अडानी विवाद में टाटा-बिरला का नाम लेकर शरद पवार ने दिया क्या संदेश?
तब टाटा-बिरला की आलोचना किया करते थे: पवार
शरद पवार के बयान का विश्लेषण करें उससे पहले एनसीपी चीफ ने क्या कहा, यह बताते हैं। शरद पवार ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा, ‘एक जमाना ऐसा था कि सत्ताधारी पार्टी की आलोचना करनी हो तो हम टाटा-बिरला का नाम लेकर क्रिटिसिज्म (आलोचना) करते थे। आजकल टाटा-बिरला का नाम लेते नहीं हैं। टाटा का भी देश में योगदान है। आजकल अडानी-अंबानी का नाम लेते हैं तो उनका क्या योगदान है, इस बारे में सोचने की आवश्यकता है। दूसरा मुझे लगता है कि हमारे सामने दूसरे मुद्दे ज्यादा जरूरी हैं- बेरोजगारी, महंगाई और किसानों की समस्याएं।’
एक जमाना ऐसा था कि सत्ताधारी पार्टी की आलोचना करनी हो तो हम टाटा-बिरला का नाम लेकर क्रिटिसिज्म (आलोचना) करते थे। आजकल टाटा-बिरला का नाम लेते नहीं हैं। आजकल अंबानी-अडानी का नाम लेते हैं, उनका देश में क्या योगदान है, इस बारे में भी हमें सोचने की आवश्यकता है।
शरद पवार, अध्यक्ष, NCP
Sharad Pawar on Adani: कांग्रेस के साथी शरद पवार ने सावरकर के बाद अडानी मुद्दे पर भी साथ छोड़ा, क्या टूटने वाली है महाविकास अघाड़ी?
शरद पवार कहना क्या चाहते हैं?
शरद पवार के बयान के क्या मायने हैं? इस सवाल पर नवभारत टाइम्स के सीनियर जर्नलिस्ट अभिमन्यु शितोले का कहना है, ‘शरद पवार यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि राजनीति में अगर आपको ग्रोथ करना है तो आप राजनीतिक दलों का विरोध कीजिए, उद्योगपतियों का विरोध मत कीजिए। ऐसा इसलिए क्योंकि उद्योगपतियों का समाज के विकास में और देश के विकास में बड़ा योगदान रहा है। चाहे वह टाटा-बिरला रहे हों या अडानी-अंबानी हों। कांग्रेस की जो पुरानी सरकारें थी और इंदिरा गांधी के समय में भी टाटा-बिरला का नाम लेकर कांग्रेस को घेरते थे। आज अडानी-अंबानी में वही प्रचलन दिख रहा है।’
अभिमन्यु शितोले आगे कहते हैं, ‘कांग्रेस की सरकारों के दौर में कभी विपक्ष कहता था कि टाटा-बिरला की सरकार है क्या? इस तरह से सरकारों पर उद्योगपतियों की हितैषी और गरीबों की विरोधी होने का आरोप लगता रहा है। शरद पवार के बयान का संदर्भ इन्हीं आरोपों की बुनियाद पर टिका है कि सरकार उद्योगपतियों की ज्यादा सुनती है।’
शरद पवार यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि राजनीति में अगर आपको ग्रोथ करना है तो आप राजनीतिक दलों का विरोध कीजिए, उद्योगपतियों का विरोध मत कीजिए। कांग्रेस की जो पुरानी सरकारें थी और इंदिरा गांधी के समय में भी टाटा-बिरला का नाम लेकर कांग्रेस को विपक्षी दल घेरते थे।
अभिमन्यु शितोले, सीनियर जर्नलिस्ट, NBT
महाराष्ट्र की राजनीति में बनेंगे नए समीकरण?
शरद पवार के बयान के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में अंदरखाने कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद अडानी की कंपनियों के कथित 20 हजार करोड़ का मामला उछलकर आया है। महाराष्ट्र की सियासत के एक जानकार कहते हैं, ‘शरद पवार का स्टैंड लेना इस बात का सबूत है कि कहीं न कहीं पर्दे के पीछे महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ चल रहा है। कांग्रेस तो मैनेज हो नहीं सकती। इस समय दो ही नेता हैं, जिनको मैनेज करने की कवायद है। एक नवीन पटनायक और दूसरे शरद पवार। जिस तरह से शरद पवार ने स्टैंड रखा है, उससे आगे की बड़ी लंबी कहानी की बात होने लगी है। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि हो सकता है एनसीपी और बीजेपी की सरकार बन जाए। उसमें शरद पवार हों या माइनस शरद पवार, ऐसा भी हो सकता है। संभव है कि शरद पवार कह दें कि मैं तो टीम में नहीं हूं और अजित पवार को आगे कर दिया जाए।’
जिस तरह से शरद पवार ने स्टैंड रखा है, उससे आगे की बड़ी लंबी कहानी की बात होने लगी है। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि हो सकता है एनसीपी और बीजेपी की सरकार बन जाए। उसमें शरद पवार हों या माइनस शरद पवार, ऐसा भी हो सकता है।
महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ विश्लेषक
पवार ने इंटरव्यू में कहा- बिजली क्षेत्र में अडानी का योगदान
पवार ने एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि आजकल अडानी अंबानी पर हमला किया जा रहा है, जबकि बिजली क्षेत्र में अडानी का अहम योगदान है। शरद पवार ने यह भी साफ किया है कि उनका इंटरव्यू अडानी के बारे में नहीं था। इसमें कई विषयों के साथ अडानी के मुद्दे पर भी उनसे सवाल पूछा गया और उन्होंने इसका जवाब दिया। साथ ही पवार ने कहा कि अडानी-हिंडनबर्ग मामले में जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) जांच की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसका निष्कर्ष सत्ता पक्ष के मुताबिक रहेगा। पवार ने कहा कि मेरा मानना है कि जांच सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यों की कमिटी से कराई जाए। इसमें एक रिटायर्ड जज भी हो सकते हैं।