अखिलेश से रेस में आगे कैसे निकले तेजस्वी h3>
अखिलेश यादव को उम्र और राजनीतिक तजुर्बे, दोनों में ही तेजस्वी यादव के मुकाबले बढ़त हासिल है। अखिलेश 49 साल के होने को हैं, जबकि तेजस्वी अभी 32 के ही हुए हैं। अखिलेश साल 2000 से किसी न किसी सदन के सदस्य बनते रहे हैं, जबकि तेजस्वी का विधायक के रूप में यह दूसरा कार्यकाल है। अखिलेश लगातार पांच साल देश के सबसे बड़े राज्य यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके हैं जबकि तेजस्वी के पास महज 20 महीने ही डेप्युटी सीएम रहने का अनुभव है। लेकिन नेतृत्व की कसौटी पर अगर इन दोनों युवा नेताओं को कसा जाए तो अखिलेश पर तेजस्वी बीस साबित होते दिखते हैं। अखिलेश के 2012 में यूपी का मुख्यमंत्री बनने के बाद 2014 में लोकसभा का चुनाव हुआ, जिसमें समाजवादी पार्टी सिर्फ पांच सीटें जीत पाई। यह कहा जा सकता है कि 2014 में तो पार्टी की कमान उनके पिता मुलायम सिंह यादव के पास थी, लेकिन 2017 विधानसभा, 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनावों में सब कुछ अखिलेश के हाथ में था और इन तीनों चुनाव में समाजवादी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। 2022 विधानसभा चुनाव में कांटे का मुकाबला होने की बात कही जा रही थी, लेकिन नतीजा आने पर पता चला कि समाजवादी पार्टी बहुत पीछे रह गई। उसके हिस्से में महज 111 सीटें ही आईं, सहयोगियों के साथ भी वह केवल 125 सीट ही जीत पाई। उसके मुकाबले में बीजेपी थी, जिसने अकेले 255 सीटें जीतीं। उधर तेजस्वी के नेतृत्व में विधानसभा का पहला चुनाव 2020 में लड़ा गया। तब आरजेडी भले ही सत्ता में नहीं आ पाया, लेकिन नतीजों ने तेजस्वी के नेतृत्व का लोहा मनवा दिया। आरजेडी सदन में सबसे बड़ा दल बना और एनडीए के मुकाबले महागठबंधन सरकार बनाने में महज 15 सीट पीछे रह गया। इसी महीने हुए स्थानीय निकाय कोटे से यूपी विधान परिषद की 33 सीटों के चुनाव में अखिलेश के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई जबकि बिहार में 24 सीटों पर हुए चुनाव में विपक्ष में रहते हुए भी आरजेडी ने छह सीटों पर जीत दर्ज की।
तेजस्वी की क्यों हो रही चर्चा
पिछले हफ्ते अलग-अलग राज्यों की एक लोकसभा और चार विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे। उनमें से एक विधानसभा सीट बिहार की भी थी। यह सीट ऐसी थी, जो एनडीए के हिस्से की थी। इस पर दावेदारी को लेकर जिस तरह से बीजेपी और एनडीए के घटक दल वीआईपी में तकरार हुई और बीजेपी ने उस पर अपना प्रत्याशी उतार दिया, उसके मद्देनजर यह उपचुनाव बीजेपी के साथ नीतीश सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। लेकिन तेजस्वी ने इस सीट को जीत कर बिहार में एनडीए को बैकफुट पर ला दिया। उन्होंने सिर्फ सीट ही नहीं जीती बल्कि आरजेडी को मुस्लिम-यादव समीकरण से आगे ले जाते दिखे। उनके साथ भूमिहार समाज का बड़ा समर्थन देखा गया और उसका श्रेय तेजस्वी के परिपक्व नेतृत्व को जा रहा है। 2020 विधानसभा चुनाव के वक्त जब आरजेडी पर मुसलमानों और यादवों की पार्टी होने की तोहमत लग रही थी तो तेजस्वी ने कहा था कि वह आरजेडी को ए टू जेड की पार्टी बनाना चाहते हैं। 2022 विधानपरिषद से लेकर विधानसभा उपचुनाव के नतीजे यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि तेजस्वी पार्टी को मुस्लिम-यादव के दायरे से बाहर निकाल कर उसे भूमिहारों तक ले जाने की रणनीति में कामयाब हुए हैं। उपचुनाव से पहले विधानपरिषद चुनाव के मद्देनजर उम्मीदवारों के चयन में तेजस्वी ने जिस तरह की विविधता दिखाई, उसी से लगने लगा था कि वह अब पार्टी को सवर्ण वर्ग की भी स्वीकार्यता दिलाना चाहते हैं। विधानपरिषद चुनाव में तो उन्हें इसका फायदा मिला ही, विधानसभा उपचुनाव में भी उन्होंने एनडीए को हराकर अपनी धमक दिखाई। उनका हश्र अखिलेश जैसा नहीं हुआ।
दोनों के बीच क्या फर्क है
