीधा महसूस किया। यदि 2025 में भी यही स्थिति रही, तो पेरिस समझौते का 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य पूरी तरह से विफल माना जाएगा और हम अपने विनाश के लिए एक कदम आगे बढ़ जाएंगे।
ये सब कुछ बहुत पहले से चल रहा है, पर तमाम गोष्ठियों के बावजूद हम किसी ठोस निर्णय पर नहीं पहुंच पाए हैं। इस तरह के सम्मेलनों के बावजूद तापमान की वृद्धि को रोकने का कोई ठोस मापदंड तय नहीं किया जा सका।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि 2024 में आई आपदाएं- तूफान, समुद्र की हलचल या एल-नीनो जैसे प्राकृतिक बदलाव- ये सब पृथ्वी और समुद्र के बढ़ते तापमान के दुष्परिणाम हैं और जिनका कारण मूल रूप से हमारी असीमित सुविधाएं व इच्छाएं हैं।
वर्ष 1850 के तापमान से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर उठना पूरे पारिस्थितिक तंत्र को संकट में डाल सकता है। इसके लिए हमारी जीवनशैली, प्रकृति का दुरुपयोग और ऊर्जा का अत्यधिक उपभोग ही मुख्य कारण हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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