World AIDS Day: ‘मैं विधवा हूं लाचार नहीं, बेटी के लिए जिंदा हूं, डॉक्टर बनाऊंगी’ | World AIDS Day struggle of a woman after the death of her husband | Patrika News

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World AIDS Day: ‘मैं विधवा हूं लाचार नहीं, बेटी के लिए जिंदा हूं, डॉक्टर बनाऊंगी’ | World AIDS Day struggle of a woman after the death of her husband | Patrika News

World AIDS Day: ‘मैं विधवा हूं लाचार नहीं, बेटी के लिए जिंदा हूं, डॉक्टर बनाऊंगी’ | World AIDS Day struggle of a woman after the death of her husband | News 4 Social

सदा रहना दिल में करीब होके मिले हो तुम हमको, बड़े नसीबों से चुराया है मैंने किस्मत की लकीरों से’
कुछ देर बाद सपना फोन उठाती हैं… ‌हेल्लो… मैं सपना बोल रही हूं। और फिर जो घंटों तक सुना, मुझे महसूस हुआ, इस स्टोरी को ठीक वैसे ही लिख दूं, जैसे सपना ने अपनी जिंदगी के बारें में मुझे बताया है। कुछ कहानी को आप चाहकर भी एडिट नहीं कर सकते, तो पढ़िए, सपना की कहानी उन्हीं की जुबानी…

जांच कराके वापस लौटी, सोचा नहीं था जिंदगी बदल जाएगी शादी करके मुंबई चली आई थी। सबकुछ ठीक चल रहा था, अचानक पति की तबीयत खराब होने लगी। इलाज कराते रहे, लेकिन आराम नहीं मिला।

एक दिन तेज बुखार आया, डॉक्‍टर ने जांच कराने को लिखा। जांच कराने के बाद जब वापस घर को लौट रही थी तो कभी सोचा नहीं था, अब जिंदगी बदलने वाली है।
तीन दिन बाद जांच सेंटर से एक फोन आया, आप दोनों जल्दी आ जाइए। डॉक्टर ने बताया आपके पति को एड्स है। इलाज शुरू हुआ। कुछ दिन के बाद मेरी भी तबीयत खराब होने लगी, मैंने भी जांच कराया तो पता चला मुझे भी एड्स है।

हम दोनों परेशान रहने लगे। घर, परिवार, समाज, लोग क्या सोचेंगे, इसी डर से किसी को कुछ बताया नहीं। चोरी-छिपे इलाज करते रहे।
“तुमने मेरे बेटे को मार डाला, तुम इस घर में न आती तो अच्छा रहता’’

2009 में पति की डेथ हो गई। ससुराल में लोगों ने ताना मारना शुरू कर दिया था। सासू मां कहती थी, “तुमने मेरे बेटे को मार डाला, तुम इस घर में न आती तो अच्छा रहता। तुम मेरे घर के लिए अशुभ हो। और बहुत कुछ। जिसे याद करके खुद को कमजोर महसूस नहीं करना चाहती।”

इसके आगे की कहानी में सपना से उनके घर, परिवार, ससुराल के बारें में जानना चाहा तो उन्होंने बताया…
17 साल की उम्र में हो गई थी शादी, पापा थे शराबी सपना का जन्म 1988 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ। सपना 3 बहन, 1 भाई में सबसे बड़ी हैं। पिता बहुत शराब पीते थे। उनकी तबीयत खराब रहती थी। ‌पिता की चाहत थी, जल्द लड़कियों की शादी करके जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाऊं। 17 साल की उम्र में 10 साल बड़े लड़के से शादी कर दी। शादी के 6 महीने ही बीते थे कि पिता की मौत हो गई। शादी के बाद मैं पति के साथ मुंबई चली आई थी।

शादी के एक साल बाद बन गई मां, बेटी हुई तो लोग ताने मारे जिस उम्र में साथ की सहेलियां खेल रही थीं, पढ़ रही थीं। मैं शादी के बाद 18 साल की उम्र में मां बन गई थी। ससुराल वाले बेटे की चाहत ‌लिए बैठे थे, लड़की हुई तो उसका भी ताना सुना।

पति की मौत के बाद मायके में रहने लगी, मां ने दिया सहारा प‌ति की मौत के बाद मुंबई से प्रतापगढ़ लौट आई। मायके के लोग मेरे साथ है, मेरी मां, मेरे भाई मेरा बहुत ध्यान रखते हैं। मां का जब सहारा हो तो जिंदगी आसान हो जाती है। यह बात मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है। क्योंकि मैं भी एक बेटी की मां हूं।

aids_3_1.jpgबेटी की वजह से जिंदा हूं, वरना मर गई होती जब पति की डेथ हुई तो बेटी 5 साल की थी, उस समय उसे पिता के बारें में कुछ नहीं पता था। जब पति की डेथ हुई तो मैं रो रही थी और वह मेरे आंसुओं को पोछते हुए कह रही थी, “मम्मी आपको क्या हुआ। उसी ‌दिन सोच लिया था, अब मुझे अपनी बेटी के लिए जीना है।”

पति की चाहत थी, बेटी डॉक्‍टर बने बेटी के पैदा होने के बाद पति की चाहत थी, हमारी बेटी बड़ी होकर डॉक्टर बनेगी। अब जब पति नहीं हैं तो बेटी को डॉक्टर बनाने की जिम्मेदारी मेरी है, मेरे पति का भी यही सपना था।

HIV-AIDS के पीड़ित डरे नहीं, खुलकर जिंदगी जिएं HIV-AIDS के बारें में सपना बहुत ही सहज हैं, मानो उन्हें कुछ हुआ ही नहीं है। बड़े आराम से कहती हैं, अगर HIV-AIDS हो भी जाए तो परेशान न हो, अच्छे से ट्रीटमेंट कराएं, और खुलकर जिंदगी ‌जिएं, घबराएं तो बिल्कुल ही न।

दोबारा शादी का मन ही नहीं हुआ, बेटी ही दोस्त है पति की मौत के बाद ऐसा कभी नहीं लगा क‌ि दोबारा शादी करूं, कभी कभी मन उदास होता है, लेकिन अब बेटी ही हमारी दोस्त है। उसी के साथ बाजार घूम आती हूं। सोशल मीडिया पर भी एकाउंट बना लिया है। उसी में फोटो, वीडियो पोस्ट करती रहती हूं।

मैं विधवा हूं, लाचार नहीं पति की मौत के बाद मैंने सफेद साड़ी नहीं पहनी, काजल लिपिस्टक सब लगाती हूं।
सपना बड़े बेबाक अंदाज में कहती हैं, अगर विधवा बनकर अब रहे तो बेटी को डॉक्टर नहीं बना पाएंगे। बेचारी, लाचारी, मजबूर बनकर नहीं रहना चाहती।

15 हजार कमाती हूं, बड़े अच्छे से रहती हूं जिस संस्‍था में काम करती हूं, वहां महीने के 15 हजार मिलते हैं। घर का खर्च आराम से निकाल लेती हूं। ‌अभी अपनी संस्‍था में जिले के स्तर पर काम कर रही हूं, आगे और भी जाना है, पर अभी कुछ बेटी के अलावा सोचा नहीं।



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