महाभारत में भीष्म पितामह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पात्र था. जिसने अपनी जिंदगी के अंतिम दिन बाणों की शैया पर बिताए. लेकिन ये आश्चर्य की बात है कि ऐसा क्या था कि बाणों की शैया पर पड़ा होने के बाद भी उनकी मौत नहीं हुई ? आपको बता कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था. जिसका मतलब है कि वह जब तक चाहता तब तक जिंदा रह सकता था.
भीष्म पितामह को ये वरदान किसने दिया और क्यों दिया इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. ऐसा माना जाता है कि भीष्म पितामह के पिता राजा शांतनु एक कन्या से विवाह करना चाहते थे जिसका नाम सत्यवती था. लेकिन सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु से अपनी पुत्री का विवाह करने के लिए एक शर्त रखी. इस शर्त के अनुसार उसकी पुत्री सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न पुत्र ही राजा बनेगा. भीष्म के पिता राजा शांतनु इस शर्त के बाद सत्यवती के वियोग में परेशान रहने लगें. जिसके बाद भीष्म ने उनकी परेशानी जानने की कोशिस की तो उनको सारी बातों के बारें में जानकारी हुई.
राजा शांतनु उनकी यह शर्त पूरी नहीं कर सकते थे क्योंकि उन्होंने भीष्म को पहले ही उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था. अपने पिता की खुशी के लिए भीष्म ने प्रतिज्ञा की कि वह आजीवन शादी नहीं करेगा तथा ना ही राजा बनेगा. इतनी बड़ी प्रतिज्ञा लेने के कारण भीष्म की इस प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से जाना जाने लगा.
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इस घटना के बाद राजा शांतनु की शादी सत्यवती से हो जाती है. राजा शांतनु अपने पुत्र भीष्म की पितृभक्ति से बहुत खुश होते हैं तथा वो भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान देते हैं. जिसका अर्थ था कि भीष्म जब तक चाहे जिंदा रह सकते हैं. उनकी इच्छा के बिना उनको मौत नहीं आ सकती.