World Water Day: कुआं खोद 27 सालों से राहगीरों की प्यास बुझा रहा ये बुजुर्ग, पढ़ें- भीलवाड़ा के ‘पानी बाबा’ की कहानी h3>
Sambrat Chaturvedi | Lipi | Updated: Mar 22, 2022, 10:23 PM
Rajasthan News: पिछले 27 सालों से राहगीरों के सूखे कंठ तर करने का नेक काम करने में जुटा है भीलवाड़ा का पानी बाबा। 78 साल के बुजुर्ग ने इसी सेवा को अपना धर्म बनाया और अब गांव-गांव राहगीरों को पानी पिला रहा है। मांगीलाल गुर्जर ने 20 साल तक अपने हाथों से कुआं खोदा था।
हाइलाइट्स
- जिंदगी के 78 बसंत देख चुके यह हैं गुंदली गांव का पानी बाबा
- विश्व जल दिवस पर फिर चर्चा में है पानी बाबा
- पिछले 27 सालों से अपने हाथों खोदे हुए कुंए से पानी निकाल कर राहगीरों को पिला रहे
प्रमोद तिवारी, भीलवाड़ा: जिंदगी के 78 बसंत देख चुके यह हैं गुंदली गांव के मांगीलाल गुर्जर। भीलवाड़ा में इन्हें लोग ‘पानी बाबा’ कहते हैं। इस बुजुर्ग पानी बाबा की कहानी एक बार फिर विश्व जल दिवस पर चर्चा में है। पिछले 27 सालों से मांगीलाल अपने हाथों खोदे हुए कुंए से पानी निकाल कर राहगीरों को पिलाने का नेक काम कर रहे हैं। बिना किसी लोभ-लालच के यह बुजुर्ग फ्री में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। पानी का मटका और लोटा लिए पानी बाबा अपने गांव से काफी दूर दूसरे गांवों तक पहुंच जाते हैं। उन्हें बरसों से जल सेवा करते देख रहे हैं लोग भी आदर-सत्कार करते हैं। पानी बाबा जिस भी गांव में जाते हैं लोग उनके खाने की व्यवस्था भी कर देते हैं।
मांगीलाल ने इस नेकी की शुरुआत 27 साल पहले की। पहले 20 साल तक अपने हाथों से एक कुआं खोदा और उस से पानी निकालकर राहगीरों को पानी पिलाने का काम शुरू किया। यह काम इन्होंने भीलवाड़ा से अमरगढ़ और बागोर जाने वाली मुख्य सड़क से 3 किलोमीटर अपने गांव जाने के रास्ते के चोराहे पर शुरू किया। तब तक उनके गांव जाने का एक यही कच्चा रास्ता था। जहां लोगों को पैदल या बैलगाड़ी जैसे साधनों से जाना होता था। लेकिन वहां पीने के पानी का कोई इंतजाम नहीं था।
राहगीरों की प्यास बुझाने खोदा 25 फीट गहरा कुआं
जब रास्ते भर लोगों को पानी की तलब बुझती नहीं देखी तो मांगीलाल ने राहगीरों के सूखे कंठ तर करने का जिम्मा उठाया था। इन्होंने यह कुआं 27 साल पहले गुंदलीं ग्राम के चौराहे पर बनाया। कुएं की गहराई लगभग 25 फीट थी। जब कुआं तैयार हुआ तो उसी में से अपने हाथों से पानी निकाल कर राहगीरों को पिलाना शुरू किया।
विकास हुआ तो राहगीरों का रुकना बंद हुआ, लेकिन पानी बाबा ने नहीं छोड़ा काम
पानी बाबा मांगीलाल गुर्जर के गुंदलीं चौराहे पर पानी पिलाते-पिलाते 20 बरस गुजर चुके थे। धीरे-धीरे क्षेत्र में संसाधन बढ़े, सड़क पक्की हुई तो लोगों बसों से आने जाने लगे। लेकिन तब भी पानी बाबा ने अपना काम नहीं छोड़ा। सिर पर पानी का मटका और हाथ में लोटा लेकर घूम-घूमकर राहगीरों को पानी पिलाना शुरू किया।
सेवा को धर्म बनाया और घूम-घूमकर पानी पिलाना जारी रखा
अविवाहित मांगीलाल गुर्जर को बचपन से ही लोगों की सेवा करना अच्छा लगता था। आगे चलकर उन्हें लोगों को पानी पिलाने पर सकून मिलने लगा। और यह इस सेवा को अपना धर्म बनाकर घूम-घूमकर लोगों का पानी पिलाने लगे। पानी बाबा अपने गांत तक सीमित नहीं रहे, पानी का मटका लिए इस पानी बाबा को बागोर, रायपुर, मांडल, कोशीथल ,मांडलगढ़ और राजसमंद जिले के आमेट, देवगढ़, कुंवारिया और कुरज तक के लोग हर छोटे-बड़े शहर और गांव के गलियारों में कहीं भी देखा जा सकता है।
जहां भी जाते हैं, लोग खाने की व्यवस्था कर देते हैं
