कौन हैं, कहां से आए? रोहिंग्या मुसलमानों की पूरी कहानी

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रोहिंग्या मुसलमानों का मामला आजकल सबसे ज्यादा चर्चा में है। वैश्विक स्तर पर लोग इनके ऊपर बात कर रहे हैं। खबर के मुताबिक रोहिंग्या विश्व में ऐसा अल्पसंख्यक है, जिनके ऊपर सबसे ज्यादा अत्याचार हो रहे हैं। आखिर कौन हैं रोहिंग्या और क्यों हो रहा है इनके साथ ये सब कुछ। आइये जानते हैं-

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कौन हैं रोहिंग्या?

माना जाता है कि रोहिंग्या मुसलमान 12वीं सदी में म्यांमार चले गए थे। ब्रिटिश शासन के दौर में 1824 से 1948 तक भारत और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में मजदूर म्यांमार ले जाए गए। चूंकि म्यांमार भी ब्रिटेन का उपनिवेश था इसलिए वह उसे भारत का ही एक राज्य मानता था। इसी वजह से तब इस आवाजाही को देश के भीतर की आवाजाही ही मान जाता रहा। ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद म्यांमार की सरकार ने इस प्रवास को अवैध घोषित कर दिया। इसी के आधार पर बाद में रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता समाप्त कर दी गई।

वर्ष 1948 में म्यांमार की आजादी के बाद देश का नागरिकता कानून बना। इसमें रोहिंग्या मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया। जो लोग दो पीढ़ियों से रह रहे थे उनके पहचन पत्र बनाए गए। बाद में कुछ रोहिंग्या मुसलमान सांसद भी चुने गए। सन 1962 में म्यांमार में सैन्य विद्रोह होने के बाद रोहिंग्या मुसलमानों के बुरे दिन शुरू हो गए। उनको विदेशी पहचान पत्र ही जारी किए गए। उन्हें रोजगार, शिक्षा सहित अन्य सुविधाओं से वंचित कर दिया गया। सन 1982 में एक और नागरिक कानून आया और इसके जरिए रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता पूरी तरह छीन ली गई। इस कानून से शिक्षा, रोजगार, यात्रा, विवाह, धार्मिक आजादी और स्वास्थ्य सेवाओं के लाभ से भी उनको महरूम कर दिया गया।

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म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है। म्यांमार में एक अनुमान के मुताबिक़ 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं। इन मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है। हालांकि ये म्यामांर में पीढ़ियों से रह रहे हैं। रखाइन स्टेट में 2012 से सांप्रदायिक हिंसा जारी है। इस हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और एक लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं। जिनमें 40 हजार से ज्यादा भारत में रह रहे हैं और लाखों बांग्लादेश में।

बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान आज भी जर्जर कैंपो में रह रहे हैं। रोहिंग्या मुसलमानों को व्यापक पैमाने पर भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। लाखों की संख्या में बिना दस्तावेज़ वाले रोहिंग्या बांग्लादेश में रह रहे हैं। इन्होंने दशकों पहले म्यांमार छोड़ दिया था।

रखाइन राज्य में क्या हो रहा है?

म्यांमार में मौंगडोव सीमा पर 9 पुलिस अधिकारियों के मारे जाने के बाद पिछले महीने रखाइन स्टेट में सुरक्षा बलों ने बड़े पैमाने पर ऑपरेशन शुरू किया था। सरकार के कुछ अधिकारियों का दावा है कि ये हमला रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने किया था। इसके बाद सुरक्षाबलों ने मौंगडोव ज़िला की सीमा को पूरी तरह से बंद कर दिया और एक व्यापक ऑपरेशन शुरू किया।

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रोहिंग्या कार्यकर्ताओं का कहना है कि 100 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। म्यामांर के सैनिकों पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के संगीन आरोप लग रहे हैं। सैनिकों पर प्रताड़ना, बलात्कार और हत्या के आरोप लग रहे हैं। हालांकि सरकार ने इसे सिरे से खारिज कर दिया है। कहा जा रहा है कि सैनिक रोहिंग्या मुसलमानों पर हमले में हेलिकॉप्टर का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।

म्यांमार सरकार है दोषी है क्या?

म्यांमार में 25 वर्ष बाद पिछले साल चुनाव हुआ था। इस चुनाव में नोबेल विजेता आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली थी। हालांकि संवैधानिक नियमों के कारण वह चुनाव जीतने के बाद भी राष्ट्रपति नहीं बन पाई थीं। सू ची स्टेट काउंसलर की भूमिका में हैं। हालांकि कहा जाता है कि वास्तविक कमान सू ची के हाथों में ही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सू ची निशाने पर हैं। आरोप है कि मानवाधिकारों की चैंपियन होने के बावजूद वे खामोश हैं। सरकार से सवाल पूछा जा रहा है कि आख़िर रखाइन में पत्रकारों को क्यों नहीं जाने दिया जा रहा है। राष्ट्रपति के प्रवक्ता ज़ाव हती ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी ग़लत रिपोर्टिंग हो रही है।

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आंग सान सू ची चुप क्यों हैं?

आंग सान सू ची अभी अपने मुल्क की वास्तविक नेता हैं। हालांकि देश की सुरक्षा आर्म्ड फोर्सेज के हाथों में है। यदि सू ची अंतराष्ट्रीय दवाब में झुकती हैं और रखाइन स्टेट को लेकर कोई विश्वसनीय जांच कराती हैं तो उन्हें आर्मी से टकराव का जोखिम उठाना पड़ सकता है। उनकी सरकार ख़तरे में आ सकती है।

पिछले 6 हफ्तों से आंग सान सू ची पूरी तरह से चुप हैं। वह इस मामले में पत्रकारों से बात भी नहीं कर रही हैं। जब इस मामले में उन पर दबाव पड़ा तो उन्होंने कहा था कि रखाइन स्टेट में जो भी हो रहा है वह ‘रूल ऑफ लॉ’ के तहत है। इस मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आवाज़ उठ रही है। म्यांमार में रोहिंग्या के प्रति सहानुभूति न के बराबर है। रोहिंग्या के ख़िलाफ़ आर्मी के इस क़दम का म्यांमार में लोग जमकर समर्थन कर रहे हैं।

बांग्लादेश की आपत्ति

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को म्यांमार के राजदूत से इस मामले पर गहरी चिंता जताई है। बांग्लादेश ने कहा कि परेशान लोग सीमा पार कर सुरक्षित ठिकाने की तलाश में यहां आ रहे हैं।

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बांग्लादेश ने कहा कि सीमा पर अनुशासन का पालन होना चाहिए। बांग्लादेश अथॉरिटी की तरफ से सीमा पार करने वालों को फिर से म्यांमार वापस भेजा जा रहा है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसकी कड़ी निंदा की है और कहा है कि यह अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है।

बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी के रूप में स्वीकार नहीं कर रहा है। रोहिंग्या और शरण चाहने वाले लोग 1970 के दशक से ही म्यांमार से बांग्लादेश आ रहे हैं। इस हफ्ते की शुरुआत में ह्यूमन राइट्स वॉच ने एक सैटलाइट तस्वीर जारी की थी। इसमें बताया गया था कि पिछले 6 हफ्तों में रोहिंग्या मुसलमानों के 1,200 घरों को तोड़ दिया गया।