अखिलेश और मायावती की इस तस्वीर के पीछे 2 जून 1995 की वो कहानी, जानिए कैसे गेस्ट हाउस कांड से बदली UP की राजनीति

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अखिलेश और मायावती की इस तस्वीर के पीछे 2 जून 1995 की वो कहानी, जानिए कैसे गेस्ट हाउस कांड से बदली UP की राजनीति

अखिलेश और मायावती की इस तस्वीर के पीछे 2 जून 1995 की वो कहानी, जानिए कैसे गेस्ट हाउस कांड से बदली UP की राजनीति

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती की यह तस्वीर एक पुरानी कहानी को याद दिलाती है। इतिहास के आइने में झांकें तो आपको उत्तर प्रदेश की राजनीति का वो दागदार चेहरा दिखाई देगा, जिसे आज कोई भी याद नहीं करना चाहता है। वह घटना थी 2 जून 1995 की। मीराबाई रोड पर स्थित गेस्ट हाउस में उस रोज मायावती विधायकों की बैठक कर रही थीं। इसी दरम्यान समाजवादी पार्टी के विधायक और समर्थकों ने हमला कर दिया। मायावती से बदसलूकी के प्रयास हुए। इस घटना ने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच ऐसी दरार पैदा कर दी कि सपा में मुलायम सिंह यादव की सक्रियता पर दोनों दल कभी एकजुट नहीं हुए। वर्ष 2018 में अखिलेश यादव ने पहल की और फिर सपा और मायावती एक ध्रुव पर आए। भाजपा को रोकने के लिए वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले यह सबसे बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम माना गया। बुआ और बबुआ की जोड़ी के नाम मशहूर हुई मायावती और अखिलेश यादव की जोड़ी ने वर्ष 2014 के रिजल्ट से करीब दोगुना बेहतर प्रदर्शन किया। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में विपक्ष 7 सीटों पर सिमटा था। उस समय सपा को 5 और कांग्रेस को 2 सीटों पर जीत मिली थी। वर्ष 2019 में जब अखिलेश और मायावती साथ आए तो विपक्ष 16 सीटों पर पहुंचा। बसपा 2014 के शून्य से 10 के आंकड़े तक पहुंची। सपा को 5 सीटें मिली और कांग्रेस के खाते में एक सीट आई। ऐसे में यूपी की राजनीति में यह तस्वीर काफी अहम है और इसके अपने अलग मायने हैं।

2 जून 1995 की घटना के पहले यूपी की बदली सियासत को समझने का प्रयास करिए। करीब 38 साल पहले 14 अप्रैल को 1984 को कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का गठन किया। उनका कहना था कि समाज में जिस वर्ग की जितनी हिस्सेदारी है, उसको राजनीति में उतनी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। दलित समाज को केवल वोट बैंक के रूप में देखे जाने से इतर सोचने का संदेश था। कांशीराम ने संगठन को पहले मजबूत किया। लेकिन, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में उपजी सहानुभूति की लहर में हर दल बहे। फिर आया मंडल का दौर। ओबीसी राजनीति का उभार हुआ। साथ ही, यूपी की राजनीति में राम मंदिर आंदोलन का मुद्दा भी गरमा रहा था। इन तमाम राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच कांशीराम ने बसपा को बहुजनों की पार्टी के रूप में स्थापित किया। जनता पार्टी की मुलायम सरकार गिरने के बाद यूपी की राजनीति में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की एंट्री हुई। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। फिर, 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस हो गया। यह राम मंदिर आंदोलन का चरम बिंदू था। हिंदू राजनीति गरमा रही थी। तमाम राजनीतिक दल किनारे लगते दिख रहे थे। उस समय मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने एक गठबंधन की नींव रखी। समाजवादी पार्टी और बसपा 1993 के विधानसभा चुनाव में एक साथ आए।

गेस्ट हाउस कांड ने बढ़ाई थी मायावती और मुलायम के बीच दूरी

ऐसा था 1993 के चुनाव का गणित
सपा और बसपा ने वर्ष 1993 का चुनाव एक साथ लड़ने का फैसला किया था। उस समय यूपी और उत्तराखंड एक साथ थे। यूपी विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या 422 हुआ करती थी। गठबंधन के तहत समाजवादी पार्टी को 256 सीटें मिली। वहीं, बसपा के पाले में 164 सीटें आईं। विधानसभा चुनाव में दोनों दलों ने 176 सीटों पर जीत दर्ज की। भारतीय जनता पार्टी 177 सीटों पर जीती। कांग्रेस को 28, जनता दल को 27, सीपीआई को 3, सीपीएम को 1, जनता पार्टी को 1, उत्तराखंड क्रांति दल को 1 और निर्दलीय 8 सीटों पर जीते। उस चुनाव में नारा दिया गया था, मिले मुलायम-कांशीराम हवा में उड़ गए जय श्री राम। सपा- बसपा गठबंधन ने चुनाव के बाद जनता दल और दलों के समर्थन से सरकार बनाई। मुलायम मुख्यमंत्री बने। लेकिन, बसपा नेता मायावती इस गठबंधन से खुश नहीं थीं। उन्हें इस गठबंधन से कुछ हासिल होता नहीं दिख रहा था। बसपा मुलायम सरकार में शामिल होने की जगह बाहर से समर्थन दे रही थी। मायावती की नाराजगी के बीच सपा और बसपा में लगातार मतभेद बढ़ने लगा।