अखिलेश के मुकाबले तेजस्वी के बीस साबित होने की कई बुनियादी वजहें हैं। पहली वजह यह है कि मुलायम सिंह यादव मुख्यधारा की राजनीति से बिल्कुल ही बाहर हो गए हैं। अब सारे फैसले अखिलेश अपनी समझ से ले रहे हैं लेकिन तेजस्वी को अपने पिता लालू प्रसाद यादव के अनुभव का लगातार लाभ मिल रहा है। कब, कहां, कौन सा दांव आजमाना चाहिए, यह सलाह तेजस्वी अपने पिता से लेना नहीं भूलते, भले ही अंतिम फैसला खुद उनका हो। दूसरी वजह यह है कि तेजस्वी का जो इनर सर्किल है, उसमें आज भी उनके पिता के समकलीन अनुभवी नेता देखे जा सकते हैं, जिनकी सलाह तेजस्वी के लिए बहुत मायने रखती है। उधर, अखिलेश का जो इनर सर्किल है, उसमें सिर्फ उनके दोस्त रह गए हैं। दोस्त भी ऐसे, जिनका कोई जनाधार नहीं है। विधानसभा चुनाव में देखा गया कि उनके ज्यादातर दोस्त अपने बूथों पर ही समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को नहीं जिता पाए। समाजवादी पार्टी की सरकार होने पर स्थानीय निकाय कोटे से उनके सभी दोस्त विधानपरिषद के सदस्य हो गए थे, लेकिन इस बार जब सरकार नहीं थी तो उसमें एक भी चुनाव नहीं जीत पाया और ज्यादातर की जमानत जब्त हो गई। पुराने नेताओं में सिर्फ एक राजेंद्र चौधरी ही अब अखिलेश के साथ देखे जाते हैं, लेकिन वह सलाह देने के लिए नहीं बल्कि अखिलेश की पसंद पर मुहर लगाने के लिए जाने जाते हैं।
अखिलेश यादव को उम्र और राजनीतिक तजुर्बे, दोनों में ही तेजस्वी यादव के मुकाबले बढ़त हासिल है। अखिलेश 49 साल के होने को हैं, जबकि तेजस्वी अभी 32 के ही हुए हैं। अखिलेश साल 2000 से किसी न किसी सदन के सदस्य बनते रहे हैं, जबकि तेजस्वी का विधायक के रूप में यह दूसरा कार्यकाल है। अखिलेश लगातार पांच साल देश के सबसे बड़े राज्य यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके हैं जबकि तेजस्वी के पास महज 20 महीने ही डेप्युटी सीएम रहने का अनुभव है। लेकिन नेतृत्व की कसौटी पर अगर इन दोनों युवा नेताओं को कसा जाए तो अखिलेश पर तेजस्वी बीस साबित होते दिखते हैं। अखिलेश के 2012 में यूपी का मुख्यमंत्री बनने के बाद 2014 में लोकसभा का चुनाव हुआ, जिसमें समाजवादी पार्टी सिर्फ पांच सीटें जीत पाई। यह कहा जा सकता है कि 2014 में तो पार्टी की कमान उनके पिता मुलायम सिंह यादव के पास थी, लेकिन 2017 विधानसभा, 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनावों में सब कुछ अखिलेश के हाथ में था और इन तीनों चुनाव में समाजवादी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। 2022 विधानसभा चुनाव में कांटे का मुकाबला होने की बात कही जा रही थी, लेकिन नतीजा आने पर पता चला कि समाजवादी पार्टी बहुत पीछे रह गई। उसके हिस्से में महज 111 सीटें ही आईं, सहयोगियों के साथ भी वह केवल 125 सीट ही जीत पाई। उसके मुकाबले में बीजेपी थी, जिसने अकेले 255 सीटें जीतीं। उधर तेजस्वी के नेतृत्व में विधानसभा का पहला चुनाव 2020 में लड़ा गया। तब आरजेडी भले ही सत्ता में नहीं आ पाया, लेकिन नतीजों ने तेजस्वी के नेतृत्व का लोहा मनवा दिया। आरजेडी सदन में सबसे बड़ा दल बना और एनडीए के मुकाबले महागठबंधन सरकार बनाने में महज 15 सीट पीछे रह गया। इसी महीने हुए स्थानीय निकाय कोटे से यूपी विधान परिषद की 33 सीटों के चुनाव में अखिलेश के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई जबकि बिहार में 24 सीटों पर हुए चुनाव में विपक्ष में रहते हुए भी आरजेडी ने छह सीटों पर जीत दर्ज की।
तेजस्वी की क्यों हो रही चर्चा
पिछले हफ्ते अलग-अलग राज्यों की एक लोकसभा और चार विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे। उनमें से एक विधानसभा सीट बिहार की भी थी। यह सीट ऐसी थी, जो एनडीए के हिस्से की थी। इस पर दावेदारी को लेकर जिस तरह से बीजेपी और एनडीए के घटक दल वीआईपी में तकरार हुई और बीजेपी ने उस पर अपना प्रत्याशी उतार दिया, उसके मद्देनजर यह उपचुनाव बीजेपी के साथ नीतीश सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। लेकिन तेजस्वी ने इस सीट को जीत कर बिहार में एनडीए को बैकफुट पर ला दिया। उन्होंने सिर्फ सीट ही नहीं जीती बल्कि आरजेडी को मुस्लिम-यादव समीकरण से आगे ले जाते दिखे। उनके साथ भूमिहार समाज का बड़ा समर्थन देखा गया और उसका श्रेय तेजस्वी के परिपक्व नेतृत्व को जा रहा है। 2020 विधानसभा चुनाव के वक्त जब आरजेडी पर मुसलमानों और यादवों की पार्टी होने की तोहमत लग रही थी तो तेजस्वी ने कहा था कि वह आरजेडी को ए टू जेड की पार्टी बनाना चाहते हैं। 2022 विधानपरिषद से लेकर विधानसभा उपचुनाव के नतीजे यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि तेजस्वी पार्टी को मुस्लिम-यादव के दायरे से बाहर निकाल कर उसे भूमिहारों तक ले जाने की रणनीति में कामयाब हुए हैं। उपचुनाव से पहले विधानपरिषद चुनाव के मद्देनजर उम्मीदवारों के चयन में तेजस्वी ने जिस तरह की विविधता दिखाई, उसी से लगने लगा था कि वह अब पार्टी को सवर्ण वर्ग की भी स्वीकार्यता दिलाना चाहते हैं। विधानपरिषद चुनाव में तो उन्हें इसका फायदा मिला ही, विधानसभा उपचुनाव में भी उन्होंने एनडीए को हराकर अपनी धमक दिखाई। उनका हश्र अखिलेश जैसा नहीं हुआ।
