अदृश्य शक्ति, रबर स्टाम्प, खेला होबे… राष्ट्रपति चुनाव में खूब दांव आजमा रहे यशवंत सिन्हा लेकिन पत्नी को भी भरोसा नहीं h3>
पटना/रांची : मौजूदा गुणा-गणित के लिहाज से राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election 2022) में द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) की जीत पक्की मानी जा रही है। विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) उनको चुनौती देने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। ये संयोग ही है कि दोनों का झारखंड कनेक्शन है। द्रौपदी मुर्मू राज्यपाल रह चुकीं हैं तो यशवंत सिन्हा का राजनीतिक करियर झारखंड में ही रहा है। मगर दोनों का फैमिली बैकग्राउंड अलग-अलग है। आइडेंटिटी पॉलिटिक्स के जमाने में यशवंत सिन्हा पर द्रौपदी मुर्मू भारी पड़ती दिख रही है। यशवंत सिन्हा की पत्नी नीलिमा सिन्हा (Nilima Sinha) को भी अपनी पति की जीत पर भरोसा नहीं है।
‘आइडेंटिटी नहीं, आइडियोलॉजी की लड़ाई’
पहचान की राजनीति (Identity Politics) को राष्ट्रपति के तौर पर द्रौपदी मुर्मू की जीत धार देगी। काफी लंबे समय से बीजेपी इस पर होमवर्क कर रही थी। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी वाली बीजेपी ऐसी आइडेंटिटी पॉलिटिक्स को खास तवज्जो दे रही है। राष्ट्रपति भवन में एक आदिवासी महिला के होने का असर पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड जैसे पूर्वी भारतीय राज्यों में दिखेगा। द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी पर यशवंत सिन्हा ने एबीपी से कहा कि ‘पूरी मानवता का ये चॉइस नहीं होता है कि हम कहां पैदा होंगे। आप कहीं पैदा हुए, मैं कहीं पैदा हुआ। ये जो आइडेंटिटी की लड़ाई राजनीति में हो रही है, मैं समझता हूं कि अपने आप में गलत है। द्रौपदी मुर्मू जी जो हैं वो एक समुदाय में पैदा हुईं। मैं भी एक समुदाय में, एक परिवार में पैदा हुआ। न उनका कंट्रोल उसके ऊपर था न मेरा कंट्रोल उसके ऊपर था। तो इसलिए उस आइडेंटिटी को प्रजातंत्र में सबसे बड़ा मुद्दा बनाना, मुझे लगता है कि गलत है। मैं साफ शब्दों में कहना चाहता हूं कि ये आइडेंटिटी की लड़ाई नहीं है। राष्ट्रपति का चुनाव आइडियोलॉजी की लड़ाई है। एक तरफ एक आइडियोलॉजी है, दूसरी तरफ दूसरी आइडियोलॉजी है। जो इसका इलेक्टोरल कॉलेज है, उसके सदस्यों को तय करना पड़ेगा कि वो इधर हैं या उधर हैं।
नीलिमा को यशवंत की जीत पर भरोसा नहीं
यशवंत सिन्हा पहचान की राजनीति में पिछड़ते दिख रहे हैं। यशवंत सिन्हा की जीत पर उनकी पत्नी नीलिमा सिन्हा को भी भरोसा नहीं है। उन्होंने मीडिया से कहा कि मेरे पति को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने से खुशी तो है लेकिन मुश्किल भी है। उन्होंने कहा कि मेरे पति साफ बोलने वाले लोगों में से हैं। उन्हें जो ठीक लगता है वहीं करते हैं। उनका कैरेक्टर मजबूत है। उनके पास उनका आत्मविश्वास है। वो गलत कामों को वो बर्दाश्त नहीं करते हैं। अपने पति की जीत पर नीलिमा सिन्हा ने कहा कि उम्मीद तो कोई खास नहीं है क्योंकि जानते हैं मेजोरिटी तो बीजेपी के साथ है। कैंडिडेट भी उन्होंने बहुत अच्छा चुना है। इसलिए मुझे कुछ खास उम्मीद नहीं है लेकिन खैर फिर भी…। देखते हैं क्या होता है। अपनी पत्नी की रिएक्शन पर यशवंत सिन्हा ने कहा कि