रामायण में तारा के नाम से कौन प्रचलित है?

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रामायण का हर एक किस्सा काफी ही अनूठा और रोचक है . रामायण का हर एक पात्र अपने विशेष कारण और विशेष योगदान के तौर पर जाना जाता है। रामायण महाकाव्य में ऐसा ही एक पात्र था वानरराज वालि की पत्नी तारा का. तारा की बुद्धिमता, साहस तथा अपने पति के प्रति कर्तव्यनिष्ठा को सभी पौराणिक ग्रन्थों में सराहा गया है। तारा को हिन्दू धर्म ने पंचकन्याओं (अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा तथा मन्दोदरी) में से एक माना गया है।

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हालांकि तारा को मुख्य भूमिका में वाल्मीकि रामायण में केवल तीन ही जगह दर्शाया गया है लेकिन उसके चरित्र ने रामायण कथा एक ऐसी छाप छोड़ दी जो काफी अद्भुत है। रामायण में तारा का वर्णन ३ जगह पर हुआ जैसे सुग्रीव-वालि के द्वितीय द्वंद्व से पहले तारा की वालि को चेतावनी, वालि के वध के पश्चात् तारा का विलाप और सुग्रीव की पत्नी बनने के पश्चात् क्रोधित लक्ष्मण को शान्त करना।

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रामायण के कई रूपांतरणों में यह उल्लेख आया है कि जब मायावी से युद्ध करते समय वालि को काफ़ी समय बीत गया और सुग्रीव ने कन्दरा के मुहाने में एक शिला लगाकर उसका द्वार बन्द कर दिया और किष्किन्धा वापस आकर इस बात की सूचना मंत्रियों को दी कि शायद वालि मायावी के हाथों मारा गया है, तो मंत्रणा करके मंत्रियों ने सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा चुना और प्रकट रूप से विधवा हुई तारा अपने पति के छोटे भाई की पत्नी स्वीकृत हुई। इस प्रथा को न तो वाल्मीकि रामायण में और न ही उसके क्षेत्रीय रूपांतरणों में पाप का दर्जा दिया गया है। लेकिन जब वालि मायावी का वध करके वापस किष्किन्धा आता है और क्रोध के कारण सुग्रीव को देश-निकाला देता है और उसकी पत्नी रूमा को हड़प लेता है तो किष्किन्धाकाण्ड में सुग्रीव-राम मिलाप के दौरान राम इसे घोर पाप की संज्ञा देते हैं।

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वालि के वध के बाद भी तारा पुनः सुग्रीव की पत्नी बन गई। रामायण के ऐसे बहुत से किस्से है, जो काफी ही रोचक है और उन किस्से -कहानियों को सुनने में आज भी काफी आनंद और सिख मिलती है।