दोनों के बीच क्या फर्क है
अखिलेश के मुकाबले तेजस्वी के बीस साबित होने की कई बुनियादी वजहें हैं। पहली वजह यह है कि मुलायम सिंह यादव मुख्यधारा की राजनीति से बिल्कुल ही बाहर हो गए हैं। अब सारे फैसले अखिलेश अपनी समझ से ले रहे हैं लेकिन तेजस्वी को अपने पिता लालू प्रसाद यादव के अनुभव का लगातार लाभ मिल रहा है। कब, कहां, कौन सा दांव आजमाना चाहिए, यह सलाह तेजस्वी अपने पिता से लेना नहीं भूलते, भले ही अंतिम फैसला खुद उनका हो। दूसरी वजह यह है कि तेजस्वी का जो इनर सर्किल है, उसमें आज भी उनके पिता के समकलीन अनुभवी नेता देखे जा सकते हैं, जिनकी सलाह तेजस्वी के लिए बहुत मायने रखती है। उधर, अखिलेश का जो इनर सर्किल है, उसमें सिर्फ उनके दोस्त रह गए हैं। दोस्त भी ऐसे, जिनका कोई जनाधार नहीं है। विधानसभा चुनाव में देखा गया कि उनके ज्यादातर दोस्त अपने बूथों पर ही समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को नहीं जिता पाए। समाजवादी पार्टी की सरकार होने पर स्थानीय निकाय कोटे से उनके सभी दोस्त विधानपरिषद के सदस्य हो गए थे, लेकिन इस बार जब सरकार नहीं थी तो उसमें एक भी चुनाव नहीं जीत पाया और ज्यादातर की जमानत जब्त हो गई। पुराने नेताओं में सिर्फ एक राजेंद्र चौधरी ही अब अखिलेश के साथ देखे जाते हैं, लेकिन वह सलाह देने के लिए नहीं बल्कि अखिलेश की पसंद पर मुहर लगाने के लिए जाने जाते हैं।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं
// Get the first script element, which we'll use to find the parent node var firstScriptElement = document.getElementsByTagName('script')[0];
// Create a new script element and set its id var facebookJS = document.createElement('script'); facebookJS.id = 'facebook-jssdk';
// Set the new script's source to the source of the Facebook JS SDK facebookJS.src="https://connect.facebook.net/en_US/all.js";
// Insert the Facebook JS SDK into the DOM firstScriptElement.parentNode.insertBefore(facebookJS, firstScriptElement); }());
function checkLogin(){ TimesGDPR.common.consentModule.gdprCallback(function(){ if(!window._euuser){ require(["login"],function(login){ login.init(); }); }}); } function callfunctiononload(){ /*if(isQuillEnabled){ var scrt=document.createElement('script'); scrt.type="text/javascript"; scrt.src="https://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/wp-content/themes/langblogstheme/js/quill-compiled.js?ver=1"; document.getElementsByTagName("head")[0].appendChild(scrt);
// all cool browsers try { scrt.onload = applyingQuill; } catch(ex){} // IE 6 & 7 scrt.onreadystatechange = function() { if (this.readyState == 'complete') { try { applyingQuill(); } catch(ex){} } } } else { try { applyingComments(); } catch(ex){} }*/ if(isQuillEnabled){ try { applyingQuill(); } catch(ex){} } else { try { applyingComments(); } catch(ex){} } } function applyingQuill(){ try { applyingQuillComments(); } catch(ex){} if($('#search-form-field').length > 0){ Quill.init('search-form-field', false, null, null, 'hindi'); Quill.setLanguage('search-form-field', 'hindi'); } if($('#search-form-top-field').length > 0){ Quill.init('search-form-top-field', false, null, null, 'hindi'); Quill.setLanguage('search-form-top-field', 'hindi'); } /*if($('#search-form-topmobile-field').length > 0){ Quill.init('search-form-topmobile-field', false, null, null, 'hindi'); Quill.setLanguage('search-form-topmobile-field', 'hindi'); }*/ } $(function(){ callfunctiononload(); require(["tiljs/event"],function(event){ event.subscribe("user.login",function(){ $( '#timespointframe' ).attr( 'src', function () { return $( this )[0].src; } ); }); event.subscribe("user.logout",function(){ $( '#timespointframe' ).attr( 'src', function () { return $( this )[0].src; } ); }); })