हमारे परिवार में हर कोई स्वतंत्र मिजाज का है और अपने हिसाब से काम करते हैं। जिसकी आज सबसे ज्यादा जरूरत है। ऐसी बात नहीं कि यशवंत सिन्हा ने रिजल्ट को लेकर मंथन नहीं किया होगा। उनको भी इस बात काा पूरा अहसास होगा कि लड़ाई टफ है और हार पक्की दिख रही है। मगर वो मैदान से हटने के मूड में बिल्कुल नहीं है। उनको अदृश्य शक्तियों पर भरोसा है। उनको लगता है कि द्रौपदी मुर्मू एक रबर स्टाम्प राष्ट्रपति साबित होंगी। इसलिए देश के सांसद और विधायक उनको राष्ट्रपति चुनेंगे। खेला होने की भी यशवंत सिन्हा को पूरी उम्मीद है। मतलब क्रॉस वोटिंग के भरोसे खुद को जीत का ढांढस दे रहे हैं।
वोटों की गुणा-गणित में विपक्ष से एनडीए आगे
राष्ट्रपति चुनाव में वोटों की गुणा-गणित देखें तो सत्तारूढ़ भाजपा की अगुआई वाले NDA के पास कुल 10.79 लाख वोटों के आधे से थोड़ा कम यानी 5,26,420 है। इसी साल अप्रैल में उच्च सदन में 100 के आंकड़े पर पहुंचने वाली भाजपा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा की 57 सीटों के लिए हाल में हुए द्विवार्षिक चुनावों के बाद 95 से घटकर 91 पर आ गई। 57 सदस्यों को मिलाकर वर्तमान में उच्च सदन के कुल 232 सदस्यों में भाजपा के 95 सदस्य हैं। उसे वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल के सहयोग की दरकार थी। द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी ने खाई को पाट दिया। NDA को करीब 13,000 वोट कम पड़ रहे थे। अकले BJD के पास 31 हजार से ज्यादा वोट हैं और YSRCP के पास 43,000 से ज्यादा। बीजू जनता दल ने सपोर्ट का एलान कर दिया है। विपक्ष की तुलना में भाजपा+ की स्थिति मजबूत है। दरअसल, हाल के वर्षों में शिवसेना और अकाली दल के साथ भाजपा के रास्ते अलग हो गए। वहीं, AIADMK के सदस्य तमिलनाडु विधानसभा में घटे हैं। भाजपा ने यूपी चुनाव में फिर से सत्ता हासिल तो कर ली लेकिन उसकी संख्या घटी है। उसे राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में तुलनात्मक रूप से भी नुकसान हुआ है। हालांकि विपक्ष की तुलना में एनडीए बेहतर स्थिति में है और उसके पास बढ़त है।
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पहचान की राजनीति (Identity Politics) को राष्ट्रपति के तौर पर द्रौपदी मुर्मू की जीत धार देगी। काफी लंबे समय से बीजेपी इस पर होमवर्क कर रही थी। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी वाली बीजेपी ऐसी आइडेंटिटी पॉलिटिक्स को खास तवज्जो दे रही है। राष्ट्रपति भवन में एक आदिवासी महिला के होने का असर पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड जैसे पूर्वी भारतीय राज्यों में दिखेगा। द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी पर यशवंत सिन्हा ने एबीपी से कहा कि ‘पूरी मानवता का ये चॉइस नहीं होता है कि हम कहां पैदा होंगे। आप कहीं पैदा हुए, मैं कहीं पैदा हुआ। ये जो आइडेंटिटी की लड़ाई राजनीति में हो रही है, मैं समझता हूं कि अपने आप में गलत है। द्रौपदी मुर्मू जी जो हैं वो एक समुदाय में पैदा हुईं। मैं भी एक समुदाय में, एक परिवार में पैदा हुआ। न उनका कंट्रोल उसके ऊपर था न मेरा कंट्रोल उसके ऊपर था। तो इसलिए उस आइडेंटिटी को प्रजातंत्र में सबसे बड़ा मुद्दा बनाना, मुझे लगता है कि गलत है। मैं साफ शब्दों में कहना चाहता हूं कि ये आइडेंटिटी की लड़ाई नहीं है। राष्ट्रपति का चुनाव आइडियोलॉजी की लड़ाई है। एक तरफ एक आइडियोलॉजी है, दूसरी तरफ दूसरी आइडियोलॉजी है। जो इसका इलेक्टोरल कॉलेज है, उसके सदस्यों को तय करना पड़ेगा कि वो इधर हैं या उधर हैं।