पानी बाबा के नाम से मशहूर मांगीलाल गुर्जर कहते हैं, ‘ऐसे लोगों को पानी पिलाते हुए मुझे 27 साल हो गए हैं। इससे पहले 20 साल तक गुंदलीं चौराहे पर बैठकर पानी पिलाया था। मैं घूम-घूमकर कभी मांडलगढ़ चला जाता हूं, कभी बंक्यारानी आ जाता हूं। आमेट चला जाता हूं तो कभी कुंवारिया दरीबा माइंस अपने गांव। जहां भी जाता हूं लोग मेरे खाने की व्यवस्था कर देते हैं। मेरे परिवार में मैं ही अकेला हूं। मेरी पुश्तैनी जमीन भी है, लेकिन मुझे उसकी कभी जरूरत नहीं पड़ी। उसकी उपज आज भी मेरे चाचा के लड़के ही लेते हैं।’
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Web Title : real water man of bhilwara rajasthan who known as pani baba read his full story on world water day 2022
Hindi News from Navbharat Times, TIL Network
Sambrat Chaturvedi | Lipi | Updated: Mar 22, 2022, 10:23 PM
Rajasthan News: पिछले 27 सालों से राहगीरों के सूखे कंठ तर करने का नेक काम करने में जुटा है भीलवाड़ा का पानी बाबा। 78 साल के बुजुर्ग ने इसी सेवा को अपना धर्म बनाया और अब गांव-गांव राहगीरों को पानी पिला रहा है। मांगीलाल गुर्जर ने 20 साल तक अपने हाथों से कुआं खोदा था।
हाइलाइट्स
- जिंदगी के 78 बसंत देख चुके यह हैं गुंदली गांव का पानी बाबा
- विश्व जल दिवस पर फिर चर्चा में है पानी बाबा
- पिछले 27 सालों से अपने हाथों खोदे हुए कुंए से पानी निकाल कर राहगीरों को पिला रहे
मांगीलाल ने इस नेकी की शुरुआत 27 साल पहले की। पहले 20 साल तक अपने हाथों से एक कुआं खोदा और उस से पानी निकालकर राहगीरों को पानी पिलाने का काम शुरू किया। यह काम इन्होंने भीलवाड़ा से अमरगढ़ और बागोर जाने वाली मुख्य सड़क से 3 किलोमीटर अपने गांव जाने के रास्ते के चोराहे पर शुरू किया। तब तक उनके गांव जाने का एक यही कच्चा रास्ता था। जहां लोगों को पैदल या बैलगाड़ी जैसे साधनों से जाना होता था। लेकिन वहां पीने के पानी का कोई इंतजाम नहीं था।
राहगीरों की प्यास बुझाने खोदा 25 फीट गहरा कुआं
जब रास्ते भर लोगों को पानी की तलब बुझती नहीं देखी तो मांगीलाल ने राहगीरों के सूखे कंठ तर करने का जिम्मा उठाया था। इन्होंने यह कुआं 27 साल पहले गुंदलीं ग्राम के चौराहे पर बनाया। कुएं की गहराई लगभग 25 फीट थी। जब कुआं तैयार हुआ तो उसी में से अपने हाथों से पानी निकाल कर राहगीरों को पिलाना शुरू किया।
विकास हुआ तो राहगीरों का रुकना बंद हुआ, लेकिन पानी बाबा ने नहीं छोड़ा काम
पानी बाबा मांगीलाल गुर्जर के गुंदलीं चौराहे पर पानी पिलाते-पिलाते 20 बरस गुजर चुके थे। धीरे-धीरे क्षेत्र में संसाधन बढ़े, सड़क पक्की हुई तो लोगों बसों से आने जाने लगे। लेकिन तब भी पानी बाबा ने अपना काम नहीं छोड़ा। सिर पर पानी का मटका और हाथ में लोटा लेकर घूम-घूमकर राहगीरों को पानी पिलाना शुरू किया।
सेवा को धर्म बनाया और घूम-घूमकर पानी पिलाना जारी रखा
अविवाहित मांगीलाल गुर्जर को बचपन से ही लोगों की सेवा करना अच्छा लगता था। आगे चलकर उन्हें लोगों को पानी पिलाने पर सकून मिलने लगा। और यह इस सेवा को अपना धर्म बनाकर घूम-घूमकर लोगों का पानी पिलाने लगे। पानी बाबा अपने गांत तक सीमित नहीं रहे, पानी का मटका लिए इस पानी बाबा को बागोर, रायपुर, मांडल, कोशीथल ,मांडलगढ़ और राजसमंद जिले के आमेट, देवगढ़, कुंवारिया और कुरज तक के लोग हर छोटे-बड़े शहर और गांव के गलियारों में कहीं भी देखा जा सकता है।
जहां भी जाते हैं, लोग खाने की व्यवस्था कर देते हैं
पानी बाबा के नाम से मशहूर मांगीलाल गुर्जर कहते हैं, ‘ऐसे लोगों को पानी पिलाते हुए मुझे 27 साल हो गए हैं। इससे पहले 20 साल तक गुंदलीं चौराहे पर बैठकर पानी पिलाया था। मैं घूम-घूमकर कभी मांडलगढ़ चला जाता हूं, कभी बंक्यारानी आ जाता हूं। आमेट चला जाता हूं तो कभी कुंवारिया दरीबा माइंस अपने गांव। जहां भी जाता हूं लोग मेरे खाने की व्यवस्था कर देते हैं। मेरे परिवार में मैं ही अकेला हूं। मेरी पुश्तैनी जमीन भी है, लेकिन मुझे उसकी कभी जरूरत नहीं पड़ी। उसकी उपज आज भी मेरे चाचा के लड़के ही लेते हैं।’
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