}); $(window).load(function() { var themeClass="post-template-default single single-post postid-41290 single-format-standard group-blog masthead-fixed full-width singular style_nbt"; $('body').addClass(themeClass); });
var showInitAd = 'None';
var initAdUrl="";
if(_getCookie('intAd') !== '1'){
if(isMobile.matches){
if(showInitAd == 'Both' || showInitAd == 'WAP'){
initAdUrl="https://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/defaultinterstitial?v=mob";
}
} else {
if(showInitAd == 'Both' || showInitAd == 'WEB'){
initAdUrl="https://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/defaultinterstitial";
}
}
}
if(initAdUrl){
_setCookie('prevurl',window.location.href,1);
window.location.replace(initAdUrl);
}
var languageChannelName="nbt";
var siteId = '9830e1f81f623b33106acc186b93374e';
var domainName="indiatimes.com";
var ofcommenthostid = '294';
var ofcommentchannelid = '2147478026';
var appid = '117787264903013';
var commentText = {"name_required":"Please enter your name.","location_required":"Please enter your location.","captcha_required":"Please enter captcha value.","name_toolong":"Name cannot be longer than 30 chars.","name_not_string":"Name can only contain alphabets.","location_toolong":"Location cannot be longer than 30 chars.","location_not_string":"Location can only contain alphabets.","captcha_toolong":"Captcha cannot be longer than 4 chars.","captcha_number_only":"Captcha value can only be a number.","email_required":"Please enter your email address.","email_invalid":"Please enter a valid email address.","captcha_invalid":"Please enter a valid captcha value.","minlength":"You can t post this comment as the length it is too short. ","blank":"You can t post this comment as it is blank.","maxlength":"You have entered more than 3000 characters.","popup_blocked":"Popup is blocked.","has_url":"You can t post this comment as it contains URL.","duplicate":"You can t post this comment as it is identical to the previous one.","abusive":"You can't post this comment as it contains inappropriate content.","self_agree":"You can't Agree with your own comment","self_disagree":"You can't Disagree with your own comment","self_recommend":"You can't Recommend your own comment","self_offensive":"You can't mark your own comment as Offensive","already_agree":"You have already Agreed with this comment","already_disagree":"You have already Disagreed with this comment","already_recommended":"You have already Recommended this comment","already_offensive":"You have already marked this comment Offensive","cant_agree_disagree":"You can't Agree and Disagree with the same comment","cant_agree_offensive":"You can't Agree and mark the same comment Offensive","cant_disagree_recommend":"You can't Disagree and Recommend the same comment","cant_recommend_offensive":"You can't Recommend and mark the same comment Offensive","permission_facebook":"You can't post to facebook. Post permission is required.","offensive_reason":"Please select a reason.","offensive_reason_text":"Please enter a reason.","offensive_reason_text_limit":"Please enter less than 200 chars.","be_the_first_text":"Be the first one to review.","no_comments_discussed_text":"None of the comments have been discussed.","no_comments_up_voted_text":"None of the comments have been up voted.","no_comments_down_voted_text":"None of the comments have been down voted."};
Source link