नीलिमा को यशवंत की जीत पर भरोसा नहीं
यशवंत सिन्हा पहचान की राजनीति में पिछड़ते दिख रहे हैं। यशवंत सिन्हा की जीत पर उनकी पत्नी नीलिमा सिन्हा को भी भरोसा नहीं है। उन्होंने मीडिया से कहा कि मेरे पति को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने से खुशी तो है लेकिन मुश्किल भी है। उन्होंने कहा कि मेरे पति साफ बोलने वाले लोगों में से हैं। उन्हें जो ठीक लगता है वहीं करते हैं। उनका कैरेक्टर मजबूत है। उनके पास उनका आत्मविश्वास है। वो गलत कामों को वो बर्दाश्त नहीं करते हैं। अपने पति की जीत पर नीलिमा सिन्हा ने कहा कि उम्मीद तो कोई खास नहीं है क्योंकि जानते हैं मेजोरिटी तो बीजेपी के साथ है। कैंडिडेट भी उन्होंने बहुत अच्छा चुना है। इसलिए मुझे कुछ खास उम्मीद नहीं है लेकिन खैर फिर भी…। देखते हैं क्या होता है। अपनी पत्नी की रिएक्शन पर यशवंत सिन्हा ने कहा कि हमारे परिवार में हर कोई स्वतंत्र मिजाज का है और अपने हिसाब से काम करते हैं। जिसकी आज सबसे ज्यादा जरूरत है। ऐसी बात नहीं कि यशवंत सिन्हा ने रिजल्ट को लेकर मंथन नहीं किया होगा। उनको भी इस बात काा पूरा अहसास होगा कि लड़ाई टफ है और हार पक्की दिख रही है। मगर वो मैदान से हटने के मूड में बिल्कुल नहीं है। उनको अदृश्य शक्तियों पर भरोसा है। उनको लगता है कि द्रौपदी मुर्मू एक रबर स्टाम्प राष्ट्रपति साबित होंगी। इसलिए देश के सांसद और विधायक उनको राष्ट्रपति चुनेंगे। खेला होने की भी यशवंत सिन्हा को पूरी उम्मीद है। मतलब क्रॉस वोटिंग के भरोसे खुद को जीत का ढांढस दे रहे हैं।
वोटों की गुणा-गणित में विपक्ष से एनडीए आगे
राष्ट्रपति चुनाव में वोटों की गुणा-गणित देखें तो सत्तारूढ़ भाजपा की अगुआई वाले NDA के पास कुल 10.79 लाख वोटों के आधे से थोड़ा कम यानी 5,26,420 है। इसी साल अप्रैल में उच्च सदन में 100 के आंकड़े पर पहुंचने वाली भाजपा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा की 57 सीटों के लिए हाल में हुए द्विवार्षिक चुनावों के बाद 95 से घटकर 91 पर आ गई। 57 सदस्यों को मिलाकर वर्तमान में उच्च सदन के कुल 232 सदस्यों में भाजपा के 95 सदस्य हैं। उसे वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल के सहयोग की दरकार थी। द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी ने खाई को पाट दिया। NDA को करीब 13,000 वोट कम पड़ रहे थे। अकले BJD के पास 31 हजार से ज्यादा वोट हैं और YSRCP के पास 43,000 से ज्यादा। बीजू जनता दल ने सपोर्ट का एलान कर दिया है। विपक्ष की तुलना में भाजपा+ की स्थिति मजबूत है। दरअसल, हाल के वर्षों में शिवसेना और अकाली दल के साथ भाजपा के रास्ते अलग हो गए। वहीं, AIADMK के सदस्य तमिलनाडु विधानसभा में घटे हैं। भाजपा ने यूपी चुनाव में फिर से सत्ता हासिल तो कर ली लेकिन उसकी संख्या घटी है। उसे राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में तुलनात्मक रूप से भी नुकसान हुआ है। हालांकि विपक्ष की तुलना में एनडीए बेहतर स्थिति में है और उसके पास बढ़त है।