धर्म अफीम के समान है किसने कहा और क्यों ?

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धर्म अफीम के समान है किसने कहा और क्यों ? ( Who said religion is like opium and why? )
धर्म अफीम के समान है किसने कहा और क्यों ? ( Who said religion is like opium and why? )

धर्म अफीम के समान है किसने कहा और क्यों ? ( Who said religion is like opium and why? )

दुनिया में कई धर्मों को मानने वाले लोग हैं. कुछ धर्मों में ऐसी भी बाते रही हैं, जिनका विरोध होता है. लेकिन एक बात जरूर है कि जब धर्मों की शुरूआत हुई , तो इनका उद्देश्य सकारात्मक ही था. लेकिन समय के साथ साथ अपने स्वार्थ के लिए लोगों ने इन धर्मों की व्याख्या को बदल लिया. जिसकी वजह से धर्म पर भी सवाल उठने शुरू हो गए. हालांकि धार्मिक कर्मकांडों पर सवाल उठाने वालों को नास्तिक कह देते हैं.

धर्म के बारे में अलग अलग समय पर कई दार्शनिकों ने अपने अलग अलग विचार प्रकट किए हैं. इसी कारण धर्म के बारे में किए गए कमेंट के बारे में लोगों के मन में बहुत जिज्ञासा होती है. इस वजह से लोगों के मन में इससे संबंधित कई तरह के सवाल पैदा होते हैं. इसी तरह का एक सवाल जो आमतौर पर पूछा जाता है कि धर्म अफीम के समान है किसने कहा और क्यों ? अगर आपके मन में भी ऐसा ही सवाल है, तो इस पोस्ट में इसी सवाल का जवाब जानते हैं.

धर्म
कार्ल मार्क्स

धर्म अफीम के समान है किसने कहा –

कार्ल मार्क्स ने धर्म को अफीम कहा था. यहां यह बात ध्यान देने की है कि यह लेख जर्मन भाषा में लिखा गया था. जिसमें कहा गया था कि धर्म अफीम के समान है. इसके अलावा यह लेख जर्मनी के संदर्भ में लिखा गया था. लेकिन इसकी यह पंक्ति की धर्म अफीम के समान है, बहुत प्रसिद्ध हुई.

धर्म अफीम के समान है
कार्ल मार्क्स

क्या सच में धर्म अफीम के समान होता है –

अगर इस कथन की बात करें, तो इस पर सभी लोगों के अलग अलग मत हो सकते हैं. आस्तिक लोग इसको गलत साबित करने की कोशिश करते नजर आएंगे तथा नास्तिक लोग इसके समर्थन में खड़े हो सकते हैं. लेकिन अगर निष्पक्षतौर पर देखें, तो कहा जाता है कि अति हर चीज की बुरी होती है.

जब इंसान धर्म में इतना अंधा हो जाता है कि वह तर्कों पर बात करने की अपनी ताकत ही खो देता है. जबकि धर्म में फैली रूढीयां समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालने लगें. या फिर जब धर्म के नाम पर दंगें होते हैं.

धर्म को अपनी मूंछों का सवाल बना लिया जाता है. इसके अलावा अगर एक लाइन में इसको समझने की कोशिश करें, तो जब धर्म सामंजस्य या एक दूसरे धर्म की इज्जत खत्म हो जाती है, तो वह अफीम से कम खतरनाक भी नहीं होता है. लेकिन धर्म अफीम की तरह खतरनाक तभी हो सकता है, जब अपने स्वार्थ में इसका नाजायज प्रयोग किया जाएं.

वैसे दुनिया के किसी भी धर्म में कोई गलत शिक्षा या किसी का बुरा करने या कोई दंगे करने की शिक्षा नहीं दी जाती है. वैसे अगर किसी भी धर्म की शिक्षाओं को आधुनिकता के साथ सामंजस्य स्थापित कर समझा जाएं, तो कोई भी धर्म बुरा नहीं हैं.

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कौन था कार्ल मार्क्स –

अगर हम किसी के कथन के बारे में पढ़ते हैं, तो हमें यह जानना आवश्यक हो जाता है कि आखिर यह व्यक्ति कौन था. कार्ल मार्क्स (1818 – 1883) जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार, राजनीतिक सिद्धांतकार, समाजशास्त्री, पत्रकार और वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता थे. अगर इनके राजनीतिक विचारों की बात करें, तो ये इऩका मानना था कि उत्पादन पर सामाजिक स्वामित्व होना चाहिएं. यह साम्यवादी विचारधारा से संबंध रखते थे. पूंजीवादी विचारधारा के विरोधी के तौर पर इनको देखा जाता है. इन्होनें मजदूरों के हकों की आवाज उठाई. ये मार्क्सवाद विचारधारा के जनक थे.

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