पक्षियों का जीवन चक्र और मानव जिम्मेदारी: संयोजक बोले- हेरोनरी पक्षियों का संरक्षण जरूरी, कृषि क्षेत्र के लिए वरदान साबित – Nalanda News h3>
प्रजनन काल के दौरान रंगों में दिखता है फर्क।
गर्मियों के आगमन के साथ ही प्रकृति में एक नया परिवर्तन दिखने लगता है। इस मौसम में पक्षियों के व्यवहार में आए बदलाव विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करते हैं। अप्रैल-मई महीने बगुलों का प्रजनन काल होता है, जहां इनके शारीरिक स्वरूप में आकर्षक परिवर्तन देखने क
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बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान द्वारा पिछले चार वर्षों से किए जा रहे अध्ययन में पाया गया कि प्रजनन काल के दौरान बगुलों के सर, गर्दन और डैने बादामी और नारंगी रंग के हो जाते हैं, जो प्रजनन के बाद पुनः दुधिया सफेद हो जाते हैं। इस समय नर पक्षी, गुलमोहर के फूलों की तरह अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं।
अभियान के संयोजक राहुल कुमार ने बताया कि हमारे अध्ययन से पता चला है कि बगुला समूह, जिसमें गाय बगुला, कुरचिया बगुला और बड़ा बगुला शामिल हैं, किसानों के महत्वपूर्ण मित्र हैं। गाय बगुला मवेशियों के शरीर पर पाए जाने वाले परजीवी कीटों को खाकर उन्हें पिस्सुओं से मुक्ति दिलाते हैं।
खेतों में ट्रैक्टर के पीछे चलकर मिट्टी से निकले कीट-पतंगों को खाने वाले ये पक्षी कृषि क्षेत्र के लिए वरदान साबित होते हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों ने इनके अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है।
बिहार थाना के कैम्पस के पास बगुला का घोसला
संकट में हेरोनरी पक्षियां
अध्ययन में सामने आया कि असमय वर्षा, सूखा, ग्लोबल वॉर्मिंग के साथ-साथ मानवीय हस्तक्षेप जैसे शिकार और पेड़ों की कटाई इन पक्षियों के लिए प्रमुख चुनौतियां हैं। मानव बस्तियों में इनके मल और भोजन अवशेषों से होने वाली बदबू के कारण लोग अक्सर इनके घोंसलों को नष्ट कर देते हैं या फिर घोंसलों वाले पेड़ों को ही काट देते हैं।
अभियान के स्वयंसेवक अविनाश कुमार ने एक चौंकाने वाला तथ्य साझा किया उन्होंने कहा कि हमारे सर्वेक्षण में हमने स्वजातभक्षण (कैनिबलिज़्म) का भी अवलोकन किया, जहां घोंसले से गिरे एक चूजे का भक्षण उसी की प्रजाति के बगुलों द्वारा किया जा रहा था।
इसके अलावा, प्राकृतिक कारणों जैसे आंधी से पेड़ों के टूटने और माता-पिता द्वारा कमजोर बच्चों को घोंसले से निष्कासित करने के मामले भी सामने आए हैं। ऐसे में बचे हुए बच्चे कुत्तों और बिल्लियों का आसान शिकार बन जाते हैं।
नालंदा में हेरोनरी के प्रमुख स्थल
बिहार शरीफ नालंदा में हेरोनरी पक्षियों के प्रमुख प्रजनन स्थल हैं – नालंदा सिविल कोर्ट, नालंदा कॉलेज, गांधी मैदान, पुष्पकर्णी जलाशय के निकटवर्ती जंगली क्षेत्र, नालंदा द्वार, राजगीर अनुमंडल अस्पताल, नालंदा कलेक्टोरेट और थाना परिसर।
सर्वेक्षण से पता चला है कि बिहार शरीफ थाना के पीछे और सिविल कोर्ट परिसर में कैटल इग्रेट के घोंसले अधिक संख्या में पाए जाते हैं, जहां ये जलेबी के पेड़ों पर घोंसले बनाते हैं। जुलाई की शुरुआत में मानसून के आगमन के साथ ही सिविल कोर्ट, कलेक्टोरेट और नालंदा कॉलेज में एशियन ओपनबिल पक्षियों का आगमन होता है।
अंकित आर्यन ने स्पष्ट किया की कई बार लोग एशियन ओपनबिल के बड़े समूह को देखकर उन्हें साइबेरियन पक्षी समझ लेते हैं, जबकि ये स्थानीय प्रजाति के पक्षी हैं।
जागरूकता और संरक्षण के प्रयास
बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान की टीम स्थानीय समुदायों में इन पक्षियों के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य कर रही है। टीम के सदस्य राहुल कुमार, अविनाश कुमार, अंकित आर्यन, हर्ष कुमार, शिवम कुमार, राहुल कुमार कुशवाहा, शिवनाथ कुमार, अरुण प्रसाद और अन्य स्वैच्छिक रूप से इस अभियान में भाग लेते हैं।
शिवम कुमार ने बताया की हमारा उद्देश्य है कि पक्षियों के मल या गंदगी से मानव स्वास्थ्य प्रभावित न हो और पक्षियों का प्रजनन भी सफल हो सके। उन्होंने आगे कहा की ये पक्षी कीट-पतंगों का सफाया करके हमारी फसलों की सुरक्षा और पारिस्थितिकी संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अभियान को स्थानीय समुदाय और बिहार शरीफ थाना के कर्मचारियों का सहयोग भी मिल रहा है, जिससे हेरोनरी पक्षियों के संरक्षण के प्रयासों को बल मिल रहा है।
मगध नेचर कंजर्वेशन सोसाइटी और आई.यू.सी.एन-सी.ई.सी. के सहयोग से चल रहे इस अभियान का लक्ष्य है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए इन महत्वपूर्ण पक्षियों का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।