कर्नाटक के मंच से अखिलेश और मायावती ने साथ आने का दिया था संदेश

कर्नाटक के मंच से अखिलेश और मायावती ने साथ आने का दिया था संदेश

क्या हुआ था 2 जून 1995 को?
सपा और बसपा का गठबंधन करीब दो सालों तक चला। तारीख थी 2 जून 1995। स्थान था, मीराबाई रोड का गेस्ट हाउस। मायावती अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं। वे उनका मन टटोल रही थीं कि क्या मुलायम सिंह यादव सरकार से समर्थन वापस ले लिया जाए? समर्थन वापसी की भनक सपा कार्यकर्ता और नेताओं को भी मिल गई। उन्हें यह भी भनक लगी कि मायावती भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाने की तैयारी कर रही हैं। बसपा प्रमुख कांशीराम के कहने पर चल रही विधायक दल की बैठक में तब अचानक हमला हो गया। दावा किया जाता है कि करीब 200 सपा कार्यकर्ताओं ने मीराबाई रोड स्थित गेस्ट हाउस पर हमला कर दिया। इसमें कई विधायक भी शामिल थे। सपा कार्यकर्ताओं ने बसपा के विधायकों के साथ मारपीट शुरू कर दी। इसकी चपेट में मायावती भी आईं। उनके साथ बदसलूकी की गई। जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किए जाने का भी मामला सामने आया।

बसपा कार्यकर्ताओं के कहने पर मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। सपा कार्यकर्ताओं की भीड़ उनके कमरे तक पहुंच गई। दरवाजा तोड़ने का प्रयास किया गया। सपा कार्यकर्ताओं की ओर से लगातार गालियों का प्रयोग किया जा रहा था। इसके बाद पुलिस वहां पहुंची और मायावती की जान बचाई जा सकी। मायावती को बचाने में विजय भूषण, सुभाष सिंह बघेल और उस समय के एसपी राजीव रंजन की बड़ी भूमिका थी। दावा तो यह भी किया जाता है कि भाजपा के ब्रह्मदत्त द्विवेदी और लालजी टंडन ने भी उनको बचाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। यूपी की राजनीति के काले अध्याय में यह गेस्ट हाउस कांड के रूप में अंकित है।

विचारों की मतभिन्नता के आधार पर होने वाली राजनीति में तब किसी नेता को क्षति पहुंचाने का प्रयास किया गया था। मायावती ने खुद सपा कार्यकर्ताओं पर हत्या के प्रयास का दावा किया गया था। कई बार उन्होंने कहा है कि उनकी जान लेने का प्रयास किया गया। इस घटना के बाद तत्कालीन लखनऊ एसपी और प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह को हटा दिया गया था। मायावती ने सरकार से समर्थन लेने की घोषणा की। 3 जून 1995 को मायावती भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गई थीं। इस राजनीतिक घटना ने सपा और बसपा के बीच विश्वास को कमजोर किया।

2019 के लोकसभा चुनाव का मंच मुलायम और मायावती ने साथ किया था साझा

2019 के लोकसभा चुनाव का मंच मुलायम और मायावती ने साथ किया था साझा

2018 में साथ आए अखिलेश- मायावती
वर्ष 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन देकर एचडी कुमारस्वामी की सरकार बनवा दी। सबस बड़ी पार्टी बनी भाजपा सरकार बनाने की दौर में पिछड़ी तो इसे विपक्षी दलों की बड़ी जीत के रूप में देखा गया। उससे पहले से मायावती और अखिलेश यादव के साथ आने की चर्चा यूपी की राजनीति में चल रही थी। एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह के मंच से तमाम विपक्षी दलों ने अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की। इस मंच पर मायावती और अखिलेश यादव एक साथ नजर आए। अखिलेश का हाथ उठाए मायावती की तस्वीर तब मीडिया की सुर्खियों में थी। जनवरी 2019 में सपा-बसपा गठबंधन का विधिवत ऐलान हुआ। दोनों दलों ने 38-38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया। रायबरेली सीट कांग्रेस के लिए छोड़ी गई। तीन अन्य सीटों पर सहयोगी दल उम्मीदवार खड़े होने थे।

लोकसभा चुनाव 2019 के मंच पर दिखी थी अखिलेश और मायावती की अलग ही जुगलबंदी

लोकसभा चुनाव 2019 के मंच पर दिखी थी अखिलेश और मायावती की अलग ही जुगलबंदी

लोकसभा चुनाव 2019 के मंच पर मायावती और अखिलेश यादव के साथ-साथ मुलायम सिंह भी नजर आए थे। इससे दोनों नेताओं के बीच की खटास कम होने की भी बात कही गई। हालांकि, लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद दोनों दलों के बीच गठबंधन चल नहीं पाया। मायावती और अखिलेश यादव ने एक दूसरे पर वोट ट्रांसफर न करा पाने का आरोप लगाया। यूपी चुनाव 2022 में मायावती को किनारे करने में अखिलेश सफल रहे। अब लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी चल रही है। बिहार से नीतीश कुमार ने राजद से दोबारा गठबंधन की सरकार बनाकर सभी विपक्षी दलों को एक ध्रुव पर आने का संदेश दिया है। देखना होगा कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले यूपी में कोई ऐसा माहौल बनता है या नहीं।

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